“अम्मा नहीं रहीं अपर्णा भाभी ” ! सीमा की रूखी मगर झकझोर देने वाली आवाज़ सुनकर अपर्णा के मन में ससुराल के प्रति दायित्व हिलोरें ले रहा था लेकिन कोई उचित राह दिखाने वाला नहीं था । अपने ऊपर लगे हुए आरोप – प्रत्यारोपों , लांछन सबको दरकिनार करते हुए वह दोनों बेटियों को लेकर हिम्मत से अपनी रोजी रोटी अर्थात सिलाई मशीन छोड़ जिस अवस्था में थी उसी तरह ऑटो में बैठकर ससुराल के लिए निकल गयी । मुश्किल से दो घण्टे की दूरी पर ससुराल था ।
ऑटो में आँखे बंद करते ही अनेकानेक विचार उसके मन में आने लगे …जब वो ब्याह करके आयी थी तो सासु माँ मुग्धा जी उसके रूप और कार्य कुशलता देख फूली नहीं समाती थीं । अपर्णा ने रूप के साथ गुण भी पाया था ।बहुत कामकाजी और कर्तव्यनिष्ठ महिला थी । #बड़ी बहू के रूप में वो खरी उतरती थी । ससुर जी दुर्घटना में पहले ही चल बसे थे । अपर्णा की शादी के एक साल बाद उसके देवर समीर की शादी भी सीमा से हो गयी थी । सीमा यूँ तो स्वभाव से गर्म थी लेकिन दोनों ननदों की वो चहेती थी क्योंकि वो मन मुताबिक दहेज लायी थी । परिवार में सास मुग्धा जी, दो बेटे सौरभ, समीर दो बेटियाँ मधु और निधि थीं ।
तीन साल के बाद अपर्णा की जुड़वा बेटियों ने जन्म लिया । एक दिन सौरभ की अचानक तबियत खराब हुई । ईलाज कराया गया पर ठीक नहीं हो सका और चल बसा । मुग्धा जी ने अपर्णा के दिल की हालत को बिना सोचे समझे ही उसे अपशब्द और मनहूस कहते हुए घर से बाहर निकाल दिया ।
अपनी दोनो बेटियों को लेकर अपर्णा ने अपनी किसी सहेली के घर छोटा सा ठिकाना ढूंढा और कम किराए में अपने हुनर के दम पर कमाने के लिए सिलाई करना शुरू कर दिया । देखते देखते साल भर में अपनी मेहनत से बुटीक खोल लिया । मुग्धा जी के पति यूँ तो अध्यापक थे , दो अच्छे घर और एक पार्टी हॉल भी था पर वो जीते जिंदगी किसी बच्चों को सम्पत्ति नहीं देना चाहते थे । पर कभी – कभी मजाक में बोलते थे..सम्पत्ति में सभी बच्चों के हिस्से होंगे ।दोनों बेटियों को बहुत ही अच्छे धनी घर में ब्याहा गया था जहाँ वो हर सुख सुविधा से सम्पन्न थीं ।
सौरभ के पास आय का साधन सिर्फ छोटी सी किराने की दुकान थी और समीर की प्राइवेट नौकरी थी । कुछ दिनों से नौकरी में भी बहुत उतार -चढ़ाव चल रहे थे तो समीर की मानसिक हालत अस्थिर थी । तेज झटके के साथ ऑटो रुकी तोअपर्णा की आँखें खुली । ऑटो वाले को पैसे देकर जैसे ही वो बगीचे के रास्ते दहलीज़ पर जाने लगी तो पिछली बातें टीस की तरह उसे चुभ रही थीं । दरवाज़े से अंदर जाते ही बुआ सास केतकी जी से उसकी नज़रें टकराई तो केतकी जी उसे बाहों में समेटते हुए अंदर ले गईं ।
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मुग्धा जी का पार्थिव शरीर देखकर बेटियों को पैर छूने का इशारा करते हुए ज़ोर से अपर्णा रोने लगी । रोकर जी हल्का कर लेने के बाद जब वह उठी तो उसका गला सूख रहा था । भर घर लोग होते हुए भी अपर्णा बुआ के अलावा किसी में अपनापन नहीं महसूस कर पा रही थी । मुग्धा जी के मायके और ससुरालवालों से घर पूरा भरा हुआ था ।लेकिन फिर भी बिल्कुल अजनबी सी वह खुद को महसूस कर रही थी । बस पार्थिव शरीर मुग्धा जी के भाई के लिए रखा हुआ था ।
पानी पीकर रसोई से जाने लगी अपर्णा तो उसे घर का और कोई सदस्य नहीं दिखा । फिर थोड़ी आवाज़ सीढ़ी के तरफ वाले कमरे से आई तो उधर बढ़ गयी अपर्णा । आस – पास सन्नाटा था । नज़दीक गयी तो मधु दीदी की तेज आवाज़ सुनाई दी । अपर्णा थोड़ा ठिठक कर सुनने लगी । एक ही कमरे में समीर, मधु दीदी, सीमा और निधि थे । समीर ने मधु से कहा…”दीदी ! घर की स्थिति देख ही रही हो, इतना बदकिस्मत हूँ कि मम्मी के क्रियाकर्म अच्छे से कर सकूँ इसके लिए भी पैसे नहीं हैं ।
नौकरी में इतनी उथल पुथल चल रही है कि खाऊंगा कहाँ से ? इतने अच्छे घर में तुम दोनों को ब्याहा गया है तो मैं चाहता हूँ कर्ज के रुप में ही सही तुमलोग मदद कर दो । रिश्तेदार इतने आ गए हैं कि मेरे लिए सोचना भी बहुत मुश्किल है । मधु ने साफ शब्दों में कह दिया..”मेरे ससुरालवालों के सामने मुझे अपनी इज्जत बहुत प्यारी है, मैं कोई मदद नहीं कर सकती । मधु दीदी की बातें सुनकर निधि ने टाल मटोल करते हुए कहा…”जिम्मेदारी तुम्हारी है समीर , तुम्हें ही देखना होगा । मुझे अभी पैसों का बहुत काम है
और बच्चों के एडमिशन में भी बहुत खर्च है अभी । मम्मी ने हमारे साथ कितना अन्याय किया..बोला करती थी कि अपने जीते जिंदगी सम्पत्ति में आधा हिस्सा तुमलोग को भी देकर जाऊँगी । निधि की बात पूरी होने से पहले ही मधु ने कहा..”अभी भी समय है समीर ! काम खत्म होने के बाद हमारा हिस्सा हमे सौंप दो, अब तो मम्मी नहीं है तो हमारा आना भी नहीं होगा यहाँ ।
“बस करोsssss ! समीर ने चीखते हुए कहा । तुमलोग को शर्म नहीं आती, मम्मी के चले जाने का दुःख महसूस नहीं कर रही हो और गिद्ध की तरह सम्पत्ति पर नज़रें गड़ाई हुई हो । ऐसी भी निर्दयी औलाद होती है क्या ? अच्छा हुआ मम्मी ये दिन देखने के लिए नहीं है । वरना इंसानियत और रिश्तों से भरोसा उठ जाता उनका ।रो रोकर समीर की आँखें लाल हो चुकी थीं । अब वो चुपचाप सिर पर हाथ रखकर लेटा हुआ था ।सीमा समीर के कंधे पर हाथ रखकर बिठाते हुए बोलने लगी..”ये क्रियाकर्म खत्म होने के बाद हम सबकुछ फाइनल कर लेंगे, अभी बाहर चलो । मामाजी आ गए हैं । दो मिनट की चुप्पी छा गयी । समीर आँखें बंद करके सोचने लगा तो उसका सिर दर्द से फटने लगा । आँखों को बार बार वह भींच रहा था ।
सारा माजरा समझ चुकी थी अपर्णा । वह अंदर अंदर सिसक रही थी और अपनी ननदों के भयानक रूप को देखकर दंग थी । बड़ी हिम्मत करके वह आगे बढ़ी और अपने पर्स से पचास हजार रुपए निकालकर समीर के हाथों में ले जाकर पकड़ा दिया ।
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समीर चेहरे पर आश्चर्य मिश्रित भाव लिए अपर्णा को पढ़ने की कोशिश कर रहा था । अपर्णा के पैर छूकर समीर बोला…भाभी ! आप कब आईं ? और इतने पैसे ? आपने तो एक घड़ी में सारी समस्या सुलझा दिया । सब अवाक खड़े होकर एकटक अपर्णा को निहारने में लगे थे । समीर के सिर पर हाथ फेरते हुए अपर्णा ने कहा..”ये बोलकर एहसान मत जताओ समीर ! मम्मी जी ने तो कभी अपना नहीं समझा पर ये भी सच है कि मैं इस घर की # बड़ी बहू हूँ । और बड़ी बहू के नाते मेरा फ़र्ज़ है मम्मी जी और इस घर के प्रति ध्यान देना । मेरे बुटीक से कमाए हुए पैसे हैं। शायद मम्मी जी की दुत्कार के बाद ही मैं यहाँ तक पहुँची । समीर और सीमा ने अपर्णा की बेटियों का माथा चूम लिया ।
थोड़ी देर बाद मुग्धा जी का दाह संस्कार हो गया । अगले दिन समीर ने सम्पत्ति के सारे कागज क्लियर करके और हस्ताक्षर करा के दोनों बहनों का हिस्सा उन्हें सौंप दिया । बहुत खुश थीं दोनों । उन्होंने केतकी बुआ से कहा..”आपका भी हक़ है बुआ , बताइए आपको क्या चाहिए । केतकी बुआ ने हाथ जोड़कर कहा..”मेरे लिए रिश्तों से बढ़कर कोई सुख नहीं है । इस पैसे को लेकर मुझे असली सुख से दूर नहीं होना । यहाँ मायके में कदम पड़ते रहे, बस और क्या चाहिए ।
अब मधु निधि को छोड़कर सब एक कमरे में साथ थे । वो दोनो अपने ससुराल में बाज़ी जीतने की खबर सुनाने में लगी थीं । कुछ देर बाद देखा बाहर सन्नाटा था । कोई उन्हें किसी बात के लिए समलित नहीं कर रहा था । बुआ के रूखे व्यवहार देखकर निधि भाप गयी कि उसने बहुत बड़ा गुनाह कर दिया है ।
सबकी बेरुखी का सामना करते हुए वह सजल नयनों से रिश्तेदारों को और मम्मी की फोटो को निहार रही थी । शायद बुआ की कही बातें उसके दिल को अंदर से भिगो गयी थी और तार- तार कर रही थी। पर इस भूल का शायद कोई प्रायश्चित नहीं था ।
मौलिक , स्वरचित
अर्चना सिंह