औकात – मनिका गर्ग : Moral stories in hindi

“औकात” कितना अजीब शब्द है ना…

कितनी कितनी नकारात्मकता झलकती है इस शब्द में..

पर जाने क्यों आज बलजीत से मिलने के बाद इस शब्द से मानों नफरत सी हो गई।

मन आज अचानक 15 वर्ष पुरानी यादों में खो गया। अपना ग्रेजुएशन कंप्लीट करने के बाद मैंने समय व्यतीत करने के लिए  एक स्कूल जॉइन किया था। पता ही नहीं चला कब वो मेरी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया। न जाने कैसे मैं प्रिंसिपल साहब की भरोसेमंद बन गयी। हर भरोसे वाला काम वो धीरे-धीरे मुझे ही देने लगे। स्कूल ने मुझे कई दोस्त दिए और साथ में मिले निस्वार्थ प्रेम करने वाले अनेकों बच्चे।

कहते हैं ना की बच्चों के मन में छल कपट नहीं होता। वह तो देखते हैं तो सिर्फ प्रेम। और उसी ओर ही वो आकर्षित होते हैं।

और बदले में देते हैं अतुल्य समर्पण..

वैसे तो सभी बच्चे मुझे बहुत प्रिय थे उनमें लेकिन उनमें एक बच्चा था जिससे मेरा विशेष लगाव था, और वो‌ था “बलजीत”.

बलजीत की मां स्कूल में साफ सफाई और अन्य छोटे-मोटे काम किया करती थीं। यही कारण था कि वह गरीब होते हुए भी इंग्लिश मीडियम स्कूल में फ्री शिक्षा ले रहा था।

पता है लंच होने पर जब सभी बच्चे खेलने के लिए भागते थे तब बलजीत भी भागता था- “खेलने के लिए नहीं बल्कि अपनी मां की मदद करने के लिए!”

सभी शिक्षकों को पानी पिलाना, उनकी आवश्यकता की चीजें लाना। सभी काम वह मुस्काते हुए करता था।

वह निःसंकोच अपनी मां के कामों में बराबर हाथ बंटाता था।और साथ में पूरे ध्यान के साथ अपनी पढ़ाई करता था।यही कारण था कि मात्र दो वर्षों में वह अपनी कक्षा का सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी बन गया।

चाहे तो कोई परीक्षा हो या फिर कोई एक्टिविटी हर जगह बलजीत प्रथम स्थान प्राप्त करने लगा।

सभी शिक्षक उसके गरीब होने के कारण उसे हीन भावना से देखते थे। या तो मैं उसकी क्लास टीचर थी या फिर कोई और बात…

वो बच्चा मेरे प्रति असीम स्नेह दिखाता था

उसके दिए आदर न जाने कैसे मेरे दिल में अलग ही जगह बना ली। और धीरे-धीरे वह मेरा प्रिय विद्यार्थी बन गया।

उस वर्ष एनसीईआरटी ने एक स्कीम लॉन्च करी थी। जिसके तहत हर स्कूल से एक विद्यार्थी को विदेश में फ्री शिक्षा मिलेगी।

प्रिंसिपल साहब ने ऑफिस में बुलाकर मुझसे पूछा कि आपके हिसाब से किस विद्यार्थी को इस स्कीम में भेजा जाए?

मैंने कहा सर मेरे हिसाब से हमें बलजीत का नाम भेजना चाहिए।

मुझे विश्वास है कि वह हमारे स्कूल का नाम रोशन करेगा।

मेरी यह बात सुनकर प्रिंसिपल साहब कुछ पल के लिए रुके।

और मुझसे बोले-मैंम भावात्मक होकर कभी कोई निर्णय मत लीजिएगा।

“इन‌ लोगों की इतनी औकात नहीं होती”

स्कूल इन्हें यहां रहने दे रहा है, इतना ही काफी है। इससे ज्यादा मैं अब और इन गरीबों के लिए नहीं कर सकता। मेरे स्कूल की भी अपनी रेपुटेशन है। मैं नहीं चाहता कि मैं अपने विद्यालय का नाम खराब करूं। क्या कहेंगे सभी विद्यालय वाले कि मैंने कामवाली के बेटे को विदेश भेज दिया।

बलजीत के अलावा कोई और नाम अगर आपकी नजर में है तो मुझे अवश्य बताइएगा।

उनकी यह बातें सुनकर मैं कुछ नहीं कह पायी.. बस वहां से उठकर बाहर आ गयी।

वहां मैंने बलजीत की मां को देखा जिन्होंने शायद सब कुछ सुन लिया था।

मन ही मन मुझे बहुत दुख हुआ की क्यों हम व्यक्ति की औकात उसके कपड़ों, उसके रहन-सहन से आंकते हैं।

क्या काबिलियत का अपना कोई मोल नहीं होता!!

स्कूल से किसी और विद्यार्थी का चयन हो गया। शायद वह बात बलजीत की मां को दुख दे गई। और उस साल के अंत में उन्होंने वह स्कूल छोड़ दिया।

धीरे-धीरे मैं भी बलजीत को भूल गई। 4 साल काम करने के बाद स्कूल से विदाई ले ली। पर चूंकि प्रिंसिपल साहब मुझे काफी मानते थे इस कारण शादी के बाद भी मेरी उनसे बातचीत होती रहती थी।

पर आज बलजीत को यूं सामने देखकर मेरी सारी यादें आदत ताजा हो गई।

असल में आज सुबह प्रीति मैम का फोन आया प्रिंसिपल साहब का एक्सीडेंट हो गया है। हम सभी स्टाफ का ग्रुप उन्हें कल देखने जाएगा हो सके तो आप भी अपने मायके आ जाएगा। सभी साथ में चलेंगे!

संयोगवश में तभी अपने मायके में ही थी। मैंने उनसे कहा कि मैंम  मैं आज ही चली जाती हूं आप मुझे हॉस्पिटल का एड्रेस दे दीजिए।

प्रिंसिपल साहब मेरे पिता तुल्य थे इसलिए मैं खुद को रोक नहीं पाई और हॉस्पिटल की ओर निकल गई। 

जब मैं अकेली अस्पताल पहुंची तो मुझे पता चला कि प्रिंसिपल साहब आप खतरे से बाहर हैं।

फिर भी अपनी संतुष्टि करने के लिए मैंने डॉक्टर से पूछा- डाक्टर साहब खतरे की कोई बात तो नहीं है??

डॉक्टर साहब बोले-नहीं! मनिका मैम, परेशानी की कोई बात नहीं है; प्रिंसिपल सर बिल्कुल ठीक है।

मैंने अचरज भरे निगाहों से डॉक्टर की ओर देखा कि इन्हें मेरा नाम कैसे पता है??

वह नवयुवक मेरी ओर मुस्कुराता हुआ बोला-मैम आप मुझे नहीं पहचान पाएंगी। मैं बलजीत,मेरी मां आपके स्कूल में सफाई का काम किया करती थी। आपने मुझे जीवन में हमेशा आगे बढ़ाने की प्रेरणा दी थी। आज आपके विश्वास और अपनी मां के मेहनत के बल पर मैं इस मुकाम पर हूं।।

उसे ऊंचाइयों पर देखकर मेरा मन हुआ अभी प्रिंसिपल साहब के पास जाऊं और उनसे बोलूं -औकात उसे बच्चे की नहीं बल्कि हमारी औछी रह गई जो काबिलियत को सिर्फ कपड़ों से और पैसे से मांप पाए।।।

मनिका गर्ग

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!