सोने के कंगन – खुशी

रमा चार भाई बहनों में सबसे छोटी थी।पिताजी रेलवे में थे और दिल्ली में उनकी पोस्टिंग थी। रमा की बड़ी बहन विद्या उसके पति महेश MR थे।उसकी शादी बॉम्बे में हुई।उससे छोटी निर्मित उसकें पति अपने पारिवारिक व्यवसाय से जुड़े थे। रमा अभी पढ़ रही थी।भाई यमन इंजीनियरिंग पूरी करने वाला था और उसने दिल्ली … Read more

देहाती लोग कभी नहीं सुधरेंगे !! – स्वाती जैंन

सुनीता बोली सच गाँव के लोगो को शहर के कितने भी तौर – तरीके सीखा लो मगर वे गाँव वाली हरकतें ही करेंगे !! यह सुनकर रुक्मणि जी का दिल एक बार फिर टूट गया , कितनी उम्मीदे लेकर गाँव से आए थे रमाकांत जी और रूक्मणि जी मगर सुनीता दोनों को कुछ भी सुनाने … Read more

सोने का कंगन – परमा दत्त झा

आज दीपावली के अवसर पर रिया को सास ने नये सोने के कंगन दिये थे।वह अकचका गयी और सास को देखती रह गई। मांजी आप और यह-वह बड़ी मुश्किल से बोली। बहू तेरे श्वसुर कहा करते थे देखना ममता मैं अपनी बहू को सोने का कंगन दूंगा ,मगर वह तो रहे नहीं।सो आज उनकी मृत्यु … Read more

क्या पिता को सुख दुख की अनुभूति नहीं होती – शिव कुमारी शुक्ला

आज दशहरा था और सुखविंदर अपने ट्रक का माल उतरवा रहा था एक अंजान शहर में।वह अंतराज्यीय परमिट से चलने वाले लम्बी दूरी के ट्रक का ड्राइवर था। खाना खा वह तन्हा लेटा था तो अपने घर पत्नी, बच्चों की याद आ गई। आज त्योहार के दिन वह अकेला इस अनजान शहर में पड़ा है … Read more

मुझे भी जीना है केवल सांसें नहीं लेनी हैं – डॉ बीना कुण्डलिया

रंजना ओ रंजना ऽऽ रंजना ऽ कहां हो । पति बृजेश ने जैसे ही आवाज लगाई, पति की चिल्लाती हुई आवाज सुनकर रंजना जो रसोईघर में नाश्ते, उनके ऑफिस के लिए लंच की तैयारी कर रही दौड़ती हुई आई बोली क्या हुआ ? आप इतने गुस्से में क्यों चिल्ला रहे हैं ? पति बृजेश तो … Read more

रिश्तो की परख – लतिका पल्लवी

 शाम के वक़्त राहुल जब खेत से लौटा तो अस्मिता नें पूछा सारा धान कट गया या अभी बाकी है?कार्तिक का महीना था।सभी के खेत मे धान लहलहा रहा था।जिसे काटने का काम पांच दिन पहले शुरू हुआ था। राहुल नें कहा दो तीन दिन अभी और लगेगा।राहुल के पास अपनी जमीन बहुत कम थी।पर … Read more

ईश्वर की माया कहीं धूप कहीं छाया – सुदर्शन सचदेवा

आज के जमाने में ज़िंदगी भी सोशल मीडिया की तरह हो गई है—कभी चमकदार तस्वीरें, तो कभी अंदर छिपे संघर्ष। अवनी एक युवती थी, दिल्ली में नौकरी करती थी। बाहर से उसकी ज़िंदगी बहुत सुखी दिखती थी—अच्छी सैलरी, स्टाइलिश कपड़े, और हर वीकेंड दोस्तों संग पार्टी। लोग कहते, “वाह! कितनी खुश है अवनी।” पर सच्चाई … Read more

लक्ष्मी पूजन क्यों – संध्या त्रिपाठी

       बेटा पीहू , तू फटाफट रंगोली वगैरह बनाकर घर को सजा ले मैं पूजा की तैयारी करती हूं …और प्रियांश तू भी दीदी का साथ देना..! बाप रे ये दीपावली के दिन भी ना कितना काम हो जाता है …व्यस्तता के बीच निधि ने दीया ठीक से जमा कर रखते हुए कहा ।           मम्मी , … Read more

उजाला – संध्या त्रिपाठी

 माँ – माँ उठ ना , देख  तो उजाला हो गया ….. मैं जाऊं पटाखा बिनने ? कहां जाएगी बिटिया पटाखा बिनने …..? जहां तू काम करती है ना माँ ….वहीं …  कल देखी थी मेम साहब का बेटा (भैया) खूब पटाखा फोड़े थे….. जरूर दो- चार इधर-उधर बिना फूटे रह गया होगा …!    अरे … Read more

ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया – राजलक्ष्मी श्रीवास्तव

गांव में दो जुड़वां भाई थे—ओम और श्याम। दोनों एक ही खेत, एक ही मां-बाप और एक ही जीवन में पले-बढ़े, लेकिन किस्मत जैसे दोनों के लिए अलग-अलग किताबों में लिखी गई हो। ओम पढ़ाई में तेज़ था, शहर गया, अफसर बन गया। बंगला, गाड़ी, शोहरत—सब कुछ मिला। उधर श्याम गांव में ही रह गया। … Read more

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