आज सुबह हमारे घर के बाहर हमारे पुराने फलवाले की आवाज सुनाई दी….आम ले लो आम, रसीले मीठे आम…सुनकर सबका मन खुश हो गया।
“मम्मी, आज मोहन भैया फल का ठेला लेकर आए हैं! देखो देखो ,कितने सुंदर पीले पीले आम हैं।” बोलते बोलते नन्ही पीहू की जीभ जैसे स्वाद से भर कर लपलपा गई। मीना को मज़ा आने लगा,” अरे भई, अभी बढ़िया मीठे आम नही आए हैं और मँहगे भी हैं…।”
“ओह नो मम्मी! ले दो ना, आज मदर्स डे भी है ना! इतना तो जरूरी है।”
अभी नोंकझोंक चल ही रही थी कि दादी टपक गई,”कैसी माँ है, बच्ची को तरसा रही है! चल मोहन तोल दे एक किलो पर पैसे जरा ठीक ही लगइयो।”
मोहन खुश होकर तोलते हुए बोला,”माँजी, कभी भी ज्यादा लिया है!सबसे पुरानी ग्राहक हो मेरी।”
“अच्छा अच्छा, बात ना बना !देख तो रहा है मेरी पोती कितनी उतावली हो रही है।”
दादी जी ने आम काट कर सबका हिस्सा अलग अलग कर रख दिया। पीहू खूब रस ले लेकर खा रही थी…..खाने से ज्यादा लीपापोती कर रही थी….पूरा कालीन सान पोत कर बराबर कर दिया। मीना ने डाँटना चाहा तो दादी ने रोक दिया…”जाने दे बहू, सीज़न का पहला आम खा रही है बिटिया।”
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थोड़ा खेलकूद कर पीहू ने फ्रिज खोला और चिल्लाई,” अरे मम्मी, तुमने तो आम खाया ही नही! तुम्हारा मन नही है तो मैं खालूँ?”
“हाँ मेरा मन नही है, तुम ले लो।”सुनते ही वो गपागप खाने लगी ,हड़बड़ी में पूरा मुँह सान लिया… तभी दादा जी की निगाह पड़ी ,”पीहू बेटा, कितनी गलत बात है!आप मम्मी का हिस्सा भी चट कर गई!वैरी बैड!”
वो सहम कर माँ के पीछे छिप गई…. “अरे अरे मेरी साड़ी भी गन्दी कर दी….अरे अरे ये क्या मेरे गले और गाल पर भी लगा दिया..” कहते हुए मीना स्वयं को छुड़ाने लगी तो वो और चिपक कर बोली,”मम्मी, तुम्हारे हिस्से वाला आम तो और भी मीठा था।”
उसका गुस्सा उड़नछू हो गया ,”सो कैसे?”
“वो आपके हिस्से का था तो उस पर आपका नाम चढ़ गया था ना।”
बस फिर क्या था….मातृत्व छलक उठा। पीहू को कस कर लिपटा लिया..आम भी अपने भाग्य पर इठला उठा।
नीरजा कृष्णा
पटना