साथियों यह कहानी सौदामिनी और नन्हे बच्चे ‘ बंटी’ की है।
जिसकी ममा और डैडी की मृत्यु अचानक ही हो गई है …
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रोज सुबह नियमानुसार सूरज उगता है। सांझ को डूब जाता है।
अब तो सौदामिनी ने अपनी परिस्थितियों से समझौता भी कर लिया है।
सोचती है …
‘ जब किस्मत ने ही उसे और बंटी की भाग्य रेखा एक दिशा में निर्धारित कर दी है तो वह इस लिखे को कैसे मिटा सकती है ‘
अगर वह इसे मिटा पाने में सक्षम होती तो कब की मिटा चुकी होती।
उस दिन जब सौदामिनी उस मनहूस खबर के झटके को बर्दाश्त नहीं कर पाने की स्थिति में गहरे सदमे में चली गई थी तब हमेशा की तरह छोटी बहन मुक्ता ने ही उसे संभाला था।
सौदामिनी को किसी सिनेमा की रील की तरह एक-एक घटना बदस्तूर याद है।
यों कि वह उन यादों के उजड़े जंगल में बार-बार नहीं जाना चाहती है।
पर क्या करें अपने इस नामुराद दिल का। जब कभी बंटी उसके सामने आता है तो वह सुधीर की बेवफाई में आकंठ डूब जाती है।
शादी के बारह बर्ष बीत जाने पर भी मां नहीं बन पाने से वह कितनी दुखी रहती थी,
‘ सब कुछ तो है उसके पास सिर्फ मां कह कर बुलाने वाले को छोड़ कर ‘
इस वक्त वह अपने चार कमरे के बड़े से सुसज्जित फ्लैट के कोने वाले कमरे में पलंग पर लेटी हुई अतीत में विचर रही है एवं बंटी दूसरे कमरे में केयर टेकर के पास गुमसुम बैठा हुआ अपनी किताबों को उलट-पुलट कर रहा है।
आज की तरह ही उस दिन भी दोपहर में दोनों बहनें सौदामिनी और मुक्ता पलंग पर लेट कर गप्पे लगा रही थीं।
सुधीर एक हफ्ते के लिए ऑफिस के दौरे पर गये हुए थे।
सौदामिनी के मां नहीं बन पाने के दुख
को भांप कर मुक्ता उसे जब-तब किसी बच्चे को गोद ले लेने की सलाह और प्रेरित करती रहती है।
आज भी उसकी इसी सलाह को अनसुनी कर सौदामिनी असमंजस में डूबी रेडियो सुनने का दिखावा किए जा रही है।
उठो री सखी मोरी मांग संवारो… दुल्हा मोसे रूठल
कौनो ठगवा नगर मोहे लूटल लिए जाए…।
कि तभी वह मनहूस खबर आई थी।
‘ सुधीर की कार के दुर्घटना ग्रस्त होने की ‘
सौदामिनी सब कुछ भूल कर बेसुध सी भागती हुई दुर्घटना स्थल पहुंची थी।
जहां हत्भागी सौदामिनी के हाथ सिर्फ सुधीर और नमिता के अधजले शव के साथ ‘बंटी ‘के रूप में अनोखा उपहार मिला था।
यह हृदय विदारक दृश्य देख कर वह बेहोश हो गई थी।
बाद में होश में आने पर उसकी नजर मुक्ता के हाथ पकड़े हुए नासमझ और घबराए हुए भोले बंटी पर पड़ी। जो अस्त- व्यस्त और घबराया सा डबडबाई आंखों से सौदामिनी के होश में आने का इंतजार कर रहा था। उसके होश में आते ही वह उसके कलेजे से चिपक गया था।
सौदामिनी उसके कड़वे सच पर विश्वास ही नहीं कर पा रही थी ,
‘ कि अब तक सुधीर ने इतना बड़ा और कड़वा सच ‘नमिता’ और ‘बंटी ‘ उससे छिपा कर रखा था’
वह किसी प्रकार इसे झेल नहीं पा रही थी।
‘ उफ़ … तो क्या मैं अभी तक इस भूलभूलैया में जी रही थी ?
कि सुधीर पर उसका एकाधिकार है ‘
उसका आत्मसम्मान से भरा हुआ विह्वल हृदय धिक्कार से चूर-चूर हो कर अत्यंत दुख की उस घड़ी में भी कुतार्किक हो उठा।
‘अगर वह बंटी को नकार दें तो ?
अब तो इस संसार में ना ही तो सुधीर है। और ना ही इसकी मां फिर मैं क्यों उस मरी ‘सौत ‘ की संतान के साथ समझौता करूं ?
लेकिन वह अपने-आप से चाहे कितने भी तर्क-कुतर्क कर ले।
इधर -उधर , जरा-मरा करती हुई भी बंटी के सच को झुठला नहीं पाई थी।
मजबूरन उसे बंटी को लेकर घर आना पड़ा।
कुछ ही दिनों के उपरांत पारिवारिक वकील ने उसे सुधीर द्वारा की गई वसीयत से भी अवगत करा दिया।
जिसमें उसने अपनी दोनों पत्नियों को सम्पत्ति का बराबर हिस्सेदार बनाया था।
सौदामिनी सुधीर के साथ अपने विवाहित जीवन के अनबूझे प्रश्नों को ढूढ़ंने में लगी है।
अन्त में सोच-सोच कर थक चुकी सौदामिनी ने निश्चय किया वह बंटी को अपने साथ तो हर्गिज नहीं रख सकती है।
इसे हाॅस्टल में रख देगी
सुधीर की दूसरी पत्नी के बच्चे को अपना मानकर पालना एवं उसकी ‘सौतेली मां’ कहलाई जाना उसे सख्त नापसंद है।
यों कि बंटी बहुत ही प्यारा और भोला भाला बच्चा है।
सौदामिनी उसे बहुत मानती भी है। जी -जान से उसका ध्यान रखती है।
लेकिन उसका सानिध्य उसे पल-पल सुधीर की बेवफाई की याद दिला कर उसके आत्म सम्मान को चोट पंहुचाता है।
उसका ख्याल रखते हुए भी वह बंटी से एक खास दूरी बना कर रखती है। वह दिन भर काॅलोनी के बच्चों के साथ खेलता रहता है।
एक दिन ना जाने कहां से सुनकर बंटी ने सौदामिनी से पूछ लिया था ,
‘ आंटी आप मेरी सौतेली मां हो ना ? ‘ सौतेली मां बच्चे को प्यार नहीं करती , और अब मुझे समझ में आया आप मुझे प्यार क्यों नहीं करती ?
बंटी की इस बात से सौदामिनी अकचका गई। ‘बंटी’ वो जोर से चिल्लाती हुई उसके मुंह पर हाथ रख देती है।
मन के अन्तर्द्वन्द ने बाहर के शोर को थाम लिया है।
वह फिर से यह सोचने लगी ,
जिस सुधीर के साथ वह सालों से रह रही थी। उसने पहले ही उसे नमिता और बंटी के बारे में कुछ क्यों नहीं बताया ?
अब मेरे प्रश्नों के जबाव देने के लिए ना सुधीर इस दुनिया में है और ना ही नमिता।
मैं सुधीर के इस रूप से अनभिज्ञ थी,
‘ मतलब हम साथ रहते हुए भी अजनबी थे ‘
बंटी के भोलेपन से पूछे गए इस सवाल से सौदामिनी पिघल गई है।
उसने ममता के वश में आकर बंटी को देखा और गोद में बैठा कर बोली …
‘ देखो बंटी मेरी बात ध्यान से सुनो,
‘ मैं तुम्हारी ‘सौतेलीमां’ नहीं हूं।
‘मां’ भी नहीं हूं। सच कहूं तो कुछ भी नहीं हूं।
तुम्हारे बाबा भी यही चाहते थे। इसलिए उन्होंने तुम और तुम्हारी ममा की बात मुझसे छिपा कर रखी थी ‘
लेकिन तुम ! तुम मुझे अच्छे लगते हो।
अब तुम भी अकेले हो और मैं भी अकेली हूं।
बंटी हमें एक दूसरे के सहारे की जरूरत है।
तो क्यों ना हम दोनों समझौता कर दोस्त बन जाएं ? ‘
मेरे दोस्त बनोगे ?
यह कहते हुए उसकी तरफ बाहें फैला दी।
बंटी भी उसकी बातें सुनकर कितना खुश हो गया है ,
हां आंटी! हम दोनों एक दूसरे के पक्के वाले फ्रेंड बनेंगे ना ‘ आंटी’ कहता हुआ अपनी नन्ही बांहों से थाम कर उसके गले में झूल गया।
अर्थात!
अगर एक रास्ता बंद हो जाए तो सभी बंद हो गयें यह नहीं मान लेना चाहिए मित्रों।
ईश्वर कोई ना कोई मार्ग निकाल ही देते हैं।
#समझौता
सीमा वर्मा/ नोएडा