“तुम बड़ी हो तो क्या छोटों पर रौब गाँठोगी,अपने देवर-ननदों और परिवार का ध्यान रखा करो ।बड़ी बहू का यही कर्तव्य होता है ।” सास सुचित्रा देवी अक्सर प्रमिला को सीख देती रहतीं ।
“बड़ों को भी तभी आदर मिलता है जब वे छोटों को स्नेह देते हैं ।” पति भुवनेश भी अक्सर प्रमिला से कहते ।अब प्रमिला कैसे बताती कि वास्तविकता क्या है और बताती भी तो कौन सा भुवनेश उसका यकीन करते !
भुवनेश घर के बड़े बेटे थे और अपने परिवार को ही अपना सब कुछ समझते था । प्रमिला को वह शादी करके घर लाए तो थे पर उस पर यकीन नहीं था । उन्हें लगता था कि प्रमिला उनके परिवार को उतना नहीं चाहती जितना कि वह चाहते हैं क्योंकि प्रमिला दूसरे घर से आई है । भुवनेश की माँ सुचित्रा देवी की भी यही सोच थी
कि बहुएँ तो पराए घर से आती हैं इसलिए वे अपनी नहीं होतीं हैं । बेटियाँ ही अपनी होती हैं । घरवालों की इसी मानसिकता के साथ प्रमिला रह तो रही थी पर उसका मन कभी ख़ुश नहीं रहता था । पराएपन से भरे उस माहौल में कुछ अपनापन आने की उम्मीद तब हुई जब प्रमिला की देवरानी सुहानी उस घर में आई ।
सुहानी एक होशियार लड़की थी । उसने कुछ दिनों में ही घर के माहौल को परख लिया । सुचित्रा देवी को दोनों बहुओं का मेलमिलाप जरा पसंद नहीं आता और दोनों बहुओं में फ़ूट डालने का प्रयास करती रहतीं ।
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“बड़ी बहू घर में रहेगी सुहानी मायके हो आएगी ।” कह कर सुहानी को मायके भेज देतीं और प्रमिला को घर पर ही रोक लेतीं ।
सुहानी प्रेगनेंट हो गई थी और प्रमिला माँ नहीं बन पाई थी । सुचित्रा देवी प्रमिला को बाँझ होने का ताना देतीं और सुहानी का ख़याल रखतीं । भुवनेश पत्नी की ओर से लापरवाह थे
और इसलिए इन बातों पर उनकी नज़र ही नहीं जाती थी ।प्रमिला सब कुछ सहन करती और कुड़ती रहती । उसका स्वास्थ्य भी ख़राब रहने लगा था । सुहानी की डिलीवरी नज़दीक आ रही थी । प्रमिला उसका पूरा ध्यान रखती फ़िर भी सुचित्रा देवी ऐसे जतातीं जैसे बड़ी बहू ख़ुद माँ नहीं बन पाई इसलिए सुहानी से जलती है और उसका ध्यान नहीं रखती ।
समय पर सुहानी की डिलीवरी हुई ।उसकी सुंदर सी बेटी हुई ।चूँकि डिलीवरी बड़े ऑपरेशन से हुई थी इसलिए सुहानी कई दिनों तक बैड पर ही रही ।बच्ची का ध्यान माँ की तरह प्रमिला ने ही रखा ।
सुहानी जब स्वस्थ हो गई तो बच्ची का नामकरण संस्कार रखा गया था । सुचित्रा देवी सुहानी को सीख दे रहीं थीं कि “प्रमिला चूँकि माँ नहीं बनी है ।इसलिए सुहानी….. बच्ची को प्रमिला से दूर ही रखे। सुहानी ने अपनी सास की बात को चुपचाप सुन लिया कुछ नहीं कहा । सुचित्रा देवी समझ गईं की सुहानी ने उनकी बात को मान लिया है ।
नामकरण के समय जब पंडित जी ने बच्ची का नाम सुझाने को कहा तो सुहानी ने सबके सामने बच्ची को प्रमिला की गोद में देकर कहा कि “इस घर को सही तरीक़े से चलाने में बड़ी भाभी ही सबसे बड़ा योगदान है ।वे इस घर की बड़ी बहू ही नहीं इस घर की रीढ़ हैं । मेरे अस्पताल में रहने और स्वस्थ होने तक उन्होंने ही इसे पाला-संभाला है
और जब से मैं इस घर में आई हूँ उन्हें दिन-रात इस घर की देखभाल करते और सबका ध्यान रखते हुए देखती रही हूँ ।उनके त्याग का मैं सम्मान करती हूँ । यह मेरी ही बेटी नहीं बल्कि उनकी भी बेटी है । इसका नामकरण संस्कार वे ही करेंगी ।”
सुचित्रा देवी ने गुस्से भरी आँखों से सुहानी को देखा । उन्हें सुहानी से इस बात की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। पर सुहानी ने उन्हें अनदेखा कर दिया । भुवनेश भी आश्चर्य से सुहानी को देख रहे थे । आज उन्हें एहसास हो रहा था कि प्रमिला को उसके हिस्से का मान-सम्मान न देकर वास्तव में उन्होंने उसके साथ कितना अन्याय किया है । जो काम अपने परिवार के सामने वह न कर सके वह सुहानी ने कर दिया ।
आज प्रमिला की आँखों में ख़ुशी के आँसू थे । घर में सबके सामने उसकी देवरानी ने उसके मान-सम्मान को बढ़ाया था । उसने सुहानी को गले से लगा लिया । आज उसे वास्तव में यह एहसास हुआ था कि वह घर की बड़ी बहू है और वह एहसास घर की छोटी बहू ने दिलाया था । “चिंता न करो भाभी एक और एक मिलकर ग्यारह बनते हैं ।” सुहानी ने चुपके से प्रमिला के कान में कहा और दोनों बहुएँ एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा दीं ।
गीता यादवेन्दु,आगरा