अपने पति राजवीर के गुजर जाने के बाद कजरी ने अपनी 14 वर्षीय बेटी नीति और 4 वर्षीय बेटे सोनू की खातिर अपने पति के दोस्त संजय का अच्छा व्यवहार देखकर शादी कर ली थी।
पिछले कुछ दिनों से ना जाने क्यों, उसे अपना फैसला जल्दबाजी में लिया हुआ महसूस हो रहा था। संजय ने उसे नौकरी पर भेजना शुरू कर दिया था और स्वयं सारा दिन घर पर ही पड़ा रहता था।
कजरी ने यह भी महसूस किया कि नीति संजय से कुछ चिढी चिढी सी रहती है। नीति अपने पापा की लाडली थी इसीलिए शायद वह संजय को अपना पिता स्वीकार नहीं कर पा रही थी, ऐसा कजरी महसूस कर रही थी।
लेकिन आज का दृश्य देखकर कजरी की आंखों से संजय के अच्छे व्यवहार की पट्टी उतर गई थी। उसने देखा कि संजय उसे गहरी नींद में सोता हुआ समझकर वहां से उठकर नीति के पास जाकर लेट गया और उसे छूने लगा।
कजरी यह देख कर अपना संयम खो बैठी और एक पल के लिए उसने सोचा की रसोई घर से चाकू उठाकर उसके पेट में घोंप दूं। फिर दूसरे ही पल उसके मन में विचार आया-पुलिस में रिपोर्ट कर दूं।
फिर सोचा-पुलिस सबूत मांगेगी और समाज में मेरी बेटी की बदनामी हो जाएगी। इसी तरह एक पल में उसके दिमाग में ना जाने कितने विचार आए और गए।
और दूसरे ही पल में जोर से चिल्लाई-“ए कमीने, चल उठ यहां से, यहां क्या कर रहा है कुत्ते। अब तेरा स्वार्थ मेरी समझ में आया कि तू क्यों मुझसे शादी करने के लिए मरे जा रहा था।”
संजय चिल्लाया-“इज्जत से बात कर, ऐसा क्या हो गया, मेरी भी बेटी लगती है। जरा सा छू लिया तो कौन सी आफत आ गई।”
कजरी ने उसके पास जाकर उसके गाल पर झन्नाटेदार तमाचा जड़ते हुए कहा-“इज्जत और वह भी तेरी, चल निकल यहां से, यह मेरा घर है। तू क्या जाने बेटी क्या होती है, तेरे अंदर से, तेरे छूने से, बाप होने की खुशबू नहीं बल्कि पुरुष होने की”बदबू”आ रही है।”
ऐसा कहकर कजरी ने उसे और उसके सामान को बाहर फेंक दिया।
गीता वाधवानी दिल्ली