“भाभी कहो तो अपने अनुज के लिए मेरी भांजी सुमन की बात करूं? लड़की पढ़ी लिखी सुंदर तो है ही साथ ही खूब दहेज भी लाएगी । मेरी ननद को अपना घर परिवार पसंद है इसलिए वरना रिश्तों की कोई कमी नहीं है “
कुसुम अपनी भाभी सरला से बोली
“नहीं जीजी कल ही गुप्ता जी की बेटी शीतल का रिश्ता आया है “सरला आगे कुछ बोलती उससे पहले ही कुसुम बोली
“अरे भाभी वहां से कुछ नहीं आने वाला, उन्होंने अपनी बड़ी बेटी को भी दो जोड़ी कपड़ों में ही ब्याह दिया था “
“जीजी हमे भी बड़ी बहु बस दो जोड़ी कपड़ों में ही चाहिए तभी तो एक नई शुरुआत होगी जब बहु दहेज नहीं संस्कार साथ लेकर आएगी “
“बस भाभी आप और आपके संस्कार मुझे तो माफ ही करो” कहकर कुसुम ने फोन रख दिया
कुछ दिनों बाद सरला जी के बेटे अनुज से गुप्ता जी की बेटी शीतल की शादी हो गई और वो उनके घर की बड़ी बहु बनकर आ गई
जैसा नाम वैसा गुण
शीतल आते ही सारे घर परिवार के रंग में रंग गई और सरला जी को उसके रूप में एक बेटी मिल गई( सरला जी के दो बेटे थे अनुज और प्रत्यूष)
शीतल का ससुराल भरा पूरा था दादी सास ,सास,ससुर जी और एक देवर
शीतल पूरे परिवार वालों का बहुत ही ख्याल रखती और मोहल्ले पड़ोस में भी सभी बड़े बूढों से जब कभी मिलती पैर छूना नहीं भूलती थी। थोड़े दिनों में ही अपने मितभाषी व्यवहार से उसने अपनी पहचान बना ली।
मोहल्ले की औरतें जब भी सरला जी से मिलती कहती
“अरे बड़ी बहु तो बहुत संस्कारी है , जब भी मिलती है बोले बिना नहीं रहती और बच्चों से भी खूब हंसी मजाक करती है
सब बच्चों की भाभी बन गई आते ही और सरला जी खूब खुश होती।
ससुर जी के कहने से पहले ही उनकी चाय टेबल पर होती तो सासु मां की पूजा की थाली उन्हें हमेशा तैयार मिलती। दादी सास को खाने के बाद मीठा पसंद था ये उसे मालूम था तो हमेशा घर में मीठा बनाती रहती थी पर उन्हें शुगर की बीमारी थी इसलिए कम ही देती थी।फिर कभी वो बोलती ” बहु ,तेरी बड़ी बहु तो तुझसे भी तेज़ निकली जरा मरा सा खाने देती है बस।
शीतल कहती दादी मां आप तो हम सबकी जान हो आपको कुछ हो गया तो
अरे अभी कहीं न जाने वाली मै तेरे बच्चों का ब्याह देखके ही जाऊंगी और शीतल दादी सास के गले लग जाती
कभी कभार सरला जी और उनकी सास में तू तू मैं मैं होती तो झगड़ा वो ही सुलझाती
दोनों के सामने रोने का नाटक करती और वो दोनों झट से झगड़ा भूल उसे गले लगा लेती और कहती तू रोती हुई अच्छी न लगती
तो आप भी लड़ते हुए अच्छे नहीं लगती शीतल बोलती
बड़ी बहु के आने से परिवार में बेटी की कमी पूरी हो गई और ससुर जी जब सास बहु को इतने प्यार से साथ रहते हुए देखते तो नज़र उतार लेते और मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा करते।
अनुज भी ऐसी संस्कारी पत्नि पाकर बहुत खुश था जो सास बहु की किच किच से अपने पति को परेशान नहीं करती थी बल्कि सास बहु अपने झगड़े खुद ही सुलझा लेती थी।
वैसे तो सास बहु में कभी झगड़े होते नहीं थे पर दो लोग होंगे तो विचार भी थोड़े अलग ही होना स्वाभाविक है और जेनरेशन गैप भी था पर शीतल ने सासु मां को पहले ही बोल दिया था कि मेरी गलती मुझे ही बताएं न कि अनुज को
क्योंकि गलती मेरी है तो सुधारना मुझे ही हैं न फिर बात का बतंगड़ क्यों बनाना।
कभी सास कुछ बोलती तो वो चुप रहकर सुन लेती पर कभी उल्टा जवाब नहीं देती।
एक बार कुसुम, शीतल की बुआ सास अपने मायके आई हुई थी एक तो राखी का त्योहार था , दूसरा शीतल की परख भी करना चाहती थी इसलिए एक, दो दिनों के लिए रुक गई।
शीतल सुबह 5.30 बजे उठ जाती थी क्योंकि उसके ससुर जी, सास और दादी सास को जल्दी उठने की आदत थी। शीतल नहीं चाहती कि उसके होते हुए किसी को कोई परेशानी हो इसलिए हमेशा वो ही सुबह की चाय बनाती और सबके साथ ही चाय पीती। कुसुम यह देखकर दंग रह गई और भाभी से बोली “वाह भाभी तुम्हे तो बड़ी बहु के आने से बहुत राहत मिल गई । मेरी बहु तो सुबह 7 बजे से पहले उठती ही नहीं। हमारी चाय तो क्या ही बनाएगी उसकी चाय भी मुझे बनाकर देनी पड़ती है। “
“हां जीजी ये तो है जब से शीतल आई है इसे कभी जगाने की जरूरत ही नहीं पड़ी । हमारे उठने के साथ वो भी उठ जाती है। मै बोलती हूं तू आराम से उठ जाना तो कहती है मां मै आराम करूं और आप काम करो तो अच्छा नहीं लगता। और इसी बहाने सुबह जल्दी उठने की आदत भी लग जाएगी।
मेरे मायके में मेरी मम्मी और चाची भी अम्मा के साथ ही सुबह की चाय पीती हैं और अपने मन की बातें भी एक दूसरे से साझा करती हैं ।
हम भी ऐसे ही उठकर अपने मन की बात साझा करे और पूरे दिन का प्लान बना ले तो कितना अच्छा रहेगा न”
“अरे वाह भाभी,बहु तो सच में बहुत समझदार है । दहेज लाई न लाई पर संस्कार ज़रूर साथ लाई है।”
दिन में बुआ जी ने देखा शीतल खाना भी सबके साथ ही खा रही थी न कि उनकी बहु की तरह टीवी के सामने बैठकर या अपने कमरे में जाकर
बड़ी बहु ने बुआजी की भी खूब आवभगत की जिसे देखकर बुआजी उसे खूब आशीर्वाद देकर गई
घर जाकर जब अपनी बड़ी बहु को वहां की बातें सुनाई तो वो अनसुना कर अपने कमरे में चल दी और बुआजी अपना सा मुंह लेकर रह गई
एक साल बाद सरला जी के छोटे बेटे प्रत्यूष की भी शादी हो गई और ज्योति के रूप में शीतल को देवरानी मिल गई।
कहने को शीतल बड़ी बहु थी पर ज्योति पर कभी जेठानी का रौब नहीं दिखाया बल्कि उसे समझाती कि घबराने की कोई जरूरत नहीं है मै हूं न तुम्हारा साथ देने के लिए।
शीतल के रहते सरला जी को पूरा विश्वास था कि ज्योति को कभी भी मायके की कमी महसूस नहीं होगी क्योंकि सास तो बहु को प्यार करती ही है पर जेठानी देवरानी में काम को लेकर तकरार होने की आशंका ज्यादा रहती है।
शीतल समझदार थी तो कभी ये नौबत आने ही नहीं दी। धीरे धीरे देवरानी जेठानी अच्छी दोस्त बन गई । ज्योति भी वैसे ही करने लगी जैसे शीतल करती थी । पर कुछ महीनों बाद छोटी बहु ने एक स्कूल में नौकरी कर ली क्योंकि शादी से पहले भी वो नौकरी करती थी तो शादी के बाद भी उसने इच्छा जाहिर की और परिवार के सहयोग से ये संभव हो गया ।
ज्योति ने शीतल को बोला “भाभी अब मैं स्कूल जाऊंगी तो पूरे काम में आपका हाथ नहीं बंटा पाऊंगी , आप सम्हाल लेंगी?”
“अरे क्यों नहीं ज्योति हम मिलकर काम करेंगे तो सब हो जाएगा।” शीतल और ज्योति ने अपनी अपनी सहूलियत से काम का बंटवारा कर लिया बाकी सरला जी तो थी ही।
घर के मर्दों को कभी बीच में बोलने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि बात उन तक पहुंचती ही नहीं थी। जब घर में बड़ी बहु समझदारी दिखाए और समस्या को अपने तरीके से सुलझा ले तो सोने पे सुहागा
सरला जी के परिवार में घर का माहौल इसलिए तनावमुक्त रहता था क्योंकि घर की औरतें समझदार थी । उनके बीच मतभेद भले ही होते थे पर मनभेद कभी नहीं हुए और नतीजा एक खुशहाल परिवार के रूप में सबके सामने था।
कुसुम जी की तो छोटी बहु भी बड़ी बहु के पदचिन्हों पर चलने लगी। जल्दी ही दोनों अलग हो गई और कुसुम जी अपने पति के साथ बुढ़ापे में भी खुद घर का काम करने को मजबूर हो गई।कुसुम जी की बहु दहेज जरूर लाई होंगी पर संस्कार नहीं।
उन्हें रह रह कर अपनी भाभी की बात याद आती
जीजी बड़ी बहु दहेज लाए न लाए पर संस्कार साथ लाएगी
और ये बात सच भी थी शीतल ने बड़ी बहु के रूप में अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई थी और देवरानी के समक्ष अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया जिससे कभी भी रिश्तों में दरार नहीं आई ।
सच है दोस्तों जब घर की बड़ी बहु बड़े होने की ठसक नहीं बल्कि बड़प्पन दिखाएं तो छोटे भी उनकी बात सहजता से मान लेते हैं और परिवार के एकजुट रहने में विश्वास भी करते हैं
आपकी क्या राय है। अपने विचारों से अवगत कराना न भूलें और हमेशा की तरह मेरा उत्साहवर्धन करते रहें
धन्यवाद
निशा जैन