#बैरी_पिया
सावन की बदरी झमाझम बरस रही थी और सोम्या बड़ी बेताबी से रोहन अपने पति की प्रतीक्षा कर रही थी, आज उसे बरबस ही विवाह का पहला सावन याद आ रहा था, कितना कुछ बदल गया था इन 5 सालों में,
15 दिन पहले रोहन टूर पर गुजरात गया था और वादा करके गया था कि विवाह के बाद के
सावन की पहली बारिश साथ देखने और साथ भीगने का,
जैसे ही आसमान काला हुआ सौम्या छत पर भागी सूखे हुए कपड़े उतारने, कपड़े उतार रही थी और जैसे ही पलटी खुशी से झूम उठी सामने रोहन था, रोहन ने जैसे ही उसका हाथ थामा नीचे से माँ की आवाज़ सुनाई दी,रोहन आँखों से प्यार बरसाता नीचे भागा। सौम्या रोहन की हालत देखकर मुस्करा कर रह गयी, सौम्या कपड़े लेकर नीचे उतरी तो देखा माँ अटैची लेकर तैयार थी और रोहन के चेहरे पर सिवाय कोफ्त के कुछ नहीं था,
माँ ने सौम्या से कहा मैं कुछ दिनों के लिए रोहन के चाचा के घर जा रही हूं वो आने वाले हैं मुझे लेने,
सौम्या ने कहा ” पर माँ आप मुझे छोड़कर क्यूँ जा रही हो ,
माँ ने कहा “रोहन को पता है मैं साल मे कभी भी इसके चाचा के घर रहने जाती हूँ, इस बार अब मन कर रहा है।
तभी कार के हॉर्न की आवाज से सौम्या वर्तमान मे वापस आयी,
रोहन इतनी जल्दी कभी वापस नहीं आता था आज अचानक कैसे यही सोचकर सौम्या ने दरवाज़ा खोला सामने रोहन था जिसके चेहरे पर हमेशा की तरह त्यौरियां चढ़ी हुई थी ।
सौम्या ने धीरे से कहा ” मौसम अच्छा हो रहा है चाय बना लाऊँ क्या?
स्वभाव के विपरीत रोहन ने कहा ” हाँ बना लाओ साथ मे पकौड़े भी बन सकें तो बना कर छत पर ले आना।
सौम्या हैरानी से देखते हुए गरदन हिलाते हुए रसोई मे चली गयी जल्दी से तेल चढ़ाकर आलू प्याज पनीर गोभी पालक काटी बेसन मे सूजी डालर घोल तैयार किया और पकौड़े बनाने लगी दूसरी तरफ चाय बनाने रख दी 20 मिनट मे समान लेकर छत पर गयी और मेज पर ट्रे रखी,
रोहन बोला ” छज्जे के नीचे नहीं यहां खुले मे बादलों के नीचे रखो,
आज रोहन सौम्या को झटके पे झटके दे रहा था ऐसा तो बस विवाह के बाद के पहले सावन मे ही हुआ था,
सौम्या आँखों मे आयी नमी छुपाने को नीचे जाने को मुड़ी पर झटका सा लगा पीछे मुड़कर देखा तो उसका हाथ रोहन के हाथ मे था जो भीगी पलकों से एक हाथ से सौम्या को थामे दूसरे हाथ से कान को पकड़े खड़ा था,
सौम्या को अपनी तरफ देखता पाकर रोहन बोला ” मुझे माफ़ कर देना सौम्या माँ जब चाचाजी के घर जा रही थी एक्सीडेंट मे हुई उनकी मौत ने मुझे पागल बना दिया था, मुझे बार बार लगता था कि उस दिन अगर मैंने उन्हें रोक लिया होता तो वो बच जाती अगर तुम्हें पहला सावन मेरे साथ बिताने की इच्छा नहीं होती तो माँ साथ होती,
सौम्या पनीली आँखों से रोहन को देख रही थी,
सौम्या को अपनी ओर हैरानी से देखते हुए देखकर रोहन ने आगे बोला
“टूर पर गया था वहीं चाचीजी से मुलाकात हुई थी उनके चेहरे की शांति मुझे चैन नहीं लेने दे रही थी इसीलिए मैंने उनसे पूछा था चाची चाचाजी माँ के साथ ही असमय चले गए ऐसा कुछ नहीं होता अगर मैं माँ को जाने ही नहीं देता,
सौम्या जानती हो चाचीजी ने क्या कहा,
उन्होंने कहा “ये नियति के नियम हैं चाचाजी से माँ ने हमारी शादी के 2 महीने बाद ही बोल दिया था कि पहला सावन दोनों बच्चे साथ मनाएंगे, कहीं माँ की मौजूदगी से हमे झिझक ना हों इसीलिए चाचाजी उन्हें लेने आ जाएंगे।
सौम्या माँ के जाने का दोषी मैं खुद को और तुम्हें मानता था पर ऐसा कुछ नहीं था, इतने साल की बदरी तुम्हारी आँखों से बहते हुए देखी है, पर अब ऐसा कुछ नहीं होगा, कहते हुए रोहन ने जैसे ही सौम्या को अपनी ओर खींचा,
सौम्या ने धड़ाधड़ रोहन की छाती पर मुक्के मारने शुरू कर दिए और जोर जोर से रोने लगी।
इतने सालों की बेवजह गलती की सजा जो खत्म हुई थी । कितना निर्मोही निष्ठुर और बेदर्दी था उसका पिया सीने से लगी सौम्या सोच रहीं थीं।
तभी आसमान से काली बदरी ने बूंदे बरसानी शुरू की और सौम्या रोहन का तन मन भिगोने लगी।
शुभांगी