बहू, बहू रहे और बेटी, बेटी तो ही अच्छा  –  संगीता अग्रवाल 

“देखिए बहनजी हमारी बेटी बहुत लाडली है बस हम तो यही चाहते हैं ये जिस भी घर जाए वहां इसे बेटी बना कर रखा जाए!” सीमा को देखने आए लड़के की मां अनीता जी से शांति जी बोली।

“देखिए शांति जी हमे सीमा बहुत पसंद है हम इसे अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं पर माफ़ कीजिएगा बहू …बेटी नहीं !” अनीता जी बोली।

लड़की पक्ष के सभी लोग हैरानी से एक दूसरे का मुंह देखने लगे। ये क्या कह रही हैं अनीता जी जब अभी से ये बेटी और बहू में भेद कर रही तो शादी के बाद तो जाने क्या होगा। घर परिवार सुलझा हुआ आधुनिक सोच का था इसलिए अपनी लाडली बेटी के लिए रिश्ते की बात चलाई थी शांति जी और सचिन जी ने पर….

“क्या आपकी बेटी आपके प्यार से संतुष्ट नहीं है …क्या यहां इसे वो प्यार नहीं मिलता जो एक बेटी को मिलना चाहिए?” सबके चेहरे पर सवालिया निशान देख अनीता जी ने सवाल किया।

“कैसी बात कर रही हैं बहनजी हमारी बेटी को यहां बेटों की तरह पाला जाता है बहुत ही लाड़ प्यार से !” सचिन जी जरा से उखड़े लहजे में बोले।

“लाड़ प्यार तो ठीक है भाई साहब पर लड़कों की तरह क्यों पालना लड़कियों की तरह क्यों नहीं। क्या लड़कियां बेकार होती हैं !” अनीता जी के पति राघव जी बोले।

” वो…वो..!” सचिन जी सकपका से गए ऐसे सवाल की तो उन्हें उम्मीद ही नहीं थी। यही तो सुनते आए वो की हम तो अपनी बेटी को बेटों सा रखते हैं लाड़ में। पर आज राघव जी के सवाल ने सोचने पर मजबूर कर दिया क्यों हम बेटियों को बेटियों की तरह ही पाल कर लाड़ प्यार नहीं दे सकते।

“देखिए भाई साहब हमारे घर में बेटा भी ही बेटी भी। बेटे को हमने बेटे का प्यार दिया बेटी को बेटी का । अब बहू चाहते हैं एक जिसे हम बहू वाले लाड़ दे सकें क्योंकि हमारी नजर में हर रिश्ते की अपनी जगह है घर में और हर रिश्ते का अपना वजूद। क्यों हम बहू को बेटी और बेटी को बेटे सा प्यार दें क्यों नहीं बहू को बहू वाला बेटी को बेटी वाला प्यार दें। क्योंकि बेटी भी प्यारी होती और बहू भी !” अनीता जी ने सीमा के गालों पर हाथ फेरते हुए कहा।



“सच में बहनजी आपने कितनी अच्छी बात कही जो आज तक हमारे दिमाग में नहीं आई हर रिश्ते का अपना वजूद है हर रिश्ते की अपनी जगह है।” सचिन जी बोले।

“बिल्कुल भाई साहब वैसे भी अगर ये शादी होती है तो शादी के बाद भी आप अपनी बेटी को बेटी वाला प्यार दीजियेगा हम बहू वाला …क्यों सही कहा ना !” राघव जी हंसते हुए बोले।

“बिल्कुल भाई साहब अगर रिजुल ( लड़का) बेटे को अगर सीमा पसंद हो और सीमा को रिजुल तो बात आगे बढ़ाई जाए क्योंकि हमे तो आपका परिवार और आपकी सोच दोनों ही बहुत अच्छी लगी इस नए साल के साथ हम भी नई शुरुआत करेंगे और अपने बेटे के लिए भी बहू लाएंगे और उसे बहू सा ही लाड़ प्यार देंगे !” शांति जी बोली।

“क्यों बेटा रिजुल तुम सीमा से अकेले में बात करना चाहो तो कर सकते हो आखिर जिंदगी तुम लोगों को साथ में बितानी है।” अनीता जी बेटे से बोली।

” मम्मा मुझे सीमा पसंद है बाकी आपका और अंकल आंटी का जो फैसला हो मंजूर है मुझे बस आप लोग सीमा से भी पूछ लीजिए !” रिजुल शालीनता से बोला।

सीमा ने भी फैसला मां बाप पर छोड़ा और दोनों परिवारों की रजामंदी से दोनों को एक अटूट रिश्ते में बांध दिया गया रोके की रस्म करके।

दोस्तों हम अक्सर सुनते हम बहू को बेटी सा रखेंगे या हम अपनी बेटी को बेटों की तरह पालते पर ऐसा क्यों बोलते लोग। क्या बेटी होना गलत है क्या बहू होना गलत है। क्यों नहीं हम जो रिश्ता जैसा है उसे उसी रूप में प्यार दुलार दे सकते ?

आप मेरी बात से इत्तेफाक रखते हैं तो मुझे बताइएगा जरूर🙏🙏 और अगर आपको मेरी सोच गलत लगी तब भी मुझे अवगत जरूर कीजियेगा।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल 

(V)

 

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