बड़ी बहू – डाॅ उर्मिला सिन्हा :  Moral Stories in Hindi

सूरज की ऊंचाइयों में तृप्ति का आनंद है तो नियति के गहन टेढ़ी-मेढ़ी कंदराओं में भटकते भी देर नहीं लगती।समय बड़ा बलवान… परिस्थितियां एक सी नहीं रहती।

   माही इस घर की बड़ी बहू बनकर आई थी। भरा-पूरा संयुक्त परिवार था। दादा-दादी, चाचा-चाची, बुआ फुफा उनके बाल-बच्चे और खुद के दो छोटी ननदें और एक देवर।

एक ननद रजनी का विवाह साल भर पहले हुआ था, माही के मायके से दहेज में आये पलंग,सोफ़ा सेट, आलमारी सब ननद के ससुराल सास-ससुर ने भेज दिया।

” तुम घर की बड़ी बहू हो, अतः तुम्हारे सामानों पर ननद का हक बनता है, तुम्हें कमी किस बात की है ” सासु मां ने ऐसे लहजे में कहा कि माही कटकर रह गई, माता-पिता ने ऐसे संस्कार दिए थे समझाकर भेजा था कि “वहां सास-ससुर का कहा मानना… सभी की सेवा करना ” माही उस सीख का पालन करते अपनी इच्छा को दबा दिया।

छोटी ननद रेखा कालेज में और देवर रमण इंजीनियरिंग की पढ़ाई बाहर कर रहा था। अभी छुट्टियों में आया हुआ है।

   ‌‌ माही का पति रवि नेवी में इंजीनियर था और छः महीने शीप पर और छः महीने घर आता था। दोनों साथ-साथ कहीं घुम आते , दुसरे शहर अपने मायके चली जाती… किंतु घर की जिम्मेदारियां बड़ी बहू का तमगा… उसपर ऐसा चिपका रहता था कि वह अपना वजूद खोने लगी थी। अभी उसकी उम्र ही क्या थी बाइस वर्ष में व्याह कर आई और दो वर्षों से गृहस्थिन बनी सबकी रोजमर्रे की जरुरतों के पीछे हलकान हो रही है।

” मुझे अपना फैशन डिजाइनिंग का कोर्स पूरा करना है”उसने राहुल से कहा।

” मना किसने किया है, शौक से करो “। राहुल चला गया फिर ननद की शादी, सासु मां के घुटने का दर्द, ससुर जी का हार्ट अटैक…देवर का पढ़ाई पूरी कर विदेश जाना वहीं किसी विदेशी लड़की से विवाह… सभी चाचा-चाची का‌ अपने-अपने संसार में सिमटना…इतनी तेजी से हुआ कि फैशन डिजाइनिंग का सपना मन में ही रह गया।

क्योंकि राहुल के जाते ही सब कोई माही को मुफ्त की नौकरानी ही समझता था।

    माही घर की बड़ी बहू यानि सभी घरेलू कामों का उत्तरदायित्व उसी का।।

    रवि के जाते ही घर के सभी सदस्य अपने पुराने ढर्रे पर आ गये।

” माही ,रात की रसोई के पश्चात कल नाश्ते और पूजा की तैयारी कर लेना” सासु मां आदतन माही को आवाज लगाने लगी।

   पता नही क्यों हर काम हंसते-हंसते करने वाली माही पति के वापस जाने से उदास हो गई थी… कुछ करने का मन नहीं हो रहा था,” अभी रसोई में जाकर देखती हूं” सोचते-सोचते उसकी आंखें लग गई और वह सो गई। ऐसे ही समय निकलता गया।

बड़ी बहू का उत्तरदायित्व निभाती माही दो बेटों और एक बेटी की मां बन गई। राहुल भी शिप छोड़ अपना व्यवसाय करने लगे। सास-ससुर रहे नहीं। देवर देवरानी आते भी तो होटल में ठहरते क्योंकि घर में उनकी आजादी में खलल पड़ता। दोनों ननदें पति बच्चों के साथ अवसर पर आती और बड़ी भाभी से आवभगत करवा, मुंहमांगी बिदाई लेकर चली जाती।

लोग बाग ,” बड़ी बहू हो तो माही जैसी” जब कहते तो कहीं दिल में खुशी होती।

माही की बेटी का विवाह सुयोग्य वर और सुखी-संपन्न परिवार में हो गया। संयोग से वह भी अपने घर की बड़ी बहू थी… ” अब मेरी बिटिया को भी मेरी तरह कुर्बानी देनी पड़ेगी अपनी इच्छाओं की ” ।

लेकिन दोनों बेटी दामाद आई टी प्रोफेशनल थे अतः कंपनी के काम से विदेश चले गए…बेटी दूर चली गई इसका हूक मन में था लेकिन बड़ी बहू ही सारा उत्तरदायित्व संभाले… इससे छुटकारा देख माही ने राहत की सांस ली।

अब आई दोनों बेटों के विवाह और बड़ी छोटी बहुओं के कार्य विभाजन का। कहते हैं दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है।माही ने दोनों बहुएं और बेटों को प्यार से समझाया,” तुम दोनों बहुएं बड़ी छोटी अवश्य हो, लेकिन घर की जिम्मेदारी, ख़र्च या रोज़मर्रा का कार्य दोनों की जिम्मेदारी है… बड़ी बहू को तुम बड़ी हो…कहकर जरुरत से ज्यादा अपेक्षाएं रखना उसके साथ अन्याय है और छोटी बहू को भी छोटी समझकर उसका दोहन भी स्वीकार नहीं है… अतः दोनों मिलजुलकर रहो… जितना कर सकती हो करो… और अपनी व्यक्तिगत रुचि योग्यता का सम्मान करो।जिसे नौकरी करना है नौकरी करे … कोई शौक़ हो उसे पूरा करे लेकिन घर की मर्यादा को ध्यान में रखकर… मंजूर ” माही हंस पड़ी।

इतनी स्नेह मयी सुलझी हुई विचार धारा की सासु मां… पढ़ी-लिखी दोनों आधुनिक बहुओं ने हां में सर झुका दिया।

मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा 

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