और अंधेरा मिट गया – पूर्णिमा सोनी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : प्रिया अपना टिफिन रख लो… देखो तुम्हारी प्रैक्टिस फाइल बाहर ड्राइंग रूम में टेबल पर ही पड़ी है… तुम टीवी देखते – देखते डायग्राम बना रही थी ना… रख लो वरना भूल जाओगी।

 नीरज आपने अपना बैग देखा.. देखिए ये फाइलें अभी भी बाहर पड़ी हैं… फिर आप भूल जाएंगे और मुझे आफिस से फोन करके पूछेंगे.. जरा देखो.. कहीं रखी( पड़ी) होंगी… घर पर ही

 सुमन जी डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगाने के साथ – साथ अपने पति देव नीरज, बेटियों प्रिया और राशि का टिफिन भी पैक करती जा रही हैं। जितनी तेजी से सुबह – सुबह उनके हाथ चलते हैं.. उससे कहीं तेजी से ज़ुबान, क्योंकि वो सबको बताती भी रहती हैं और पैनी निगाह भी रखती हैं कि किसी का कुछ जरूरी सामान छूट ना जाए।

क्या मम्मी क्या लगा रखा है सुबह से?… अरे अब कोई बच्चे हैं क्या? कितना बड़बड़ाती हो सुबह से.. सारा दिमाग ख़राब हो जाता है..

 प्रिया पैर पटकती हुई जल्दी – जल्दी नाश्ता निबटा कर कालेज को निकल गई।

 नीरज भी चिड़चिड़ाते हुए उसे ( लगभग गुस्से में) घूरते हुए बोले

 अरे काम करो अपना चुपचाप…. क्या लगा रखा है ये… वैसे भी आफिस की टेंशन कम है, जो तुम घर में इतना टेंशन और क्रिएट किए रहती हो… हमें ( हम सभी को) बाहर जाकर इतने जरूरी काम करने होते हैं… तुम्हें तो घर के बाहर निकलना ही नहीं है…. करना ही क्या है तुम्हें?.. घर में जरा भी भी समस्या हो फटाफट फोन कर देती हो… जरा सा नहीं सोचती घर से बाहर निकला आदमी किस( जरूरी) काम में उलझा होगा… तुम्हें इससे क्या मतलब?

 छोटी बेटी राशि भी  जाते – जाते बोल गई

कितना बोलती हो मम्मी… एक ही बात कितनी – कितनी बार

 सब अपना नाश्ता फिनिश करके निकाल चुके थे।

आज सुमन स्तब्ध सी सोफे पर बैठी तो बैठी रह गई

 लग रहा था जैसे हजारों किरचें उसके अंदर.. बहुत गहरे तक चुभ रही थीं

सबकी दुनिया अपनी – अपनी गति से चल रही थी।

 बस सुमन को अपने अंदर बहुत कुछ टूटा हुआ सा महसूस हो रहा था।

 सुबह से… बल्कि रात से ही… वो तैयारी करना शुरू कर देती है,सुबह के नाश्ते के लिए… आलू उबालकर रख लूं तो सुबह आलू के परांठे बना लूंगी…  मेरी बथुआ साफ करके रख लूं..मटर छीलकर रख लूं तो सुबह जल्दी से छौंक दूंगी .. कई बार तो आधी रात को उठकर राजमा छोले जैसी चीजें भिगाती हूं… नीरज आवाज सुनकर कहते हैं… तुम भी ना इतनी रात में क्या खटर पटर करती हो.. तुम भी ना.. ना चैन से सोती  हो ना सोने देती हो।

 मैं वाकई?

 सबको नाश्ता खिलाने के साथ – साथ याद भी दिलाती हूं कि उन्होंने अपना सामान रखा कि नहीं… कितना फालतू बड़बड़ाती हूं?… क्यों आखिर?… सब बच्चे हैं क्या?

 दिन बीतता जा रहा है… सुमन ने ना तो नाश्ता किया है न ही…. उसे यह याद ही है कि सुबह से कुछ नहीं खाया है

 सिर भारी होता जा रहा है

 घड़ी की ओर आंख उठाकर देखा तो …अरे सबके आने का समय हो रहा है।

 अचानक ना जाने कहां से गज़ब की फुर्ती आ गई उसके अंदर

 फटाफट करना होगा…. सब कुछ

 और…….

*******

 नीरज आफिस से आकर हार्न बजा रहा है

 क्या हुआ?… रोज तो हार्न सुनते ही गेट खोलने आ जाती थी…. आज किस काम में बिजी है

 तुम्हें कुछ परवाह भी है… सुबह का थका मांदा आदमी घर वापस आए तो तुम्हारे पास फुर्सत ही नहीं है… किस कोने में घुसी हो?… क्या कर रही हो आखिर..

 नीरज बड़बड़ाते हुए अंदर घुसता है

 बाउंड्री में आते ही अंदर ताला लगा मिलता है

 तब तक सामने वाली मिसेज अंजलि उसे आवाज देते हुए चाभी देती हैं..

 हुंह पता नहीं अपनी किस सहेली के घर घूमने चली गई

 दोनों बेटियां भी वापस आ गई

 मम्मी नहीं हैं?… कहीं गई होंगी…

 खाना बना कर रख गई हैं चलो सब मिलकर खा लेते हैं

 कितना अच्छा लग रहा है.. जिसके जो मन में आया खाया… जिसने नहीं खाया.. कितनी शांति है.. कोई टोकने वाला ( बड़बड़ाने ) वाला नहीं है।

 रात होती जा रही है

 चिंता तो नीरज को भी शुरू हो गई थी … मगर जताना नहीं चाहता था

 ड्राइंग रूम में बैठकर टीवी देख रहा था.. प्रिया ने आकर पूछा… पापा मम्मी कब आएंगी?… फोन मिलाएं

 कोई फोन नहीं मिलाएगा… गई होगी अपने मां के घर… बस पकड़ कर… आ जाएगी.. चलो सब सो जाओ… हम लोग मिलकर घर संभाल लेंगे

 ठीक है पापा

 छोटी बेटी राशि को थोड़ी मां की याद आई मगर…

 अगली सुबह नीरज की देर से नींद खुली…

 राशि खुद तैयार हो कर स्कूल जाने को तैयार खड़ी थी

 पापा नाश्ता… टिफिन

 मैगी… मैगी चलेगी

 ठीक है पापा… वाओ मम्मी तो रोज मैगी नहीं खाने देती…. कहती थी अनहेल्दी है

 नीरज ने पूरा बड़ा पैकेट मैगी ही बना लिया बच्चों, अपने सबके टिफिन में मैगी ही पैक हुआ।

 आफिस में सब उसके टिफिन में मैगी देख कर बोले… क्या हुआ आज भाभी जी ने मैगी रखा है

 नीरज खिसियानी हंसी हंस कर रह गया।

अगले दिन प्रिया को कालेज की ओर से प्रेजेंटेशन देने दूसरे शहर जाना था

 मम्मी क्या कर रही है तब तक मेरी अटैची ही पैक कर दीजिए… प्रिया ने झुंझलाते हुए कहा… फिर याद आया मम्मी तो घर पर हैं ही नहीं

 जैसे – तैसे सब तैयारी हुई… नीरज की भी इंपार्टेंट मीटिंग थी

 प्रिया को स्टेशन छोड़ कर आफिस निकल गया।

राशि को भी घर आकर खुद ताला खोलकर अंदर आना पड़ा…

 मम्मी होती तो..

 प्रिया अगली सुबह वापस आ गई, रूंआसी होकर बोली

 पापा मेरा प्रेजेंटेशन बिगड़ गया… जो पेन ड्राइव तैयार किया था, वो रही भूल गई…. मम्मी होती तो ( सौ बार याद दिलाती)…. मम्मी कहां हैं.. दीपावली का त्योहार भी आने वाला है… मम्मी कहां हैं पापा…. घर सूना है… मम्मी को फोन मिला कर घर बुलाओ पापा

 नीरज भी जरूरी मीटिंग में फाइल ले जाना ही भूल गया था… कबसे मेहनत करके तैयार करती थी..

 मीटिंग ही बिगड़ गई…. सुमन  गेट के बाहर ( आटा सने हाथों से भी) भागते हुए फाइल लेकर दौड़ी चली आती थी….  नाराज होकर घर क्या चली गई.. मैंने फोन ही नहीं मिलाया…

 पापा गलती हम सब की है… हम सब नानी मां के घर चलकर माफी मांगेंगे…. दोनों बेटियां सुबकते हुए कहा रहीं थीं।

 नीरज ने डरते – डरते सासू मां को फोन मिलाया

 क्या कह रहे हैं?…. कबसे गई है?… यहां तो नहीं आई… आपने आज क्यों बताया?… हम भी पहुंचते हैं वहां…

 नीरज, प्रिया, राशि सब रिश्तेदारों को फोन मिला रहे हैं

 सब जगह से वही जवाब

 यहां तो नहीं आई… क्या हुआ?….

 कुछ हुआ था क्या??

 नाना नानी भी अपनी गाड़ी से पहुंच गए

 अब पापा?

 पुलिस में रिपोर्ट करानी पड़ेगी?

 अब देर नहीं लगानी है…. पहले ही बहुत देर कर चुके हैं

 नीरज भारी मन से गेट खोलता है, गाड़ी निकालने के लिए

 तभी फोन बजता है

 ये तो सुमन के बचपन की सहेली है… सुमन का मोबाइल स्विच ऑफ बता रहा है,.. शायद इसीलिए मुझे फोन किया है.. ना उठाऊं क्या?… ना जाने क्या पूछेगी?…. और मैं क्या जवाब दूंगा?

नीरज ने डरते हुए फोन मिलाया

कब से मिला रही हूं…” उस” हास्पिटल में तुरंत पहुंचिए

 सब फौरन हास्पिटल के लिए निकल पड़े। नाना नानी ने मन्नत मांग ली है.. हे ईश्वर सब सही हो… दोनों बेटियां… यहां तक कि अपनी पत्नी को कुछ ना समझने वाला नीरज आंसू पोंछते हुए गाड़ी चला रहा है

 आज हास्पिटल की दूरी कितनी ज्यादा लग रही थी। सुमन की सहेली गेट पर ही मिल गई

 सुमन मेरे पास ही थी इतने दिनों से.. क्या जीजा जी एक फोन नहीं किया आपने.. सुमन कहती तो मैं शायत ना मानती… मैंने स्वयं देख लिया

 घबराइए नहीं उसे फीवर है… फीवर चढ़ा फिर दवाओं के बाद बेसुध सी होने लगी.. मैं हास्पिटलाइज करवा रही थी तो बेसुधि में भी बोली

उन्हें फोन करके मत बुलाना, कहेंगे मैं इतना बिजी रहता हूं तुम फालतू बातों के लिए फोन मिलाया करती हो…. वो अपने मायके वापस जाना नहीं चाहती थी…. ये मत सोचिएगा मेरी सहेली मुझपर बोझ है…. मुझे मेरी पेंशन मिलती है मैं हमेशा उसे अपने पास रख सकती हूं….. मुझे लगा आपको एक मौका तो देना ही चाहिए..

 पूरी जिंदगी एक स्त्री को( उसके काम के बावजूद) सुनाते रहते हैं… वो निर्जीव वस्तु तो नहीं है… कभी तो लगेगा… अब बस…. बहुत हो गया

 नीरज हाथ जोड़कर क्षमा मांग रहा था..

 हास्पिटल के कमरे में सुमन की धीरे से आंखें खुली तो सामने निशब्द खड़ा नीरज बिलख रहा था

 सारी गल्तियां आंखों से पश्चाताप के आंसुओं के रूप में बह रही थीं।

 दोनों बेटियां उससे चिपट कर बिलखते हुए कहा रहीं थी

 साॅरी मम्मा

 नीरज ने सुमन से हाथ जोड़कर कहा, घर चलों सुमन गृह लक्ष्मी के बिना घर सूना है… घर चलकर दीपावली पर उजियारा बिखेर दो…

 दीपावली पर देवी मां ने नीरज की बुद्धि पर छाया अंधियारा मिटाकर सद्बुद्धि के प्रकाश से रोशन कर दिया!

 उसकी बुद्धि और मानसिकता पर छाया अंधियारा मिट गया था!

 उसे अपनी गृहलक्ष्मी और जीवन के हर कदम पर उसका साथ निभाने वाली जीवन साथी का महत्व और सम्मान भली भांति समझ में आ गया था… परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ!!

 पूर्णिमा सोनी 

स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित 

 # गृहलक्ष्मी, कहानी प्रतियोगिता

शीर्षक — और अंधेरा मिट गया!

 

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