रीमा एक पढ़ी-लिखी नवयुवती थी।उसका छोटा-सा परिवार था।वह और उसका पति रीतेश एक ही आफिस मे काम करते थे,घर में सास-ससुर थे।जब वह ब्याह कर आयी काफी खुश थी।सास-ससुर का खूब सम्मान करना पर जब से ससुर को दिल का दौरा पड़ा,उसके स्वभाव में बदलाव आ गया था।
रीतेश को उसके पिता ने काफी मेहनत कर पढ़ाया-लिखाया था तभी आज वह इस मुकाम पर पहुंचा था।रीमा छोटी-छोटी बातों में अशांति करती थी।रीतेश उसे प्यार से समझाता पर उस पर कोई असर न होता।
उसके पिता राकेश जी एक दिन ऐसा सोए कि फिर कभी नहीं उठे।सास अकेली हो गयी।कुछ दिनों बाद रीमा का बेटा हुआ,उसे आफिस से छुट्टी लेकर घर बैठना पड़ा।वह सारा दिन सोई रहती और बूढ़ी सास सारा दिन कोल्हू के बैल की तरह खपती।
रीतेश ने मां की सहायता के लिए कामवाली बाई रखवा दी।रीतेश के बेटे का नाम उमेश था।जब वह स्कूल जाने लगा तो रीमा नाश्ता बनाकर रीतेश और उमेश को तो खिला देती और सास से कहती, पहले आप इसे बस स्टाप छोड़ कर आइये तब वापस आकर खाइयेगा।कमला देवी को भी भूख लग जाती थी,पर बहू के सामने कुछ नहीं कहती।
एक दिन जब वे उमेश कौ छोड़ने जा रही थी कि उनका सिर घूमने लगा।वे रास्ते में गिर कर बेहोश हो गई।वहा एक चाय की दुकान थी।जो उस समय चाय पी रहे थे वे एक चिकित्सक थे।अपनी चाय छोड़कर दौड़े आए और उनका रक्तचाप नापा जो बहुत कम था।झटपट चाय वाले से एक गिलास दूध लेकर पिलाया और अपनी कार से घर पहुंचा दिया।
इस कहानी को भी पढ़ें:
खुशहाल जीवन – कंचन श्रीवास्तव
उमेश स्कूल से आकर कहने लगा-कल से मैं दादी के साथ नहीं जाऊंगा।वह धीरे-धीरे चलती है,सब मेरा मजाक उड़ाते है,आज मेरी बस भी छूट जाती।
वापस आते समय सब आंटी कह रही थी,इसकी मां बूढी सास से सारा काम करवाती है?कैसी औरत है।आज मैं खेलने भी नहीं जाऊंगा?
शाम को मोहल्ले के शर्मा जी रीतेश के घर आए और कहा-इस रविवार सोसाइटी की मीटिंग है, जिसमें आप दोनों जरूर आना।जब वे जानें लगे थे तो रीमा चाय लेकर आईं।वे कहने लगे-जहां घर के बुजुर्गो से काम करवाया जाए वहां का वे चाय क्या, पानी भी नहीं पीएंगे।
रीमा को अपनी गलती का अहसास हो गया और उसने अपनी सास से माफी मांगी।इस प्रकार उमेश की एक कोशिश रंग लाई।
कांता नेगी
#भेदभाव