Moral Stories in Hindi : “अरे मोहंती बाबू आप…और यहाँ… कभी सोचा ना था फिर मिलना होगा !” मनोहर जी अपने सामने वाले फ़्लैट के सामने खड़े शख़्स को देख कर बोले
मोहंती बाबू अपना चश्मा ठीक कर आवाज़ की दिशा में घूमते हुए सोच रहे थे यहाँ अनजान शहर में कौन है जो मुझे पहचान रहा है…जैसे ही मनोहर जी से उनकी आँखें चार हुई पुरानी दोस्ती दुश्मनी सब याद आ गई…
“अब एक ही संस्था में नौकरी करते हैं भई तो कभी ना कभी टकराना ही था… और ये कहाँ पता था आमना-सामना होगा सो होगा रहने के लिए फिर से आमने सामने का ही घर मिल जाएगा ।” मोहंती बाबू दरवाज़ा खोलकर अंदर जाते हुए बोले.. पुरानी बातों की टीस आज भी जेहन में उभर आई थी पर समय बहुत गुजर गया था और बहुत कुछ बदल भी गया था..
मनोहर जी चाहते थे मोहंती बाबू के साथ और बातें करें पर अंदर से उनकी पत्नी लता ने उन्हें रोक लिया ।
“ क्या बात करना चाहते है आप … तब हमारे बच्चे छोटे थे… समझ नहीं थी उन्हें… स्कूल में और बच्चों को देख वो भी एक दूसरे के साथ प्यार मोहब्बत की बातें करने लगे थे…देखा ना मोहंती बाबू कैसे ग़ुस्से में तबादला करवा कर रोमा को लेकर दूसरी जगह चले गए थे और हमारे नकुल को कितना भला बुरा कहा था… हम तो लड़के के माता-पिता होने की वजह से सब चुपचाप सुन रहे थे लगा कही सच में हमारे लड़के ने ही तो गलती ना की है…. पर बाद में पता चला वो तो क्लास के बच्चों ने इन्हें प्रेमी युगल बना …चिढ़ाया करते थे जबकि दोनों के बीच कुछ भी नहीं था… अब सब भूल जाइए… वो बात करना चाहे तो ठीक ना करना चाहे तो भी ठीक… हो सकता है वो यहाँ रहे ही ना।” लता जी ने कहा
ऑफिस की तरफ़ से मोहंती बाबू को यही घर दिया गया था… पता चला पत्नी गुजर गई है और बेटी रोमा कॉलेज के आख़िरी वर्ष में है।
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नकुल भी अब नौकरी करने लगा था और दूसरे शहर में रहता था।
रोमा छुट्टियों में घर शिफ़्ट करवाने हुई थी… मोहंती बाबू ने उसे नकुल के परिवार के बारे में कुछ भी नहीं बताया था… संजोग से नकुल भी शनिवार के दिन अपने घर पहुँचा….
नीचे वलिफ़्ट के पास उसने रोमा को देखा …. दोनों की ऑंखें चार हुई…..इन आँखों में कुछ ऐसा था जिसे दोनों पहले से जानते हो जैसा महसूस कर रहे थे पर देख पहली बार रहे थे… बात करने की हिमाक़त दोनों ने नहीं की … चुपचाप लिफ़्ट में दाखिल हुए… फ्लोर पर पहुँच कर आमने सामने के दरवाज़े पर दस्तक देकर फिर एक दूसरे को नज़र बचा कर देखने की कोशिश करने लगे … ये आँखें बहुत कुछ कह रही थी पर क्या दोनों समझ नहीं पा रहे थे…
दोनों अपने अपने घर के भीतर जाते हुए भी आँखों में झांकने की कोशिश कर रहे थे…पर सबसे अनजान थे
नकुल ने लता जी से पूछा,“ माँ सामने वाले घर में कौन रहने आया है… एक लड़की लिफ़्ट में आई जो उस घर में गई… पता नहीं क्यों उसे देख कर लगा जैसे पहले से जानता हूँ ।”
“ वो रोमा है…मोहंती जी की बेटी..और तू उससे दूर ही रहना ।” लता जी ने हिदायत देते हुए कहा
इश्क़ पर कब किसका जोर चला है…बचपन में दोस्तों ने मज़ाक़ में जो रिश्ता बनाया था जवां दिलों में अब वो धड़क रहा था…दोनों ही आँखें चार होने के बाद मिलने और बात करने को परेशान हो रहे थे कुछ कशिश थी जो उन्हें एक दूसरे की तरफ़ खींच रही थी … नकुल तो जान गया वो कौन है पर रोमा…उसे तो नकुल के बारे कुछ पता ही नहीं…
“ पापा सामने जो लोग रहते हैं.. वो कौन है… आज एक लड़का लिफ़्ट में मिला .. बहुत सभ्य….मेरा ज़्यादा सामान था तो मेरी मदद भी कर दिया यहाँ लाने में पर बोला एक शब्द भी नहीं ।” रोमा ने मोहंती बाबू से कहा
“ वो नकुल है… मनोहर बाबू … याद है ?” तीखे तेवर में मोहंती बाबू ने कहा
रोमा कैसे भूल सकती थी सब … पर नकुल की गलती कहाँ थी इसमें ना उसकी… पर आज ना जाने क्यों उसे देख कर गलती करने का दिल करने लगा… बहुत हिम्मत कर उसने कहा,“ पापा हमें एक बार उनसे बात करनी चाहिए… आपको भी पता चल गया था ना …इसमें ना नकुल की गलती थी ना उसके पैरेंट्स की… फिर भी वो चुपचाप सब सुन रहे थे…एक माफ़ी तो हम माँग ही सकते हैं ।” रोमा की बात सुन मोहंती बाबू बात करने को तैयार हो गए
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जब वो नकुल के घर पहुँचे … सब सुलह हो गया … बातचीत फिर पहले की तरह होने लगी पर नहीं सुलझा था तो रोमा और नकुल के उलझे नैनों के तार …
दोनों एक दूसरे की आँखों में आँखें डाल एक दूसरे की भावनाओं को समझने की कोशिश कर रहे थे…और अंदर से एक ही आवाज़ सुनाई दे रही थी…हाँ यही प्यार है…ना आँखें चार होती ना नज़रें टकराती ना दिल में हलचल होती अब तो बस इज़हार करना बाकी रह गया है…
अब तो नम्बर का आदान-प्रदान हो चुका था… दिल के तार जुड़ने लगे थे…. माता-पिता को मनाने की क़वायद चालू थी और फिर अंत में वो लोग भी क्या करते बच्चों की ख़ुशी की ख़ातिर रज़ामंदी दे दी गई ।
बचपन में जो प्यार होकर ना हुआ सालों बाद आँखें चार होते वो जवाँ प्यार परवान चढ़कर परिवार के गिले शिकवे भूला कर एक दूसरे के साथ प्यारे रिश्ते में बदल गया था ।
रश्मि प्रकाश