बद्दुआओं के फलस्वरूप दुआओं में मिली है बेटियाँ…. – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ सुनो कल दोनों बच्चियाँ घर आ रही है त्योहार पर छुट्टियाँ मनाने तुमने उनकी पसंद का सब सामान ले लिया है ना और हमारे नन्हे शैतानों को कोई कमी नहीं होनी चाहिए ध्यान रहें ।” सिन्हा जी पत्नी सुमेधा जी से बोले

“हाँ जी सब ले लिया है…. आप चिंता न करो..और मैंने उस दुकान वाले सोनू से कह दिया है जब फ़ोन करूँगी सामान भिजवा देना।” सुमेधा जी ने कहा 

स्कूटर पर लदें फंदे दोनों जैसे ही सोसायटी के अंदर प्रवेश किए वही पार्क में बैठे महेश बाबू बोले ,“ लगता है बच्चे आने वाले हैं तभी इतना सामान लेकर आ रहे हैं और चेहरे पर ये चमक यही बता रही है… क्यों सिन्हा साहब..?”

“सही पहचाना महेश बाबू….कल दोनों बेटी दामाद और बच्चे आ रहे हैं… बस ये सब उन लोगों के लिए ही है ।”कहते हुए सिन्हा जी सामान उतार स्कूटर पार्किंग में लगा सुमेधा जी के साथ अपने फ़्लैट में आ गए

दूसरे दिन उनके घर में रौनक़ आ गई थी…. दशहरा का पर्व था सब एकजुट हो टीम बना निकल पड़े मेला घुमने… 

चार दिन रह कर सब वापस चले गये…

सुमेधा जी बच्चों के जाने से बहुत दुखी हो बैठी हुई थी…. तभी पड़ोस में रहने वाले महेश बाबू की पत्नी नलिनी जी सुमेधा जी के घर आई….

“ बच्चे चले गये सुमेधा बहन….आपके घर से हँसीं ठहाकों की आवाज़ से हमारा घर भी गुलजार हो रखा था नहीं तो हम दोनों मियाँ बीबी बस अकेले ही सब त्योहार मनाते हैं… जो मन किया बना लिया अच्छा है आपकी बेटियाँ है जो अपने माता-पिता का ध्यान रख आती जाती रहती है ।” नलिनी जी बोली 

“ हाँ नलिनी बहन बच्चियाँ ससुराल और मायके दोनों जगह कुछ दिन रह कर त्योहार गुलज़ार कर देती है…. आप तो जानती ही है दोनों बेटियाँ और जवाई दूसरे दूसरे शहर नौकरी करते हैं तो बस इन्हीं छुट्टियों में चार दिन यहाँ चार दिन वहाँ रह लेती हैं दोनों के माता-पिता खुश हो जाते है ।” सुमेधा ने कहा 

“ सही है आपका…. भगवान ने दो बेटे दिए पर वो तो अब आते भी नहीं….और हम बुलाएँ तो समय नहीं मिलता या छुट्टी नहीं कह कर टाल देते हैं ।” नलिनी जी दुखी हो बोली

कुछ देर बैठ नलिनी जी चली गई…. 

सुमेधा जी को आज नलिनी जी पर दया आ रही थी…. 

दोनो के बीच बेवजह हुआ मतभेद अब कम हो चला था पर पहले जैसी बात ना रह गई थी….सुमेधा जी तो चाहती थी नलिनी और महेश बाबू के बच्चे नहीं आते तो वो उन दोनों को भी हर तीज त्योहार पर साथ में शामिल करे पर जो बाते दिल को तकलीफ़ दे वो जल्दी भूली भी तो नहीं जाती।

दोनों शुरू से पड़ोसी तो थे ही महेश बाबू रिश्ते में भी सिन्हा जी के दूर के चचेरे भाई लगते थे हम उम्र थे तो हँसी मजाक भी कर लेते थे महेश जी की शादी पहले ही हो गई थी और उनके दो जुड़वा बेटे थे…. जब सुमेधा जी ब्याह कर आई थीं तो नलिनी जी अक्सर आती रहती और उनके साथ बच्चे भी आया करते ….

सुमेधा बड़े चाव से बच्चों को खेलाती थी …. इसी बीच जब सुमेधा जी के पाँव भारी हुए उस वक़्त महेश जी और सिन्हा जी में किसी बात को लेकर तनातनी चल रही थी गाँव की एक पैतृक ज़मीन थी जिसे महेश बाबू अपने नाम करवाने पर तुलें हुए थे पर सिन्हा जी का कहना था कि हम बराबर हिस्सेदारी रखे मैं अच्छी ज़मीन छोड़ कर पीछे की ज़मीन क्यों लूँ….. और इसी बात पर दोनों एक दूसरे से सीधे मुँह बात करना पसंद नहीं करते थे ।

एक दिन नलिनी जी जब बच्चों के साथ सुमेधा के घर आई हुई थी तो महेश जी ना जाने किस धुन में थे वो पत्नी को रोकते हुए बोले,“ क्यों जाती रहती हो वहाँ…. क्या सोचते हैं ये हमारे बेटों के साथ खेलेगी तो बेटा ही होगा क्या….. देखना इनकी बेटियाँ ही होगी और मैं भगवान को नारियल चढ़ाऊँगा ।”

“ ये क्या कह रहे हो महेश….. कुछ तो सोच समझकर बोलो….. जो भी हो स्वस्थ हो …दे ना भगवान हमें बेटी ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार होगा पर ये सब क्या है नारियल चढ़ाऊँगा….. घर हिस्से का बँटवारे में बेटे चाहिए ना तुम्हें …है ना तुम्हारे पास बेटे ख़ुशी से रहो…. आगे से मेरे घर के आसपास नज़र ना आना…. ।”नलिनी से हाथ जोड़कर जाने का इशारा करते हुए सिन्हा जी ने कहा  जो अभी अभी बाहर से सुमेधा जी के लिए फल लेकर घर के दरवाज़े पर पहुँचे ही थे कि महेश बाबू की बातें सुन भड़क उठे थे 

और ये मतभेद ने दोनों के बीच दूरियाँ ला दी।

संजोग ऐसा हुआ सुमेधा के घर दो बेटियों का जन्म हुआ ….महेश बाबू ये देख बहुत खुश होते था….. 

समय गुजरने लगा उसके दोनों बेटे विदेश जा बैठे…. घर आना जाना कम कर दिए अब तो कई साल से माता-पिता की सुध लेने तक नहीं आते…. वहीं भगवान ने सिन्हा जी और सुमेधा को लायक़ बेटियाँ दी जो समय समय पर आकर माता-पिता का हाल चाल पूछा करती थी कभी-कभी अपने साथ भी ज़बरदस्ती ले जाती थी…… ससुराल वालों का भी समान ध्यान रखती थी तभी शायद उनके पति भी सिन्हा जी और सुमेधा जी को अपनापन देते थे।

नलिनी जी अक्सर सुमेधा जी से महेश बाबू की बात के लिए माफ़ी माँगती रहती थी पर सुमेधा जी ने कभी इस बात को दिल से नहीं लगाया वो कहती,“महेश बाबू की बद्दुआ के स्वरूप मुझे दुआ रूप में बेटियाँ मिली नलिनी बहन…. इनका जन्म मेरे जीवन में बहुत तरक़्क़ी ले कर आया दोनों अपने भाग्य से अच्छे घर ब्याही गई….. सोचती हूँ तो लगता है अगर बेटा लव कुश ( नलिनी जी के बेटों) जैसे होते तो हमारा क्या होता …..।”

नलिनी जी चुप रह जाती थी कहती भी क्या सुमेधा झूठ तो कह नहीं रही थी…..।

दोस्तों बेटा या बेटी का जन्म परिवार में ख़ुशियाँ लेकर आता है …. मैं ये नहीं कहती सब बेटे ऐसे ही होते हैं….. शायद हम परवरिश करने में कहीं ना कहीं कोताही बरतते होंगे तभी बच्चों की सोच बदल सी जाती है….. आज अपने आसपास यही देखती हूँ बूढ़े माता-पिता या कोई एक अकेले रहते हैं बच्चे कहीं दूर रहते हैं….. क्या वजह है जो लोग उन्हें साथ रखने से कतराते हैं….? 

वैचारिक मतभेद….अकेले रहने की स्वतंत्रता में खलल, दख़लअंदाज़ी ये सब आज की आम समस्या हो रही है जिसकी वजह से परिवार मिल कर रहने के बजाय अकेले रहना ज़्यादा पसंद करते हैं…. ये मेरी सोच है… इस बारे में आपके विचार क्या है…. ज़रूर बताएँ ।

रचना पसंद आए तो कृपया उसे लाइक करें और कमेंट्स करें ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#मतभेद

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!