हो गई सारी तैयारी? कल के लिए जो भी सामान चाहिए बता देना केतकी, मेहमानों की आवभगत में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए…..सुहास बोला।
हां हां हो गई सारी तैयारी ,तुम चिंता मत करो बस एक बार याद से सबको फोन कर देना….
हम्म… कर दूंगा सुबह, चलो अब सो जाओ
बहुत रात हो गई
अगली सुबह…..
ठीक बारह बजे बाद बधाई देने वालों का तांता लग गया सुहास और केतकी के घर।
बधाई हो सुहास, बधाई हो शुभम की आवाजों से पूरा घर गूंज उठा। चारों ओर खुशी की लहर दौड़ गई।
आज दिन ही ऐसा था कि बधाइयां तो मिलनी ही थीं।
चलिए जानते हैं आखिर सुहास और शुभम( सुहास और केतकी का बेटा) को ही बधाई क्यों मिल रही थी?
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शुभम ने दसवीं बोर्ड में 95 प्रतिशत अंकों के साथ अपना स्कूल टॉप किया था तो सुहास की भी पदोन्नति कंपनी के एक बड़े अधिकारी के रूप में हो गई थी। सब रिश्तेदार और पड़ोसी काफी दिनों से पार्टी मांग रहे थे तो केतकी ने सोचा रविवार को सब फ्री होंगे तो घर पर ही एक छोटा सा गेट टुगेदर रख लेंगे और सबसे मिलना हो जाएगा और पार्टी भी हो जायेगी।
बस इसी खुशी में आज केतकी और सुहास के घर बधाई देने वालों का तांता लगा था।
सब लोग सुहास की तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे….
अरे सुहास कमाल कर दिया तूने यार, मेरे बाद नौकरी ज्वाइन की और मुझसे पहले प्रमोशन पर प्रमोशन मिल रहे हैं तुझे। बहुत मेहनत करता है यार तू। दिन रात लगा रहता है। जब तक प्रोजेक्ट को पूरा नहीं कर लेता तब तक दम नहीं लेता है। सुहास के सहकर्मी मिश्रा जी बोले।
हां मेरा बेटा शुरू से ही ऐसा है, जो काम हाथ में लेता है उसे पूरा करके ही मानता है…. सुहास की मां रेवती जी बोलीं।
और शुभम भी बिल्कुल सुहास पर गया है , देख तो मेरे पोते ने बिना ट्यूशन के ही कितने अच्छे नंबर लाकर स्कूल टॉप करके दिखा दिया…. शुभम को गले लगाते हुए रेवती जी फिर बोलीं।
हां ये बात तो है आंटी , दसवीं में बिना कोचिंग इतने मार्क्स लाना बहुत बड़ी बात है… सुहास का दोस्त अरुण बोला केतकी सबकी आवभगत में लग रही थी। बहुत ही अच्छा इंतजाम किया था उसने पार्टी का । सबने खूब चटकारे लेकर खाना खाया पर मजाल है किसी ने केतकी की प्रशंसा भी की हो । सब दोस्त रिश्तेदार बस सुहास और शुभम को ही बधाइयां दे रहे थे। केतकी भी बहुत खुश नजर आ रही थी अपने पति और बेटे की उपलब्धि पर …. लेकिन मन में कहीं न कहीं इस बात का मलाल उसे जरूर था कि कोई उसको बधाई नही दे रहा आखिर उसने भी तो पूरी मेहनत की है अपने पति और बेटे की इस उपलब्धि के लिए। तन मन से पूरे समर्पण के साथ उसने भी तो आखिर दिन रात एक किया है दोनो के लिए … पर उसके समर्पण को सब नजरंदाज कर रहे हैं।
तभी थोड़ी देर बार केतकी की छोटी बहिन स्मिता आई जो उसी शहर में रहती थी।
आते ही उसने अपनी बहन को गले लगा लिया और कहने लगी
बधाई हो दीदी, बहुत बहुत बधाई हो…. आपकी मेहनत सफल हो गई
थैंक यू मेरी प्यारी बहना पर बता इतना लेट क्यों आई?
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अरे आज एन जी ओ में कुछ काम था अर्जेंट तो बस वहां से आते आते लेट हो गई।
ठीक है चल अब आ गई है तो रात को तो रुकेगी न…
हां दीदी , अभी जीजू और शुभम , आंटी से मिलना भी तो बाकी है। सबके जाने के बाद बैठेंगे सब साथ में….
रात को सब साथ बैठकर सुबह की पार्टी के बारे में बात कर रहे थे कि सब अच्छे से हो गया तभी रेवती जी बोली
स्मिता एक बात समझ नहीं आई
वो क्या आंटी?
सुहास और शुभम को बधाई देना तो बनता है कि उनको तो उपलब्धि मिली है पर बहु को बधाई किसलिए?
अरे ये क्या बात कर रही हो आंटी आप? क्या बिना दीदी के जीजू और शुभम को ये उपलब्धि मिल सकती थी? क्या इस बधाई की हकदार दीदी नहीं?
बेशक जीजू और शुभम ने मेहनत की है पर दीदी ने भी मेहनत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । घर की जिम्मेदारी, बच्चों की जिम्मेदारी, रिश्तेदारों की जिम्मेदारी सब दीदी ने अपने कंधे पर ले ली। पूरे समर्पण के साथ सारे काम संभाले तब ही तो जीजू अपने काम , ऑफिस पर पूरा फोकस कर पाए।
घर का वातावरण , इन दोनों की सेहत का ध्यान , जरूरतों का ध्यान दीदी ने अच्छे से रखा तब ही तो तनाव रहित होकर दोनों अपने उद्देश्य को सफल कर पाएं
और आंटी ,दीदी बचपन से ही बहुत मेधावी रही हैं वो अलग बात है कि इन्होंने नौकरी करने के बजाय घर सम्हालना ज्यादा जरूरी और उचित समझा। और शुभम को भी ट्यूशन की जरूरत इसलिए नहीं पड़ी क्योंकि दीदी इसकी पढ़ाई देखती आई है अभी तक।
और ये तो आपको भी पता है दीदी पूरे तन , मन और समर्पण के साथ अपने हिस्से की सारी जिम्मेदारियां पूरी करती है।
हां बेटा ये बात तो है। चाहे सुहास हफ्ते में एकाध बार फोन करता है अपनी बहनों और बुआ, चाचा को पर केतकी नियम से अपनी ननदों के हाल चाल पूछती रहती है। सबसे रिश्ते निभा कर चलती है।
इसलिए तो बोल रही हूं आंटी ….दीदी ,जीजू को सारी चिंताओं से मुक्त रखती है। उनसे कोई तर्क वितर्क नही करती। वो कभी लेट भी आए तो कोई जासूसी नही करती। उन पर पूरा विश्वास करती है । घर का वातावरण सकारात्मक और शांतिपूर्ण रखती है। तभी तो वो पूरे समर्पण के साथ अपना ऑफिस वर्क संभालते हैं और तरक्की करते हैं। जितना जीजू अपने ऑफिस के लिए समर्पित हैं उतनी दीदी भी तो अपने घर परिवार के लिए समर्पित है
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है कि नहीं जीजू
अरे हां साली साहिबा , हां। आप बिलकुल सही हैं मोहतरमा और कहते हुए सुहास हंसने लगता है।
चलो अब बुलाओ तो अपनी दीदी को हम भी दे दें उसको बधाई रेवती जी बोलीं।
केतकी तब तक सबके लिए चाय लेकर आ जाती है
बधाई हो बहु, और माफ करना बधाई देने मे थोड़ा लेट हो गई
बधाई की असली हकदार तो तुम हो…
हमने कभी ऐसा सोचा ही नहीं कि घर के मर्द की सफलता में औरत का भी पूरा पूरा हाथ होता है हम हमेशा पर्दे के पीछे रहकर काम करते है जैसे फिल्मों में डायरेक्टर और टीम के बाकी मेंबर…. पर ध्यान सिर्फ हीरो या हीरोइन की एक्टिंग पर जाता है उसी तरह घर में भी ध्यान सिर्फ सफल होने वाले आदमी पर जाता है। सारा क्रेडिट उसी को मिल जाता है और बधाई का श्रेय भी।
पर बधाई की असली हकदार तो तुम हो जिसने हर परिस्थिति में मेरे बेटे का साथ दिया , उसका उत्साहवर्धन किया, गलत काम करने से रोका, हमेशा ईमानदार रहने के लिए प्रेरित किया। तुम्हारे बिना न सुहास और न ही शुभम अपने जीवन में कामयाब होते।
सच बताऊं तो हम हमेशा जैसा देखते आए वैसा करते आए ।हमारी सासू मां ने कभी हमारे पतियों की सफलता के पीछे हमे उत्तरदायी नही माना, हमारे समर्पण को कभी समझा ही नहीं तो हमे भी यही लगा मेहनत करना आदमी का काम है और औरत का काम उसके आदेश का पालन करना पर स्मृति को थैंक यू बोलना पड़ेगा जो उसने आज इस सच्चाई से हमे रूबरू कराया कि पति की सफलता का जितना श्रेय पति को जाता है उतना ही पत्नी को भी और बच्चों की हर कामयाबी के पीछे भी उसकी मां का हाथ होता है।
आज केतकी का मन खुशी से फूला नहीं समा रहा था क्योंकि उसका समर्पण बेकार नहीं गया । उसको भी उसकी मेहनत का पारिश्रमिक आज बधाई के रूप में मिल जो गया था
स्वरचित और मौलिक
निशा जैन
#समर्पण