बड़ी बहू का घर में आगमन होने वाला था । घर सजा हुआ और सभी उत्साह से तैयारी कर रहे थे । ननद और देवर तो बारात में गए थे और वैवाहिक कार्यक्रम का लुत्फ उठा रहे थे । इधर घर पर सास, चाची सास, बुआ सास, मामी सास सम सभी प्रतीक्षा में थे । जैसे ही शादी की डेट तय हुई उस समय से घर में रंग रोगन सब कराया गया ।
बड़ी बहू के लिए नवनिर्मित कमरा फूलों से सजाया गया । बहुत सी उम्मीदें सबकी बड़ी बहू से थी । बड़ी बहु बहुत ही अच्छी सबका ख्याल रखने वाली थी । बहुत सालों तक उसने सबकी पसंद नापसंद का ध्यान रखा । किसको क्या पसंद है बना बनाकर खिलाया । घर को बहुत अच्छे से मैनेज किया ।
घर वाले सीधे-साधे थे । बहुत कुछ उन सभी को नया सिखाया । सभी ननद देवर का बैंक अकाउंट खुलवाया । अभी तक किसी का अकाउंट नहीं था सभी को सेविंग करना सिखाया। अपने मायके में दो भाइयों पर अकेली बहन होने के कारण बहुत ही लाड़ प्यार से परवरिश हुई थी ।सबके मन को मोहने वाली बड़ी बहू हमेशा सबके सहयोग के लिए तत्पर रहती ।वह नौकरी में थी इसलिए छुट्टी समाप्त होते हैं नौकरी पर चली गयी । बड़े शहर में पोस्टिंग थी तो लोगों का कुछ ना कुछ काम से आना-जाना लगा रहता । कभी ससुराल तरफ से मामा का परिवार, कभी चाचा
का परिवार कभी स्वयं का परिवार अपने लोग । हमेशा सबका सहयोग करती चाहे शॉपिंग हो या चिकित्सीय सुविधा हर संभव प्रयास किया कि सब का ख्याल रखें । उसके मायके वाले भी हमेशा आते ही रहते हैं और सबके आव भगत में हमेशा लगी रहती । लगभग नौ वर्षों तक बच्चा नहीं होने से दुखी रहने लगी । जगह-जगह इलाज करवाया होम्योपैथी, आयुर्वेदिक और एलोपैथी पर वह कन्सीव नहीं कर पा रही थी । एक दो बार कंसीव हुआ तो समय से पहले गर्भपात हो गया । बड़ी बहू परेशान रहने लगी लोग जिनके लिए उसने बहुत किया वह भी बातें बनाने लगे
इस बात को लेकर । सामने नहीं तो पीठ पीछे बात करते सास के दिमाग में भी ऐसी बातों को डालते रहते । सास भी दुखी थी पर मुँह से कुछ न कहती जानती थी की बड़ी बहू का कोई दोष नहीं है समस्या तो किसी के साथ भी हो सकती है । उसके देवर और ननद का विवाह हुआ दो देवरानियाँ भी आ गई । अब बड़ी बहू को लगता कि मेरे से पहले
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इन लोग मां बन गई तो मेरी वैल्यू खत्म हो जाएगी । पर नियति को कुछ और ही मंजूर था दोनों देवरानियाँ जो कि स्वस्थ थी पर वह भी कन्सीव नहीं कर पा रही थी । ईश्वरीय चमत्कार हुआ और बड़ी बहू को एक प्यारी सी लड़की हुई । सबके लिए प्यारी दुलारी बच्ची बन गई । अब वह अपना पूरा ध्यान अपने बच्ची को देती जिसके कारण लोगों को लगता कि अब तक बड़ी बहू हम सब का बहुत ख्याल रखती थी अब ध्यान नहीं रखती ।
परिवार के लोग तरह की बातें बनाते हैं बड़ी बहू इतने लंबे अंतराल के बाद मातृत्व सुख पाई थी वह अपने बच्ची में मग्न रहती । बाद में यह बातें सामने आने लगी । बड़ी बहू को बहुत दुख हुआ । सोचने लगी लोग कितने स्वार्थी होते हैं इन लोगों के लिए मैं दस वर्ष अपना समर्पित किया इसका फल आज यहीं मिल रहा है । बड़ी बहू ने सबके सामने कहा कि अब जिंदगी मेरी मेरी बच्ची ही है अब पूरा समय में इसको दूंगी उसके बाद ही कुछ और कर पाऊंगी । बड़ी बहू की भावनाओं को समझ कर भी अनदेखा कर जाते लोग तब बड़ी बहू को बहुत खराब लगता । बड़ी बहू ने अपने सभी कर्तव्य निभाएँ जितना वह कर सकती थी । बिटिया बड़ी हो गई आज भी बड़ी बहू सब के लिए अपने कर्तव्य पथ पर चल रही है ।
अनिता मंदिलवार सपना
व्याख्याता, साहित्यकार
अंबिकापुर सरगुजा छत्तीसगढ़