कला ऐसा करना। कला शादी का सामान कहां रखवाया है। कला गेहूं कहां रखवाये। कला मसाले तैयार हुए कि नहीं। ऐसे ही अनगिनत काम जिनके लिए कला का नाम ही परिवार में गूंजता रहता।
कला जन्म पद से बड़ी बहू नहीं थी किन्तु अपनी चंट चतुराई एवं कार्यो के प्रति सजगता, कर्मठता एवं अच्छी सोच से उन्होंने यह पद अपनी जेठानी यानी कि परिवार की बड़ी बहू से छीन लिया था। बड़ी बहू न तो इतनी चतुर थी न ही वे कोई काम फुर्ती एवं सजगता से कर पाती थीं।
वे इधर-उधर लगाने में, बहाने बनाने में, झूठ बोल कर अपना बचाव करतीं रहतीं सो स्वत ही उनका महत्व परिवार में कम हो गया था। वे कला अपनी देवरानी के आगे कमजोर पड़ गईं और परिवार की बड़ी बहू होने के दायित्व देवरानी निभाने लगी।
इसे किस्मत कहें या संयोग बड़े भाई साहब में नेतृत्व का गुण , आपसी समझ , समस्या को सुलझाने की क्षमता कम थी सो वे अपने छोटे भाई के आगे दब गए।
छोटे भाई देवेश जो कला के पति थे उनमें गजब की नेतृत्व भावना एवं निर्णय लेने की क्षमता थी सो वे दोनों पति-पत्नी बड़े भाई भाभी के आगे मुखर हो गये और परिवार में बड़े बेटे -बहू का दर्जा हासिल कर लिया।
व्याह शादी संबंधी फैसले हों, बच्चों को स्कूल, कॉलेज में प्रवेश दिलाने संबंधी राय हो , परिवार की अन्य जरूरतों के बारे में निर्णय लेने हों सब उनसे ही राय मांगते और उनके कहेनुसार ही कार्य सम्पन्न होता। इस तरह घर के बाहर देवेश जी एवं भीतर कला जी का राज चलता। माता-पिता की भी हिम्मत नहीं थी कि बड़े बेटे -बहू की बात का विरोध कर सकें।
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इस परिस्थिति का उन्होंने फायदा भी बहुत उठाया।वै कोई भी निर्णय लेने से पहले अपना पक्ष पहले देखते और उसी के अनुसार निर्णय लेते।कम उम्र में ही इतना मान सम्मान,अधिकार मिल जाने के कारण दोनों में बहुत गुरुर आ गया।
कला जी हमेशा जेठानी को सास-ससुर की नजरों में गिराने की कुटिल चाल चलतीं रहतीं। उधर देवेश के सामने भी उनके भाई मुंह नहीं खोल सकते थे। छोटे भाई की शादी के बाद देवरानी को खूब परेशान करतीं।सारा काम उससे कराने का प्रयास करतीं। देवरानी जब परेशान हो अपने पति सोमेश से यह सब कहतीं तो उनका एक ही जबाब होता मैं भाई साहब एवं भाभी से कुछ नहीं कह सकता,सहन करने की आदत डाल लो।
एक तो दोनों की होशियारी दूसरे कला का मायका भी संपन्न था वहां से कुछ न कुछ आता रहता । खेती भी बहुत थी सो चावल, दालें, गुड बोरीयां भर भर कर आते। इन्हीं दोनों कारणों से सास की निगाह में उनका कद ऊंचा ही रहता। उन्होंने एक मापदंड बनाया हुआ था कि यदि कोई चीज या सुख सुविधा उनके बच्चों के पास नहीं है
तो वह चीज या सुख सुविधा जेठानी और देवरानी के बच्चों को भी नहीं मिलनी चाहिए। यदि किसी बच्चे के लिए कोई चीज या कपड़े वगैरह उसके माता-पिता ले आते तो वे जमकर उसका विरोध करते।कला अक्सर कहतीं अरे अभी मेरे बच्चों के पास तो है नहीं दूसरे कैसे ले सकते हैं।
सबसे छोटे भाई की शादी में ससुर नहीं रहे थे।सास ने पूरी जिम्मेदारी और अधिकार बड़े बेटे बहू को यानी देवेश एवं कला को सौंप दिये। फिर तो उन्होंने उन अधिकारों का जमकर दुरुपयोग किया।न तो छोटे भाई एवं उसकी होने वाली पत्नी के लिए ढंग के कपड़े बनवाये न जेवर। काम चलाऊ कपड़े गहने ले दिये। छोटी बहू पढ़ी-लिखी थी
सो उसके लिए उनके मन में एक ईर्ष्या जनित भाव पैदा हो गये। उसके आने से पहले ही उसमें न जाने कितनी कमियां ढूंढ लीं जैसे पढ़ाई का घमंड दिखायेगी, परिवार में घुलेगी मिलेगी नहीं ,घर का काम नहीं करेगी, किसी से दब कर नहीं रहेगी और ये सब बातें वे इसलिए कर रहे थे कि वे नहीं चाहते थे कि पढ़ी-लिखी लड़की घर में आये। क्योंकि वे कम पढ़ी थीं सो हीन भावना प्रबल हो उठी।
ससुराल आने पर बड़ी बहू ने उसका स्वागत भी ढंग से नहीं किया।सास ने पूरी जिम्मेदारी बड़ी बहू पर छोड़ रखी थी सो उन्होंने भी ध्यान नहीं दिया। कभी नाश्ता नहीं मिलता कभी चाय। और तो और एक दो बार ऐसा भी हुआ कि पूरे परिवार ने खाना खा लिया और छोटी बहू को देना ही भूल गए। उन दिनों बहुओं को परिवार के पुरुषों के साथ बैठकर खाना नहीं दिया जाता था सो वे अलग से खातीं थीं।बाद में भूल पता चलने पर जो रखा था वहीं देकर काम चला लिया।
छोटी बहू नौकरी करना चाहती थी सो दोनों ने खूब राह में रोड़े अटकाए कि कैसे भी नौकरी न कर पाए।सास को भी बहुत सिखाया अम्मा नौकरी करेगी तो छोटी बहू घर का कोई काम नहीं करेगी। घर में रखो दबा कर, काम करवाओ।वे लोग जो कहते थे सास मान लेतीं । लेकिन पति नितेश की इच्छा थी सो उसने नौकरी कर ली।
अब वही आक्रमक रूख अपनाया दोनों कमाते हो खर्च है नहीं तो परिवार में पैसा दो। बच्चे होने के बाद लड़कियां हैं सरकारी स्कूल में डाल दो।जब निशि ने उनकी बात न मानते हुए बेटियों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में डाल दिया तो कला जी ने बहुत हंगामा किया।ले दे कर सौ की सीधी एक बात थी
कि देवेश जी एवं कला जी नहीं चाहते थे कि परिवार में कोई उनसेआगे निकल जाए।इसे वे अपनी तौहीन समझते थे। अतः परिवार में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए दोनों साम, दण्ड,भेद वाली नीति अपनाने से भी नहीं चूकते।अपना महत्व बनाए रखने के लिए वे पति-पत्नी में भी आपस में मन मुटाव करवा देते।
ऐसे थे बड़े बेटे -बहू जो भले ही जन्म से बड़े नहीं थे किन्तु कर्म से यह पद हासिल कर खूब जीवन में अधिकारों का उपयोग किया।
शिव कुमारी शुक्ला
28-2-25
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
शब्द****बड़ी बहू