रमा के घर सावित्री घरेलू काम करती थी। बहुत ही सीधी-सादी और सभी काम बड़े ही साफ सफाई से करती। रमा से उसने कभी कोई चीज की मांग नहीं की थी। अपने पति का हमेशा गुणगान करती रहती।
सावित्री और रमेश की जिंदगी बहुत ही बेहतरीन तरीके से चल रही थी। रमेश एक फैक्टरी में काम करता था और सावित्री तीन चार घरों में बर्तन झाड़ू पोंछा करती। पैसा कम था पर संतुष्टि बहुत थी। कम पैसों में भी उनकी गृहस्थी अच्छी तरह चल रही थी।उनके एक चार साल का बेटा था।
बहुत ही मासूम और प्यारा सा।
पर उनके सुखी जीवन को किसी की नजर लग गई। रमेश फैक्ट्री में काम करने वाली एक महिला के मोहपाश में फंस गया था। अब वह शराब भी पीने लगा था। सावित्री को पैसे ना देकर उस महिला पर खर्च करने लगा। जब सावित्री ने जाना तो उसने पहले तो समझाया ना मानने पर विरोध करने लगी। पर रमेश को कोई फर्क नहीं पड़ा। आये दिन की #तकरार से परेशान होकर अब रमेश का हाथ पत्नी पर उठने लगा। बच्चा बेचारा देखता तो डरकर मां के पल्लू में छुप जाता।
कभी-कभी मां को पिटते देखकर वह भी जोर जोर से रोने लगता तो उसे भी चांटे पड़ते।
एक रात को रमेश देर रात पीकर घर आया और आते ही झगड़ा करने लगा। दोनों में जमकर तकरार हुई।सावित्री भी खूब जोर से चिल्लाई और बोली, घर में आते ही क्यों हो? जब यहां अच्छा नहीं लगता है तो। रमेश ने उसके बाल खींचते हुए कहा, ये मेरा घर है, मेरी जब मर्जी होगी आऊंगा और जब मर्जी होगी जाऊंगा,तू रोकने टोकने वाली होती कौन है ? मेरे घर से तू निकल यहां से। अपने इस छोकरे को लेकर। मैं अब अपनी उस रानी के साथ यहां रहूंगा।कह कर लुढ़क गया।
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सावित्री रात भर सोचती रही। दूसरे दिन रमा जी के घर जब सावित्री गई तो रमा ने देखा कि हमेशा हंसमुख सावित्री आज बहुत उदास थी। वह काम तो कर रही थी पर सबसे बेखबर कुछ सोच में डूबी हुई थी। रमा ने उसे अपने पास बड़े प्यार से बुलाया और कहा, क्या बात है? आज तुम इतनी उदास क्यों हो?
मुझे बताओ, मेरे साथ अपना दर्द बांट कर जी हल्का कर लो। तुम्हारा चेहरा हंसता हुआ अच्छा लगता है। उदासी के बादल चेहरे से हटाओ। मुझे अपनी परेशानी बताओ। कुछ पैसे चाहिए तो मैं अभी देती हूं।यह सुनते ही सावित्री फूट फूटकर रोने लगी। उसने आंसूओं के बीच सब कुछ रमा जी को बता दिया। सावित्री ने कहा, अपने पति के उस औरत को घर में रखने की बात सुनकर मेरा खून खौल गया । मैं अपना अपमान हरगिज नहीं सह सकती।अब बस बहुत हो गया। मैंने अपने मासूम बच्चे के लिए बहुत सहा,पर अब नहीं,और नहीं।
मुझे जब चार घर झाड़ू पोंछा बर्तन ही करना है तो मैं कहीं भी कर लूंगी। मैं अपने बच्चे को लेकर मायके आज ही जा रही हूं। आपकी बहुत याद आयेगी।
मैं वहां भी किसी पर बोझ नहीं बनूंगी। कुछ दिन रहने के बाद अपना एक कमरे का घर किराए पर ले कर अपने बच्चे का लालन-पालन करूंगी और उसे एक बेहतरीन इंसान और बड़ा आदमी बनाऊंगी। आज औरत किसी की गुलाम नहीं।वह अपने निर्णय लेने में स्वयं सक्षम है। आज मैं उसके अत्याचारों से आजाद हो गई हूं ।
रमा का भी रमेश के ऐसे शब्द सुनकर खून खौल गया और उसने कहा,जाओ सावित्री अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी लो। मैं तुम्हारे साथ हूं और हमेशा रहूंगी। किसी बात की जरूरत हो तो मुझे बेहिचक बताना।रमा ने उसके वेतन के साथ उसे अतिरिक्त पैसे भी दिए।
सावित्री भोर में अपने बच्चे को लेकर अपने मायके जाने वाली ट्रेन में बैठ गई। मन ही मन सोचने लगी,मैं वहां भी घरों में काम करके चार पैसे कमा सकती हूं, सिलाई बुनाई मुझे आती है मैं किसी पर बोझ नहीं बनूंगी। मैं आत्मनिर्भर बन कर रहूंगी।
अब मैं उस कायर आदमी से पूरी तरह आजाद हूं और उस दरिंदें के पिंजड़े से पंक्षी उन्मुक्त आसमान में विचरण करने उड़ गया।
सुषमा यादव
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
तकरार