“देखो… फिर मुंह चला रही है, खाना बनाते बनाते… अरे बड़ी बहू हो घर की… कितनी बार समझाना पड़ेगा… जैसा तुम करोगी, तुम्हें देखकर ही ना कल जो अनुज की दुल्हन आएगी… वह भी सीखेगी…!”
“वो मां… बस नमक लगा डालना भूल गई हूं… इसलिए थोड़ा चख रही थी…!”
” यह तो और भी बुरी बात है… पहले खाना तुम ही खा लोगी… कुछ सीख कर आई हो मायके से कि नहीं… नमक नहीं डाला तो मुझे बोलो… मैं देखूंगी…!”
” जी मां… आगे से ध्यान रखूंगी…!”
नम्रता आदर्श बहू बनने की पूरी कोशिश में लगी हुई थी… पर फिर भी कोई ना कोई गलती निकल ही जाती उसकी…
पल्लू सर पर लेकर ही छत पर जाना… बाहर किसी से ज्यादा बातें नहीं करना… सुबह जल्दी उठा करो… पति से पहले उठकर घर संभालना सीखो…और कितने ही ऐसे नियम थे जिनका पालन करना नम्रता की मजबूरी थी…
आनंदी जी पुराने ख्यालों की कड़क स्वभाव महिला थीं… अपनी बहू को घूंघट में रखना… उसे सारे कायदे कानून सिखाना वह अपना धर्म मानती थीं… नम्रता भी चुपचाप आनंदी जी की हां में हां मिलाकर समय निकलती जा रही थी…
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चार साल बाद अनुज ने अपनी पसंद से सुधा से ब्याह किया… सुधा आधुनिक सोच की हंसमुख लड़की थी… कुछ दिन तक तो वह नई बहू बनी रही लेकिन हफ्ते दो हफ्ते बीतते… उसे एहसास होने लगा कि इस घर में उसका रहना मुश्किल है…
आनंदी जी की हर बात में टोका टोकी वह बर्दाश्त नहीं कर पाती थी… पहले तो वह हंस कर या चुप रहकर सुनती रही… पर एक दिन उसने सीधा कह दिया…
” मां मुझसे घूंघट लेकर कपड़े सुखाना या काम करना नहीं होगा…!”
नम्रता ने बात संभाल ली… वह खुद चली गई… पर अब तो यह रोज की बात हो गई थी… आनंदी जी टोकना नहीं छोड़ती थीं… और सुधा जवाब देना… अब तो आनंदी जी सुधा को ताने भी मारने लगीं… “तुमसे अच्छी तो बड़ी बहू है… कभी मुंह नहीं खोला उसने… चार सालों से इस घर में है… मजाल है कि कभी किसी बात में ना कही हो…!”
समय बीतता जा रहा था… नम्रता ज्यादा से ज्यादा कोशिश करती… कि जिन कामों के लिए आनंदी जी टोकेंगी… वह पहले ही निपटा दे… पर फिर भी सुधा की सास से टक्कर हो ही जाती थी…
एक दिन सुबह… नम्रता रोज की तरह नहा धोकर किचन में सबके लिए नाश्ता तैयार कर रही थी… आज सुधा अभी तक कमरे से नहीं निकली थी… नम्रता मन ही मन आने वाले झगड़े को लेकर आशंकित हो रही थी… तभी अनुज पानी लेने किचन आया…
आज वह बिल्कुल चुप था… नम्रता ने देखा सुधा भी नहीं आई है… अनुज भी चुप है… उसने अनुज से पूछा…
” क्या हुआ देवर जी… सब ठीक तो है ना… आज चुपचाप हैं… सुधा भी नहीं आई…!”
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” कुछ नहीं भाभी… लगता है अब फैसला लेना ही होगा…!”
” कैसा फैसला…!”
” अलग होने का… मैंने घर तो देख लिया है… बस यही सोच रहा हूं एक बार मां से बात कर लूं तो घर फाइनल कर दूंगा…!”
” क्या कह रहे हैं आप… मुझसे कोई गलती हो गई क्या…!”
” आपसे क्या… या फिर आपसे भी… हम सब से…!”
” पहेली मत बुझाइए…!”
” भाभी मैं सुधा को इस तरह नहीं देख सकता… वह यहां खुश नहीं है… वह अपनी तरफ से बहुत कोशिश कर रही है… इस घर में एडजस्ट होने की… पर आजकल बहुत उदास रहती है… मुझे कुछ नहीं कहा… पर मैं मां का रवैया जानता हूं… हम सब ने हमेशा मां की बातों का मान रखा… आप आईं तो आप भी मां की मर्जी के अनुसार ढल गईं… पर वह नहीं कर पा रही…!” बोलकर अनुज निकल गया…
नम्रता सोचने लगी… “ठीक ही तो कह रहे हैं… सुधा पहले की तरह कहां हंसती बोलती है… उसकी तो जैसे हंसी ही गुम हो गई है…!”
अचानक उसने कुछ सोचा और आनंदी जी के कमरे की तरफ बढ़ गई…आनंदी जी नहा धोकर अपने पति के साथ बैठी… सुधा की बुराई करने में व्यस्त थीं… सौरभ जी चुपचाप सुन रहे थे…
नम्रता के आते ही आनंदी जी बोलीं…” नहीं उठी ना अभी तक… आज उसे ऐसा सबक सिखाऊंगी……!”
बीच में ही नम्रता बोल पड़ी…” क्या करेंगी मां… सभी बातों में आप क्यों उलझती हैं… आप सिर्फ यह देखिए ना काम होता है या नहीं… कैसे होता है… इसके पीछे क्यों पड़ी रहती हैं…!”
” वाह बड़ी बहू… तुझे देवरानी को ज्ञान देते नहीं बना तो मुझे ही दे रही है…!”
” नहीं मां… बस आपने बड़ी बहू बनाया है तो उसका कर्तव्य निभा रही हूं… अनुज घर छोड़ने की सोच रहे हैं… अगर आपने अपनी जिद नहीं छोड़ी… तो हमारा परिवार टूट जाएगा…!”
सौरभ जी जो अब तक चुपचाप थे… अब चुप ना रहे…” नहीं आनंदी जी यह तो नहीं होना चाहिए… बड़ी बहु ठीक कह रही है… आप घर की छोटी-छोटी बातों पर अब ध्यान मत दीजिए… बहुएं संभाल लेंगी… और फिर बड़ी बहू तो आपके तौर तरीके भी सीख चुकी है… घर को बचाने के लिए यह जरूरी है…!”
“मां घर के नियमों से ज्यादा.… घर के सदस्यों का महत्व होता है ना… अगर कुछ कायदों को अपनाने में सुधा को परेशानी है… तो उन्हें छोड़ दीजिए ना…सुधा कितनी प्यारी लड़की है… उसका हंसमुख स्वभाव तो देखिए… अगर वह चली गई… तो घर कितना सूना पड़ जाएगा…!”
आनंदी जी सोच में पड़ गईं… फिर बोलीं…” कई सालों की आदत है… एक बार में तो नहीं छूटेगी… पर मैं कोशिश करूंगी…!”
आनंदी जी ने मन से कोशिश की… अब सुधा को घर में कोई परेशानी नहीं थी… वह फिर पहले की तरह चहकने लगी…
जब तक आनंदी जी जीवित रहीं… बड़ी बहू नम्रता ने उनके नियमों का बड़ी श्रद्धा से पालन किया… और सुधा भी स्वेच्छा से उसे जितना बन पड़ता था… घर में सहयोग करती थी…वह घर कभी नहीं टूटा…
आनंदी जी ने अपनी आखिरी सांस लेते समय अपनी बड़ी बहू को प्यार से सर पर हाथ रख कर कहा…” बहू जिस घर में तुम्हारी जैसी समझदार बड़ी बहू हो… वह घर कभी नहीं टूट सकता…!”
रश्मि झा मिश्रा