Moral Stories in Hindi : ” क्या नेहा….इतने दिनों में एक सैंडविच बनाना भी नहीं सीख पाई…।” कहते हुए सुनीता ने हाथ में लिया हुआ सैंडविच ज़मीन पर फेंक दिया।तभी उसकी एक सहेली व्यंग्य से बोली, ” इसके मायके में किसी ने ब्रेड देखा ही नहीं होगा..।” इतना सुनते ही ड्राइंग रूम में बैठी सुनीता की सभी सहेलियाँ हा-हा करके हँसने लगी और नेहा…,बस मुस्कुराते हुए अपने अपमान का घूँट पीकर रह गई।
उसकी सास कुछ कहने जा रही थी लेकिन नेहा ने उन्हें आँखों से इशारा करके रोक दिया जैसे कह रही हो,” माँजी..आपकी छोटी बहू तो जलील हो ही चुकी है.. बड़ी बहू को तो कम से कम जलील न होने दीजिये।
उर्मिला जी एक सरल हृदय और विनम्र स्वभाव की महिला थीं।उनके पति महेन्द्रनाथ का बड़ा कारोबार था।शुरुआती दिनों में दम्पति ने अच्छे -बुरे दिन देखे थें, इसलिए नाम-पैसा कमाने के बाद भी उनमें ज़रा भी अहंकार न था।बड़े-छोटे सभी के लिए उनके मन में समान भाव थे।ईश्वर की कृपा से उर्मिला जी दो पुत्रों की माँ बनी।बड़ा अखिल जो कद में ऊँचा और आकर्षक व्यक्तित्व का धनी था।स्कूली पढ़ाई उसकी अच्छी रही लेकिन फिर पढ़ाई में दिल लगा नहीं।
इसीलिये अपना ग्रेजुएशन कंप्लीट करके वह पिता के कारोबार को संभालने लगा।लड़का जब पैरों पर खड़ा हो जाये तो लड़की वाले खुद ही दौड़े चले आते हैं।चूँकि महेन्द्रनाथ जी का शहर में नाम-प्रतिष्ठा थी।इसलिये अखिल के लिये एक से बढ़कर एक रिश्ते आ रहें थें।उन्हीं में से उन्होंने बेटे के लिये सुनीता को पसंद कर लिया।यद्यपि उन्होंने समधी जी से लेन-देन की कोई बात नहीं की थी, फिर भी सुनीता के दहेज़ से उनका घर भर गया था।
छोटा बेटा निखिल एक प्राइवेट बैंक में ऊँचे पद पर कार्यरत था।देखने में वह भी बहुत हैंडसम था।सुनीता अपनी मौसेरी बहन का विवाह उससे करना चाहती थी।उसने अपनी सास से इस बात का ज़िक्र भी किया था।तब उर्मिला जी ने ‘ देखते हैं ‘ कहकर टाल दिया था।
एक बार उर्मिला जी अपने मायके आई हुईं थी।वहाँ उनकी मुलाकात बचपन की सहेली से हुई।सहेली ने उन्हें बताया कि पति के देहांत के बाद वह बेटी को लेकर मायके में ही रह रही हूँ।बेटी ग्रेजुएट है।अब चाहती हूँ कि कोई अच्छा घर-वर मिल जाये तो उसके हाथ पीले करके हरिद्वार चली जाऊँ।तभी नेहा उनके लिये चाय लेकर आई।सुंदर-सुशील नेहा उन्हें एक ही नज़र में भा गई और एक शुभ मुहूर्त में उन्होंने निखिल का ब्याह उसके साथ करा दिया।
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