बड़ी बहू : Moral Stories in Hindi

बड़ी बहू…..बड़ी बहू….. ये आवाज सुनते ही राशि अपने हाथ का काम छोड़कर आंगन में बैठी अम्मा की ओर दौड़ी जो सब्जी वाले से सब्जियां ले रही थी।

उसे देखते ही अम्मा चिल्लाई, ‘ थोड़ा और देरी से आ जाती, कब से सास चिल्ला रही है, पर तुझे तो परवाह ही नहीं है, कहां रह गई थी?

अम्मा छत पर कपड़े सूखा रहे थे, दो मंजिल से नीचे आने में समय लगता है, फिर ऐसा क्या जरूरी काम था, आ तो रही थी, राशि धीमी आवाज में बोली।

‘चुप कर बददिमाग!!  मुझसे जबान लड़ाती है, घर की बहू को इस तरह बोलना शोभा नहीं देता है, घर की बड़ी बहू है तो जिम्मेदारी भी तेरी ही है, घर में सब्जी नहीं थी, मैंने ले ली है, और अब तू सब्जी वाले को पैसे दे दें, ये क्या तेरे लिए दोपहर तक रूका रहेगा? सब्जी वाले के सामने पड़ी डांट से राशि झेंप गई,

चुपचाप कमरे में गई और जो जेबखर्च उसे अपने पति विनोद बाबू से मिला था, उसी में से लाकर सब्जी वाले का हिसाब कर दिया, वैसे विनोद बाबू अम्मा को घर खर्च दे देते थे, पर अम्मा की नजर राशि के पैसों पर रहती थी, वो किसी ना किसी बहाने उससे पैसे खर्च करवा ही लेती थी।

अब जा यहां से, रसोई संभाल  सुबह से एक घूंट चाय की नहीं पी है, मेरा तो सिर चकरा रहा है, नहाने और कपड़े धोने में ही तू इतना समय लगा देती है कि चाय-पानी को देर हो जाती है, अम्मा फिर तेज आवाज में बोले जा रही थी।

आंच पर चढ़ी चाय को देखकर राशि के मन में भी भावनाएं उबल रही थी, स्वंय तो कहती हैं कि पहले नहाओं, कपड़े धोओं, उसे छत पर सूखाओं, फिर जाकर बाकी काम करो, अब धीरे-धीरे आदत हो जायेगी, बहू हूं कोई मशीन तो नहीं जो एक दो मिनट में सारे काम निपटा दूं।

जब से शादी होकर आई है, घर में दो पल सूकून के नहीं देखे, अम्मा किसी ना किसी बात पर उलझती रहती है और उसे भी उलझाती रहती है, तू घर की बड़ी बहू है तो तुझे तो सारे फर्ज निभाने ही है, कोई कुछ करें या ना करें, तुझे तो सारे काम करने हैं, घर की बड़ी बहू को हर जिम्मेदारी के लिए कमर कसकर रहना चाहिए, अम्मा नसीहत देती रहती थी।

राशि को अब इनकी आदत हो गई थी, वो अब अपना नाम सुनने को तरस गई थी, ससुराल में सब उसे बड़ी बहू के नाम से ही पुकारते थे, चाहें घर के सदस्य हो, चाहें आसपड़ौसी हो, फिर दूध वाला, सब्जी वाला, राशन वाला… कोई भी हो वो बड़ी बहू के नाम से ही जानी जाती थी।

विनोद बाबू घर के बड़े बेटे थे, उनसे दो छोटे भाई थे, उनकी भी शादी हो गई थी, पर दोनों भाई शहर में नौकरी करते थे और अपने परिवार के साथ वहीं पर रहते थे, तीनों भाइयों की शादी दो साल के कम अंतराल में हो गई थी, विनोद बाबू घर की दुकान संभालते थे तो उनकी शादी कर दी, और दोनों पढ़े-लिखे छोटे भाइयों की नौकरी शहर में लग गई थी

तो उन्हें वहां अकेले रहने में दिक्कत होती थी, तो उनकी भी शादी कर दी गई और वो अपनी पत्नियों को लेकर चले गए, अब अम्मा -बाबूजी की सारी जिम्मेदारी घर की बड़ी बहू पर थी, उनकी सुबह की चाय से लेकर, रात के दूध और दवाई की जिम्मेदारी भी राशि ही संभालती थी।

फिर भी अम्मा जी राशि से खुश नहीं रहती थी, काफी समय से अम्मा जी एकादशी का उद्यापन करने का सोच रही थी, लेकिन इस बार उन्होंने दृढ़ संकल्प ले लिया कि वो एकादशी का उद्यापन करेगी तो इसीलिए उन्होंने शहर दोनों बेटों को संदेश पहुंचा दिया, पंडित जी से मुहुर्त निकालकर बाकी रिश्तेदारों को भी आमंत्रित कर दिया, सब कुछ घर में होने वाला था तो सारी व्यवस्था घर की बहू राशि को करनी थी।

सबके कमरे खुलवाकर साफ-सफाई करवाई गई, राशन का सामान भरवा लिया गया, सबके खान पीने और रहने  की व्यवस्था कर ली गई ताकि किसी को 

परेशानी नहीं हो।

शहर में रहने वाले दोनों बेटे बहू भी आ जाते हैं, सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक से राशि काम करते-करते बेहोश हो जाती है, उसे डॉक्टर के पास ले जाया जाता है, डॉक्टर बताते हैं कि राशि मां बनने वाली हैं और अभी शुरूआती तीन महीने बड़े ही नाजुक हैं, उसे पूरे आराम की जरूरत है।

ये सुनते ही अम्मा का चेहरा खुशी से खिल जाता है कि वो दादी बनने वाली हैं और दूसरे ही पल वो ये सोचकर उदास हो जाती है कि घर की बड़ी बहू बिस्तर पर रहेगी तो घर का काम कौन संभालेगा?? इतने मेहमान भी आने वाले हैं।

अम्मा आप क्यों चिंता करती हो? आप भूल रही है कि आपकी दो बहूएं और भी है, वो सब संभाल लेगी, विनोद बाबू ने आश्वस्त करते हुए कहा।

ये सुनकर अम्मा सोच में पड़ गई, क्योंकि वो अपनी दोनों शहरी बहूओं से अच्छी तरह से वाकिफ थी, वो

कामचोर थी, अपना काम करले वो ही बहुत था।

आज उन्हें मन ही मन राशि की अहमियत पता चल रही थी, पर वो कुछ बोली नहीं, दोनों बहूओं को बुलाया और काम समझाया तो सुनते ही उनके हाथ-पैर फूल गये।

उनमें से एक बोली, ‘अम्मा अब ये सब जिम्मेदारी तो घर की बड़ी बहू की है, बड़ी बहू पलंग तोड़े और हम काम करें, ये हमसे तो नहीं होगा, वैसे भी हमें ये सब करने की आदत नहीं है।

दूसरी भी स्वर में स्वर मिलाकर बोली, अम्मा हमने भी ऐसे घर के रसोई के काम नहीं कियें, हमारे यहां तो नौकर लगे हैं, आप भी दो नौकर लगा लीजिए, वो ही रसोई में सबके खाने-पीने की व्यवस्था कर लेंगे, फिर हम घर की बड़ी बहू थोड़े ही है, जो ये फिजुल की जिम्मेदारी उठाएं, हम यहां पर काम करने थोड़ी आये है।’

दोनों बहूओं के कड़वे बोल सुनकर अम्मा जी सकते में आ गई, उन्होंने समय की नजाकत देखते हुए, दो नौकर लगा दिये, जो घर की सारी व्यवस्थाएं देख लेंगे, और अम्मा का हाथ भी बंटा देंगे, नियत समय पर हवन यज्ञ हुआ और अम्मा -बाबूजी का एकादशी का उद्यापन हो गया। सारे मेहमान चले गए थे, दोनों बेटे-बहू भी चले गये थे,

राशि की तबीयत नाजुक थी, नौ महीने बाद उसने प्यारे से बेटे को जन्म दिया, घर में खुशी का उत्सव मनाया गया, बेटा बड़ा हो रहा था, वहीं बाबूजी की तबीयत खराब रहने लगी थी, राशि और विनोद बाबू उनकी सेवा में जुट गये थे, दोनों ने बड़ी सेवा करी, लेकिन उनको बचाया नहीं जा सका, दोनों बेटे-बहू शहर से आ गये थे, तेरहवीं के बाद मेहमान चले गए थे, सब घरवाले बैठे थे, तभी अम्मा बोली, मेरे बच्चों जीवन का भरोसा नहीं है, मै जीते जी जायदाद का बंटवारा करना चाह रही थी, अभी मै बंटवारा कर दूंगी, लेकिन ये सब तुम्हें मेरे मरने के बाद ही मिलेगा।

ये कहकर अम्मा ने सबको जायदाद के कागजात दे दिए, कागजात देखते ही सबके होश उड़ गये, ‘अम्मा ये क्या आपने जायदाद बहूओं के नाम की है, बेटो के नाम पर नहीं और सबसे ज्यादा हिस्सा बड़ी बहू को दिया है, तू भूल गई मां के लिए सब बराबर होते हैं, बंटवारा करना था तो तीनों बहूओं में बराबर करती।’

अम्मा शांति से बोली, ‘ जो ज्यादा जिम्मेदारी उठायेगा, उसे ज्यादा हिस्सा मिलेगा, दोनों छोटी बहूओं ने हमेशा जिम्मेदारी से पीछा छुड़ाना चाहा, एकादशी उद्यापन के दौरान भी इन्होंने कोई जिम्मेदारी नहीं उठाई और जब तेरे बाबूजी बीमार थे तो दोनों ने सेवा तो छोड़ो, फोन पर समाचार भी नहीं पूछे, तो जब कर्तव्य नहीं निभाया तो अधिकार कैसे मिलेगा?

घर की बड़ी बहू सबसे ज्यादा जिम्मेदारी उठायेंगी तो उसे सबसे ज्यादा अधिकार भी मिलेगा, और यही मेरा अंतिम फैसला है, मुझे पता है, मेरा बुढ़ापा है तो मेरी सेवा भी मेरी बड़ी बहू करेंगी, मुझे तुम दोनों से और तुम्हारी पत्नियों से कोई अपेक्षा भी नहीं है।

अम्मा की बात सुनकर दोनों बेटे बहू के चेहरे उतर गये, वहीं राशि के मन में अम्मा के प्रति सम्मान की भावना बढ़ गई, वो कहने को ही बड़ी बहू नहीं थी, उसके अधिकार भी बड़े थे।

धन्यवाद 

लेखिका 

अर्चना खंडेलवाल ✍🏻

#बड़ी बहू

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