बड़ी बहू.. इस बार तुम्हारे पिताजी ने यह क्या किया सभी के लिए कपड़े अपने आप ही भेज दिए हर बार तो हमारी पसंद के कपड़ों का ही कहते थे, 8 साल हो गए तुम्हारी शादी को आज तक कभी उन्होंने ऐसा नहीं किया मुझे तो लगता है तुम्हारे ऊपर भी छोटी बहू के घर वालों का रंग चढ़ रहा है
5 साल तो छोटी बहू को भी इस घर में आए हुए हो गई उनके यहां से तो आज तक कोई ढंग का सामान नहीं आया किंतु तेरे यहां से तो हमेशा हमारी पसंद का ही सामान आता था मुझे तो लगता हैशायद इस बार तुमने ही अपनी मायके वालों को मना कर दिया होगा आखिर खरबूजा खरबूजे को देखकर ही रंग बदलता है,
बड़ी बहू.. तुम तो ऐसी नहीं थी छोटी बहू को देखकर तुम्हारी भी बहुत हिम्मत बढ़ गई है, तुम्हारी इकलौती नंद की शादी है फिर भी तेरी मायके से कन्यादान के लिए सिर्फ चांदी की पायल आई है पिछली बार अमित की शादी हुई थी तब तो छोटी बहू के लिए मुंह दिखाई में भी उन्होंने सोने की अंगूठी भेजी थी इस बार क्या हो गया?
रुक्मणी की बात सुनकर बड़ी बहू शीतल को गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर वह अपने गुस्से को दबाकर बोली… मम्मी जी इस साल मेरे पिताजी की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं है इसलिए उनसे जितना बन पड़ा उतना ही भेज पाए है, शीतल की बात सुनकर सास मुंह बनाती हुई
वहां से चली गई !तभी छोटी बहू रीमा बड़ी बहू के पास आकर बोली.. भाभी मैं खुद भी 5 साल से देखते आ रही हूं आपके मायके से हम सभी के लिए हमेशा हमारी पसंद के अच्छे-अच्छे कपड़े और सामान आते रहे हैं किंतु इस बार क्या हुआ..?बिना बात को मम्मी जी नाराज हो गई वैसे भी यह घर की अब आखरी शादी है
आप क्यों इन सब की बुरी बन रही हो, मेरे यहां से तोमेरे पापा जितना बन् पड़ता है उतना ही लेकर आते हैं! किंतु यह कभी भी खुश नहीं होते किंतु में इनकी बातों पर ज्यादा दिमाग नहीं लगाती! सुन छोटी… इस बार मैंने अपने पापा को मना किया था, इतने साल हो गए मेरी शादी को आज तक वह इनको खुश करने की कोशिश करते रहे हैं
इस कहानी को भी पढ़ें:
किंतु यह क्या करते हैं? तेरी शादी के समय मेरे पापा ने सब घरवालों को एक से एक बढ़िया कपड़े लेने के लिए बोला था इन्होंने पूरे 30000 का बिल बना कर दिया था यहां तक की उसमें सिलाई भी जोड़ दी थी और जो मेरे मायके से देवर जी की शादी में भैया भाभी और मेरे भतीजा भतीजी आए तो उनको विदाई में क्या दिया…
पता है..?₹500 की भाभी को साड़ी, भैया को घर से निकाल के पैंट शर्ट का कपड़ा और ₹100 भतीजा भतीजी के हाथ पर रख दिए थे, मुझे तभी से बहुत गुस्सा आ रहा था क्या मेरे मायके वाले इतना भी हक नहीं रखते कि उन्हें भी कभी यह कुछ अच्छा दे दे ताकि मेरी भी अपने मायके में इज्जत रह जाए!
हर बात में मायके वाले ही क्यों लूटे, पहले तो मैं बहुत सहन करती रही थी किंतु अब तुम्हें देखकर मेरे अंदर भी हिम्मत आने लगी है मैं भी अपने पापा पर अतिरिक्त बोझ नहीं डालना चाहती, तुम्हें पता है रीमा तुम्हारी शादी के 1 साल बाद हमारे बड़े ससुर जी का स्वर्गवास हुआ था तब भी घर में सभी ने कहा था…
बड़ी बहू बड़ा सौभाग्य से मिलता है बड़े दादाजी का अपने परपोते को देखकर जाना, तो तेरे मायके वालों को बोल देना कि वह सोने की सीडी भेजें किंतु मैंने मना कर दिया बड़े दादाजी इस घर के थे या मेरे मायके के, तो सोने की सीडी मेरे घर वाले क्यों भेजें? परपोता तो इनका और सोने की सीधी भेजें मेरे घर वाले,
हर बात बात पर तेरे मायके से यह नहीं आया तेरे मायके से यह आना चाहिए मैं भी अपने पापा को फोन करके सब कुछ मंगा लेती थी, किंतु इनकी तो कभी लालसा खत्म नहीं होती बल्कि समय के साथ और बढ़ने लगी, किंतु जब मैंने देखा तेरे यहां से पहली बार में ही जब बिना अतिरिक्त इतना ही समान आया है और जब मम्मी जी ने तुझे भी कहा था की…
बहू हमारे यहां यह परंपरा नहीं है हमारे यहां तो अच्छे से अच्छा सामान आता है तब देवर जी ने क्या कहा था…. मम्मी जो आ गया है उसमें खुश रहना सीखो वरना अगली बार से यह भी नहीं आएगा, भैया तो हमेशा चुप रहे हैं बड़ी भाभी के यहां से हमेशा इतना सब कुछ आते हुए भी क्या आप खुश रहि,
जिस व्यक्ति के अंदर लालच समा जाता है उसे कैसे खुश किया जाए! आपने हमेशा भाभी के मायके वालों को क्या दिया है, उम्मीद तो आप इतनी बड़ी-बड़ी करती हैं, एक तरफ तो आप कहती हैं पैसा तो हाथ का मेल है इसे कौन ऊपर लेकर जाएगा सब यही रहना है किंतु जब आपका देने का नंबर आता है तब यह विचार कहां चले जाते हैं
इस कहानी को भी पढ़ें:
और धीरे-धीरे करके मुझ मे भी हिम्मत आने लगी और इस बार सच बताऊं मेरे मन में बहुत संतुष्टि है अब अगर यह मेरे भाई भाभी को कुछ नहीं भी देते हैं तब भी मेरे मन पर कोई बोझ नहीं है! बड़ी बहू सिर्फ एक जिम्मेदारी बनकर रह गई है, उसकी भावनाओं से तो उनको कोई मतलब ही नहीं है हर काम में बस बड़ी बहू यह बड़ी बहू वह, बड़ी बहू जैसा करेगी
वैसा ही तो छोटे सीखेंगे किंतु कई बार छोटे भी बड़ों को सीख दे जाते हैं मैंने आज तक इनको पलट कर किसी भी चीज में जवाब नहीं दिया किंतु जब मैंने देखा कि तू उनकी गलत बात का हमेशा विरोध करती आई है तो मेरे अंदर भी धीरे-धीरे एक साहस उत्पन्न हुआ मैं भी अब गलत का विरोध करने लगी हालांकि उनकी नजरों में अब मैं अच्छी बहु नहीं रही,
क्या सिर्फ बड़ी बहू ही मर्यादित और संयमित व्यवहार करें, यह लोग चाहे बड़ी बहू से कैसा भी व्यवहार करें, मैं तुझे धन्यवाद देती हूं छोटी की तेरी वजह से ही मुझे मेरा आत्मसम्मान वापस मिलने लगा है वरना मैं तो कभी की घुट घुट कर मर गई होती, सारी अपेक्षाएं बड़ी बहू से ही क्यों की जाती है मैंने आज तक अपनी जिम्मेदारी पूरे मन से निभाई है
किंतु बदले में मुझे क्या मिला? हमेशा तिरस्कार! में आज भी अपनी बड़ी बहू होने का फर्ज पूरी निष्ठा से निभाऊंगी किंतु गलत बात अब मैं सहन नहीं करूंगी! और आज बड़ी बहू के चेहरे पर संतुष्टि के भाव साफ नजर आ रहे थे!
हेमलता गुप्ता स्वरचित (बड़ी बहू… एक जिम्मेदारी)
कहानी प्रतियोगिता “बड़ी बहू”