आज स्वरा रोजमर्रा के कार्यों से निवृत्त होकर खाली बैठी ही थी कि…. अतीत की यादों का कारवां खुलता गया ….अरे कहां गुम हो गई तू राधा…. बचपन की सहेली , बहुत छोटी उम्र वाली , एकदम घर जैसी सहेली …..सच में राधा… आज ना मुझे तेरी बहुत याद आ रही है ..!
कॉलेज की कुछ सहेलियां तो फेसबुक में मिल भी गई ….पर तू नहीं मिली राधा या मैंने तुझे ज्यादा ढूंढा ही नहीं …..बस इतना ही तो पता था कि बिहार में तेरी शादी हुई है ….माँ बाबूजी के जाने के बाद मेरा भी मायके छूट गया और मायके के कुछ विशेष लोगों में मेरी प्यारी सहेली राधा भी छूट गई …।
तेरे साथ ज्यादा समय गोटी जो खेलती थी मैं…. गोटी का नाम लेते ही स्वरा के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई… सिर्फ मुस्कान ही नहीं एक चमक भी….!
ये अकेले-अकेले क्या और किसके बारे में सोचा जा रहा है …और सोच कर चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ-साथ चमक भी आ गई है …..शशांक की आवाज सुनकर स्वरा ने तपाक से कहा …..राधा की याद आ गई थी शशांक …..सिर्फ राधा की ही याद नहीं ……वो गोटी ……एक मिनट रुको शशांक ….मैं आती हूं ….कहकर स्वरा बगीचे की तरफ दौड़ी …।
एक गमले में कैक्टस का पौधा लगा था , गमले को चारों तरफ रंगीन छोटे-छोटे पत्थरों से सजाया गया था… स्वरा उसमें से पांच पत्थर (गोटी) निकाल कर ले आई और बोली ….जानते हो शशांक…. गर्मी की छुट्टियों में ….मैं और राधा इन्हीं गोटी (पत्थर) से खेल कर ही पूरी छुट्टियां बिता देते थे …तुम मेरे साथ खेलोगे गोटी ….प्लीज शशांक , खेलो ना….. स्वरा ने अनुरोध भरे स्वर में पूछा…. मैं …? अरे भला मैं कैसे खेलूंगा… मुझे आता भी नहीं है…
छोड़ो तुम तो बिल्कुल बुद्धू हो… कहकर स्वरा तेजी से आंगन में गई , उसके घर में काम करने वाली बाई बर्तन धो रही थी ….सविता , तु मेरे साथ गोटी खेलेगी…. गोटी…? और मैं ….? आश्चर्य से सविता भी मुस्कुराने लगी ..आज आपको गोटी खेलने की कैसे याद आ गई मेम साहब …..।
असल में मुझे आज अपने मायके की बहुत याद आ रही थी …उस आंगन की जहां हम बैठकर गोटी खेला करते थे ….उस सहेली की जिसके साथ गोटी खेला करती थी….। जल्दी से बर्तन धोकर आ ना अपन दोनों गोटी खेलेंगे ….कहकर स्वरा गोटी लेकर अकेले ही अभ्यास करने लगी…. आज स्वरा बिल्कुल पहले वाली छोटी बच्ची स्वरा बन गई थी ….।
साड़ी के पल्लू से हाथ पोछती सविता आई और सामने बैठ गई …जैसे ही सविता ने गोटी उठाया और जमीन पर बिखेरे ….. एक गोटी उठाई और उसे ऊपर उछाल कर दूसरी गोटी उठाने की प्रयास करने लगी ….अरे तेरे हाथ में क्या हुआ है सविता ….बाप रे ! इतना कैसे लगा… स्वरा आश्चर्य से पूछी …..साड़ी से ढाकते हुए सविता ने …जाने दीजिए ना मेम साहब… कहकर छिपाने की कोशिश की…।
अरे , तू तो बहुत अच्छा खेलती है… हम लोग भी बचपन में बहुत खेलते थे मेमसाहब …अब स्वरा का ध्यान गोटी से ज्यादा सविता के चोट पर थी…. सच में , यदि साथ में बैठकर एक दूसरे के साथ थोड़ा भी समय बिताएं… तो हम एक दूसरे के सुख दुख को समझ पाएंगे भावनाएं जानने में मदद मिलेगीं….. स्वरा ऐसा सोच रही थी…।
क्या बात है सविता… तु मुझसे कुछ छुपा रही है ना ….घर में सब ठीक तो है ना …कहीं तेरे पति… स्वरा आगे कुछ कहती सविता ने झट से कहा ….अरे नहीं मेमसाहब जैसा आप समझ रही हैं वैसा कुछ भी नहीं है …..मेरा घर वाला बहुत अच्छा है…. क्या है ना मेमसाहब… जैसे गोटी बचपन में खेला था ..इतने दिन बाद आज फिर हाथ में ले लिया , उतने अच्छे से तो नहीं पर खेल ही लिया…. ठीक उसी तरह बचपन में मां ने कुछ बातें सिखाई थी ….बस आज उन्हीं को यथार्थ का रूप दिया था ….बस उसी चक्कर में थोड़ा सा लग गया ….हाथ की और इशारा करती हुई सविता ने कहा ….।
घुमा फिरा कर बातें करना बंद कर सविता …तुझे नहीं बताना है तो मत बता…।
सविता आंटी , मुझे माफ कर दीजिए… अरे नहीं , सोनू बाबा आप बार-बार मुझसे माफ़ी ना मांगे …गलती आपकी भी नहीं थी..।
क्या बात है …कोई मुझे बताएगा भी… स्वरा सख्त होती हुई बेटे सोनू की तरफ देखती हुई बोली…।
कुछ नहीं मेमसाहब…. दोपहर को मैं काम से लौट रही थी तो सोनू बाबा और उनके दोस्तों को सिनेमा हॉल की ओर जाते हुए देखा था…. मुझे भी देर हो रही थी पहले तो मैंने सोचा ,मुझे क्या ..चली जाऊं जल्दी से घर… फिर मां की कही वो बातें याद आ गई…. जहां काम करते हो ..उस जगह को अपना घर , अपना कर्मभूमि समझ कर पूरी ईमानदारी और वफादारी से काम करना चाहिए….।
फिर क्या था मैं सोनू बाबा और उनके दोस्तों के पीछे लग गई … मैं झाड़ी में छिप कर देख रही थी कि सोनू बाबा लोग कहां जा रहे हैं …तभी झाड़ियों से हाथ में मुझे चोट लग गई थी ….मैंने सोचा अभी तो ट्यूशन का समय है घर से ट्यूशन बोलकर सोनू बाबा निकले हैं… फिर पिक्चर….? मैंने आवाज देकर सोनू बाबा से पूछना चाहा…. सोनू बाबा ने बताया आज ट्यूशन से छुट्टी हो गई है इसलिए हम लोग फिल्म देखने का प्लान बनाए हैं …..मैंने ये सच्चाई आपसे बताने की बात कही ….उस पर सोनू बाबा को थोड़ा गुस्सा आ गया और उन्होंने मुझे मेरी औकात बतानी चाही थी… ।
फिर भी मुझे विश्वास नहीं हुआ और मैं ट्यूशन वाले सर के यहां चली गई तब मुझे सच्चाई का पता चला की सोनू बाबा झूठ नहीं बोल रहे हैं…. इसीलिए मैंने बात को तुल ना दे कर आपसे बताना उचित नहीं समझा था मेमसाहब … और सोनू बाबा ने अपने व्यवहार के लिए मुझसे माफी मांगी थी…।
ओह सविता …तू सिर्फ गोटी खेलने में ही नहीं… वाकई जिंदगी में हर किरदार को वफादारी से निभाने में भी माहिर है …।
चलिए मेमसाहब अब आपकी बारी …..वो पांचो गोटी इस बार स्वरा के हाथ में थे ….वाकई वर्षों पुरानी पारंपरिक खेल-खेलकर मजा आ रहा था….।
साथियों… इन गोटियों (पत्थरों) से बचपन में आपने भी ये खेल तो अवश्य खेला होगा…।
( स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )
संध्या त्रिपाठी