आज रेवती जी फिर उसी चौखट पर खड़ी थी, जहाँ कई साल पहले वो दुल्हन बन कर आई थी..। इन पांच सालों में कुछ नहीं बदला, दरवाजे का नीला रंग जरूर इन पांच सालों में थोड़ा बदरंग हो गया…,उनकी जिंदगी की तरह….,दरवाजा खोल कर सासू माँ मुँह फिरा चली गई.. वो पैर ही न छू पाई…।हाँ गुड्डी, तनय …दौड़ कर आ,मम्मी कह लिपट गये… आँसुओं से धुंधली ऑंखें दोनों बच्चों को गले लगा बिलख पड़ी…, जब घर छोड़ कर गई थी तब गुड्डी तीन साल और तनय छः साल का था…,।
रेवती ठगी सी खड़ी थी, बच्चों ने हाथ पकड़ उसे उसके कमरे में पहुंचाया…। गुड्डी -तनय रेवती को कस कर पकड़े थे,मानों छोड़ते ही कहीं मम्मी फिर न चली जाये ..।
,कमरे में कोई बदलाव नहीं था, हाँ उसकी पसंद का पारिजात का पेड़ खिड़की से दिखाई दें रहा, पांच साल में ये भी बड़ा हो गया…।
तभी ट्रे में चाय लिये प्रीता छोटी ननद अंदर आई “कैसी हो भाभी, इन पांच सालों में हमें कभी नहीं याद किया “
रेवती चुप थी, कैसे बताती इन पांच सालों में इस घर और घर के लोगों को कितना याद किया, आज वापस इसीलिये आई, समझ गई समझौते तो हर रिश्ते में करने पड़ते।पहले यही समझ नहीं थी, आकाश और प्रीता को सासु माँ ने अकेले पाला, रेवती उनके संघर्ष को नहीं देखी थी, पर उनके बच्चों ने देखा था।
मौके की नजाकत समझ प्रीता, रेवती के पास बैठ उसके हाथों को ले कर बोली “भाभी अब मत जाना कभी…”मौन संवाद मुखर हो गये ननद -भाभी के बीच…।
तभी सासू माँ आई “जो हो गया, वो हो गया, अब कुछ ऐसा न करना, बच्चों के भविष्य का सवाल है., अभी आराम कर लो “कड़वी जुबान भरकस मीठी बनने की कोशिश कर रही, पर शायद सासू माँ की यही अंदाज ही है।
शाम हो चली, रात का खाना भी उसके कमरे में पहुंचा दिया गया, मानों वो कोई मेहमान हो..।
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पांच साल पहले…अकेले रहने की चाह में ही तो सासू माँ को खरी -खोटी सुनाई थी, जब आकाश के समझाने से भी वो न समझी, और सहने की सीमा भी टूट गई तब आकाश ने हाथ उठा दिया था…. बस दिल पर लगे उस थप्पड़ ने उसकी सोचने -समझने की शक्ति खत्म कर दी, घर से जिस हाल में थी, बिना सोचे समझें निकल गई …।
मायके में पहले सबने उसे खूब शह दिया…. धीरे -धीरे रेवती को समझ में आया ये घर अब उसकी भाभियों का है, जहाँ वो सम्मानित मेहमान से आवंछित मेहमान बन गई…।यथार्थ सच में कड़वा होता है,
भाभियाँ अक्सर कुछ काम उसे बता, शॉपिंग करने या कमरे में आराम करने चली जाती, भाई या माँ कुछ कहते तो तुरंत बोलती “अब दीदी तो मेहमान है नहीं, जब हमेशा रहना है तो कुछ काम करना ही पड़ेगा,”ये कह भाई और माँ की बोलती बंद करा देती…।
सारे काम निपटा,जब रात अपने कमरे में आती तो आँसुओं के सैलाब अपना बांध तोड़ बह जाते.., गुड्डी -तनय बहुत याद आते। फोन की ओर बढ़े हाथ पीछे खींच लेती, किस तरह आकाश को फोन करें ., अहम आड़े आ जाता, पर ईश्वर से प्रार्थना करती एक बार आकाश उसे पुकार ले ..।
आकाश से रेवती ने प्रेम -विवाह किया था, आकाश ने उसे अपनी जिम्मेदारियों से अवगत करा दिया था.., प्रेम के खुमार में रेवती को तब संयुक्त परिवार का ताना -बाना बुरा नहीं लगा, पर जब तनय का जन्म हुआ, तब जिम्मेदारियों तले प्रेम का दिया बुझने लगा…।
और फिर एक दिन वो कांड हो गया, जो आकाश नहीं ही नहीं घर का कोई सदस्य नहीं चाहता था, रेवती ने तो कभी सोचा भी नहीं था आकाश उस पर हाथ उठा सकता है…,। आकाश ने भी कहाँ सोचा था, उससे अथाह प्रेम करने वाली उसके रिश्तों को जंजाल समझने लगेगी..।
समय अपनी रफ़्तार से भाग रहा था, आकाश की पहल के इंतजार में रेवती बुझती जा रही थी… आखिर एक दिन अलसुबह घर की घंटी बज उठी,,”तुम लौट आओ, तुम्हारे जाने से लगता, जिंदगी चली गई “बस इतना ही कहा था आकाश ने ..।
फिर किसीने कुछ नहीं कहा और रेवती आकाश संग लौट आई….।
“कहाँ खोई हो रेवती, चलो न बालकनी में कॉफी पीते है “आकाश ने अपने पुराने अंदाज में कहा।
“मुझे माफ़ कर दो आकाश “रेवती की बात पूरी होने से पहले आकाश ने उसके होठों पर हाथ रख दिया…”गलती हम सब की थी रेवती “….
.”हाँ बहू,….भाभी के समवेत स्वर ने, सबको एक पाश में बांध दिया…. गिले -शिकवे दूर हो अश्रुपूरित नयन जब उठे,सामने जिंदगी मुस्कुरा उठी ..।
—संगीता त्रिपाठी
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