” अरे जिज्जी आज अचानक कैसे कोई खबर भी ना दी!!” निर्मला अपनी बड़ी बहन सरला से गले मिलते हुए बोली।
” तू तो बिल्कुल निर्मोही हो गई। सिर्फ तुझे अपने बच्चे और पोते पोतियो का ख्याल रहता है। एक बड़ी बहन भी है तेरी उसकी भी कभी खोज खबर ले लिया कर। खुद तो कभी फोन करती नहीं ना मिलने आती। हम फोन करें तो तू घर पर नहीं मिलती। देखने चली आई जिंदा भी है।” सरला जी प्यारा सा उलाहना देते हुए बोली।
” देख लो जिज्जी जिंदा भी हूं और सही सलामत भी। बस क्या करूं एक टांग घर पर और एक दुकान पर रहती है। बस इसी में समय ही नहीं मिलता!! अच्छा किया तुम आ गई!!”
निर्मला जी हंसते हुए अपनी बहन को कुर्सी पर बिठाते हुए बोली।
“सारी उम्र जिम्मेदारियों का बोझ ढोती रह। कभी अपने बारे में भी सोच। पहले अपनी पति बच्चों के लिए सोचती रही और अब बेटा बहू के परिवार की जिम्मेदारी का बोझ तूने अपने ऊपर ले लिया। अब तो बस कर 60 से ऊपर की होने को आई। कब तक शरीर को घिसती रहेगी। आराम दे बहन तेरी हड्डियां बूढ़ी हो गई है ।इनमें जवानी जितनी ताकत नहीं। बैठ गई ना तो सोच ले!! क्यों बहु, सही कह रही हूं ना मैं!! यू मत कहना मौसी सास आकर मेरी सास को बिगाड़ रही है। जो बात है मैं तो मुंह पर कहती हूं!!”
सरला जी अपनी बहन की बहू जो पानी लेकर आई थी कि उसकी तरफ देखते हुए बोली।
” आपकी बात बिल्कुल सही है मौसी जी। हम तो अम्मा को कहते हैं आरम करो लेकिन यह मानती ही नहीं। कहती है, आराम करने से शरीर में जंग लग जाएगा। बैठे-बैठे खाने से बीमारियां शरीर में घर करेंगी वो अलग। जब तक चलती रहूंगी शरीर भी चलता रहेगा!! पूछ लो मौसी जी मैं झूठ कह रही हूं तो अम्मा से!!” बहू, मौसी सास के पैर दबाते हुए बोली।
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” हां हां सही तो कहती हूं । मेरे बस की नहीं घर पर बैठ चारपाई तोड़ना!! और वैसे भी सास बहू साथ घर में रहेंगे तो झगड़ा ही करेंगे ना! कम से कम बाहर रहूंगी तो झगड़े का मौका कम मिलेगा इसे। क्यों बहू!!” निर्मला जी अपनी बहू की तरफ देख हंसते हुए बोली।
” अम्मा जी आप और झगड़ा!! बस यह आपके बस की ना!!”
” मेरे बस की बहुत कुछ है बहू। अभी तो तू जा और अपनी मौसी के लिए चाय और नाश्ते की तैयारी कर तुझसे तो मैं बाद में निपटूंगी!” निर्मला जी अपनी बहू को प्यार से डांटते हुए आदेश देते हुए बोली।
” निर्मला, तेरी बहू वाक्य में ही बहुत अच्छी है। इसमें कोई दो राय नहीं। बेटा बहू तुझे आराम करने के लिए कह रहे हैं तो तू ही क्यों बुढ़ापे में इतना खट रही है। आराम कर बहन। बहुत काम कर लिया।” सरला जी अपनी बहन को समझाते हुए बोली।
” आराम किसको प्यारा नहीं जिज्जी! लेकिन जब पता हो घर के हालात सही नहीं तो जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ आराम करना मुझे तो अच्छा नहीं लगता।”
” मैं समझी नहीं!! क्या महेश का काम धंधा अच्छा नहीं चल रहा!! कुछ दिक्कत है!!”
” यह तो तुम्हें पता ही है जिज्जी कि महेश के पिता को कोरोना हुआ तो उसके इलाज में सारी जमा पूंजी खर्च हो गई और उसके बाद भी उन्हें बचाया न जा सका। महामारी तो चली गई लेकिन अपने साथ घर के मुखिया व जमा पूंजी को भी अपने साथ ले गई।
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इसलिए महेश ने अपनी दुकान से सामान की घर घर जाकर डिलीवरी भी शुरू कर दी और किराने के एक दो सामान की एजेंसी भी ले ली। जिससे वह सामान को दूसरे दुकानदारों को बेच थोड़ा मुनाफा कमाने की कोशिश में लगा है। जब वह डिलीवरी के लिए जाता है तो मैं उस समय दुकान पर बैठ जाती हूं।
पोती अभी सात 8 महीने की है इसलिए बहू को दुकान पर बैठा नहीं सकती। दोनों बच्चों की देखभाल के लिए वह घर पर ही रहती है और इस बीच साड़ी में फॉल पीको भी कर लेती है।
अब तुम बताओ जब बेटा बहू घर की माली हालत सुधारने के लिए दोहरी जिम्मेदारी निभा रहे हैं तो मैं जो इस घर की अब बड़ी हूं। अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ कैसे आराम कर सकती हूं।
बस, बेटे का काम धंधा एक बार फिर से अच्छे से जम जाए। फिर देखना तुम्हारे पास महीना महीना रुकने आया करूंगी और फोन पर भी घंटों तुम्हारे कान खाऊंगी। सारी शिकायतें दूर कर दूंगी तुम्हारी जिज्जी!” निर्मला जी अपने आंखों के गीले कोर पोंछ हंसते हुए बोली।
अपनी बहन की बात सुन सरला जी बस मुस्कुरा दी। बोली कुछ नहीं। कहती भी क्या!! वह भी तो एक औरत है और जानती है कि औरतों की जिम्मेदारियां मरते दम तक भी पूरी नहीं होती।
रसोई में चाय बनाती बहू की कानों में भी अपनी सास की बातें पड़ी तो अपनी सास के विचार सुन उसकी आंखें भी गीली हो गई।
#ज़िम्मेदारी
सरोज प्रजापति