बड़े भैया – नीरजा नामदेव

चार भाई बहन साकेत, निकेत और रिद्धि, सिद्धि हंसी खुशी अपने माता-पिता के साथ रहते थे।  साकेत और उनके भाई निकेत के बीच 8 वर्ष का अंतर था ।इसी प्रकार रिद्धि और सिद्धि उनसे बहुत छोटी थी। तीनो भाई बहन उन्हें बड़े भैया कहते थे।

बचपन से ही साकेत अपने तीनों भाई बहनों पर जान छिड़कते थे। उनकी बहुत अच्छे से देखभाल करते थे। माता-पिता उनके बीच के प्रेम को देखकर प्रसन्न रहते थे । 

साकेत को जेब खर्च के जो भी पैसे मिलते उन्हें भी वह अपने तीनों भाई बहनों को ही दे देते कि  इससे कुछ लेकर खा लेना। हमेशा अपने हिस्से की चीजें अपने भाई बहनों को ही बांट दिया। सब अपने अपने स्कूल और कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे।

समय आने पर साकेत की नौकरी लग गई और उनका विवाह भी हो गया ।उनकी पत्नी सुकन्या भी उन्हीं के। जैसे ही दिलदार थी। अपने देवर ननदों पर भरपूर स्नेह लुटाती थी। कभी भी अपने

देवर ननदों से ईर्ष्या नहीं करती थी। अपने सास-ससुर का भी पूरा ध्यान रखती थी। साकेत के पिता दफ्तर में बाबू थे ।दोनों के वेतन से घर का खर्च अच्छे से चल जाता था।

        निकेत का मेडिकल में चयन हो गया लेकिन इतनी महंगी पढ़ाई कैसे कर पाएंगे इस बात की पिता को चिंता हो गई थी। तब साकेत ने आगे बढ़कर कहा “बाबूजी आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए ।हम निकेत को पढ़ाएंगे। आप के वेतन से घर का खर्चा चलेगा

और मैं अपना वेतन इसकी पढ़ाई के लिए दूंगा।” उन्होंने  अपनी बात का पूरा पालन किया और जब तक निकेत की पढ़ाई चलती रही अपना पूरा वेतन निकेत को भेज देते थे। इधर बहनों रिद्धि सिद्धि की भी पढ़ाई ठीक चल रही थी। 

समय आने पर रिद्धि और सिद्धि का विवाह हो गया। निकेत भी डॉक्टर बनकर आ गए। माता पिता के जाने के बाद साकेत ने तीनों भाई बहनों को पिता के समान स्नेह दिया और हर जिम्मेदारी पूरी की। उन्हें कभी भी अकेला नहीं छोड़ा। साथ ही अपने बच्चों का भी पालन पोषण अच्छे से करते रहे। हर साल रक्षाबंधन और भाई जुतिया में रिद्धि सिद्धि के पास जरूर जाते। 



निकेत अपनी व्यस्तता के कारण जा नहीं पाते थे इसलिए समाज में भी सुख दुख में आने जाने का कार्य साकेत ही निभाते रहे। भांजे भांजियों के ऊपर भरपूर प्रेम न्योछावर करते। भांजियों के कॉलेज की पढ़ाई के लिए समस्या आने पर उन्होंने निःसंकोच  कह दिया की चिंता क्यों करते हो ये हमारे घर रहकर पढ़ेंगी।

पूरी पढ़ाई के दौरान उन्हें कभी कोई तकलीफ नहीं हुई। उन्होंने अच्छे से अपनी पढ़ाई पूरी की ।सुकन्या कदम से कदम मिलाकर अपने पति का साथ देती।कभी भी उन्हें नहीं रोकती थी।ये उनकी महानता थी ।

     साकेत अपने जीवन के  शुरू से सबके लिए त्याग करते रहे। अपनी सुख-सुविधा को उन्होंने कभी प्राथमिकता नहीं दी। जहां जरूरत पड़ती वह पहुंच जाते। अगर कभी उनके भाई बहन उन्हें कोई उपहार देते तो वह खुशी-खुशी स्वीकार तो कर लेते

लेकिन मैं बड़ा हूं यह सोच कर उसके बदले वह स्वयं उन्हें कोई ना कोई उपहार दे ही देते थे ।उन्हें अपने छोटे भाई बहनों से उपहार लेने में संकोच होता था ।यह उनके पुराने संस्कार थे।

        बच्चों के शादी ब्याह होने और नौकरी में बाहर चले जाने के बाद साकेत और सुकन्या घर में अकेले रह गए । वे हंसी-खुशी अपना जीवन जीते थे।हमेशा फोन में सब का हाल चाल लेते रहते थे। कोई उन्हें फोन करें या ना करें वह नियमित रूप से सबको फोन करते।

किसी को कोई भी परेशानी होती तो सबसे पहले उनके मुंह से यही निकलता कि यहां आ जाओ या स्वयं पहुंचकर उनकी सहायता करते थे। इसी प्रकार जीवन जीते हुए उनके जाने का दिन भी आ गया।  वह बात करते-करते, हंसते-हंसते एक पल में ही इस संसार से विदा हो गए ।

आज भी उनके भाई बहन, बच्चे और भांजे भंजियाँ उन्हें याद  करते हैं। साकेत और सुकन्या के द्वारा समय-समय पर किए गए त्याग को याद कर उनकी आंखें नम हों जाती हैं।

स्वरचित

नीरजा नामदेव

छत्तीसगढ़

 

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