आभा रो रोकर थक चुकी थी। कोई उसे सांत्वना देने वाला नहीं था। पूरा परिवार चैन की नींद सो रहा था ।उसका पति अभीर भी घोडे बेंच कर सो रहा था ।उसे होश नहीं था कि बगल में लेटी पत्नी रो-रोकर हलकान हो रही है। आभा बैड पर से उठकर खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई । पूर्णिमा का चाँद अपनी चाँदनी से पूरे बातावरण को सराबोर कर रहा था। किन्तु उसके जीवन में तो अंधेरा ही अंधेरा था।वह सजल नेत्रों से आसमान में तारों को देखकर अपने मम्मी पापा को खोजने का प्रयास कर रही थी।
कहां चले गये आप लोग मुझे छोड़ कर मुझे भी अपने साथ ले जाते। आप नहीं जानते कि मैं दुनियां में कितनी अकेली तन्हा हूं। किससे कहूं अपना दुख दर्द। किसे अपना राजदार बनाऊँ।
पापा आपको नहीं पता कि आपकी परी, राज- दुलारी, , राजकुमारी न जाने कितने नामों से पुकाराते थे आज कितनी तन्हा, बेबस है। देख सकते हो ऊपर से तो उसकी हालत देख लो ।चाचा-चाची ने मुझे पाला तो जरुर केवल आपकी सम्पती के खातिर। किन्तु उन्होंने आपकी इस परी पर क्या क्या जुल्म नहीं ढाये।
जो चाची कभी मेरे गालों पर प्यार से चुम्बनों की बौछार कर देतीं थीं उन्हीं के हाथ के निशान मेरे गालों पर सुबह शाम छपे रहते हैं । कितना मारती, भूखा रखती काम करवाती, मैं थक कर चूर हो जाती पर कभी प्यार के दो बोल नहीं बोलती। हमेशा कोसना ताने मारना। पापा क्या मैंने आप लोगों को मारा था , आपकी मृत्यु में मेरा क्या दोष किन्तु मुझे ही जिम्मेदार ठहरातीं। पहले तो रोती अब तो आंसू भी सूख गये ।
थोडा बडे होने पर जैसे-तैसे वे मेरी शादी कर जिम्मेदारी से फ्री होना चाहतीं थीं सो बिना सोचे समझे मुझे यहाँ इस नरक में ढकेल दिया। यहाँ मुझे कोई नहीं चाहता । ये लोग एक नम्बर के लालची हैं मुझसे कह रहे हैं कि अपने बाप की संपति में अपना हिस्सा माँगूं । मम्मी आप ही बताओ मैं क्या करूं ।
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जिन चाचा-चाची ने मुझे पेटभर खाना नहीं खिलाया, नौकरों की तरह काम करवाया वे क्या मुझे सम्पती में हिस्सा देगें। नहीं लाने पर ये मुझे मारते हैं,घर से निकालने की धमकी देते हैं अब में कहाँ जाऊं बताओ । मेरी हालत तो यह हो रही है, कि कुएं से निकली और खाई में गिरी। सोचा था कि शादी के बाद एक दूसरे घर में जाकर शायद मेरी किस्मत बदल जाए। मुझे प्यार करने वाला परिवार मिल जाए। जीवनसाथी मुझे समझे और मुझे प्यार करे। किन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ मम्मी। आपकी ये गुड़िया तो फुटबाल की तरह एक घर से दूसरे में उछाल दी गई।
मैं अपनी व्यथा किससे कहूँ। सास में, मैं हमेशा आपको ढूंढती हूँ शायद मुझ विन माँ की बच्ची की वो मां बन जाती तो मेरा मन मातृ सुख से तृप्त हो जाता, पर ऐसा नहीं हुआ। ससुर भी मेरे पापा नहीं बन सके ।मेरी हम उम्र एक ननद है उसमें मैं अपनी बहन, सहेली को ढूंढती हूं किन्तु वह कहीं नहीं मिलती। मिलती तो है एक कर्कश ननद जो हमेशा ही मुझे धुतकारती रहती, मेरे ऊपर हुक्म चलाती है ।एक छोटा देवर है वह भी भाई का स्थान न ले सका उसके छोटे-छोटे काम पूरे न होने पर माँ से मेरी शिकायत कर मुझे गलियां दिलवाता है , पिटवाता है।
मम्मी विदाई के समय लडकी को सीख दी
जाती है कि सास-ससुर को माँ-बाप ,ननद देवर को छोटा बहन भाई समझना, मैं ऐसा ही सोचती हूँ फिर भी मुझे प्रताडित क्यों किया जाता है। कितनी प्रताडना सहूँ मैं। दुःख तो मुझे तब ज़्यादा होता है जब आप लोगों को कोसा जाता है, गालियां दी जाती हैं। मरे हुए लोगों के लिए ऐसा बोलना उचित है क्या।
सास हमेशा कहती हैं कि कुछ नहीं आता। कोई काम ढंग से नहीं करती। मां ने क्या सिखाया। अब आप ही बताओ मम्मी उनका ऐसा कहना उचित है क्या जबकि उन्हें अच्छी तरह से मालूम है कि आप मुझे छोटी पांच बर्ष की उम्र में ही छोड गईं थीं । चाची ने कुछ सिखाया नहीं मैं क्या करूं। क्या वे स्वयं मेरी माँ बनकर मुझे सिखा नहीं सकतीं। प्यार से सिखायें तो में सब सीख जाऊँगी किन्तु ऐसा नहीं होता।
ननद देवर को पढते देख मेरी भी इच्छा होती है पढ़ने की । क्या मम्मी लड़कियां ससुराल में पढ नहीं सकतीं। वे मुझे थोडा पढ़ा सकते हैं नहीं केवल अनपढ, गंवार कह कर मेरा अपमान करते हैं। आप लोग होते तो क्या मैं अनपढ़ , गंवार रहती। मेरे को डाक्टर-डाक्टर खेलते देख पापा हमेशा कहते थे मेरी परी को डाक्टर बनाऊंगा। आज उनकी परी नौकरानी बन कर रह गई है। और तो और मम्मी जिनका हाथ पकड़ कर मैं इस अनजान घर में आई थी जो मेरे पति हैं उन्होंने भी मेरा साथ नहीं दिया। न मुझे कोई सम्मान देते हैं , न मेरे दुख दर्द से उन्हें कोई मतलब है।
गन्दी गन्दी गालियां देना, बात बात पर हाथ उठाना , अपमानित करना क्या ऐसे ही व्यक्ति को पति कहते हैं। मेरे पापा तो ऐसे न थे, वे तो आपको कितना प्यार करते थे। ऐसी गालीयां मैंने नहीं सुनी थी न आपको मारते थे तो मेरा पति ऐसा क्यों है यह मेरा दुर्भाग्य ही तो है।
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तीन साल हो गए शादी को आजतक मेरे से प्यार से नहीं बोले न कभी मेरे मन की बात समझने की कोशिश की न कभी मेरी कोई इच्छा भी है जानने भी जरूरत समझी। बस दिन भर परिवार बालों की जरूरतें दौड़-दौड़ कर पूरी करो, ताने सुनते हुए और रात को बिस्तर पर पति अपना हक जमाने में कोई कसर नहीं छोडता कि उसकी इच्छा है भी या नहीं कहीं मुझे कोई तकलीफ तो नहीं में तो बस उनके हाथ का खिलौना हूं चाहे जैसे तोड़-मरोड कर काम लिया और मतलब पूरा होने पर करवट बदलकर सो जाना।
अब आप ही बताओ पापा-मम्मी मैं किसलिए, किसके लिए जीऊँ। जब मेरा किसी के लिए कोई आस्तित्व ही नहीं है । मेरा रहना न रहना बराबर है तो क्यों न में इससे मुक्ति पा लूं ।
मम्मी अब मैं बहुत थक गई हूँ अब मुझसे सहन नहीं हो रहा । में आपके पास आना चाहती हूं। आपकी गोद में सिर रख कर सुख की नींद सोना चाहती हूं ।यह तो अच्छा है कि अभी तक कोई बच्चा नहीं हुआ अगर इन लोगों ने मुझे घर से निकाल दिया, चाचा-चाची अब मुझे रखेंगे नहीं, तो उसे लेकर मै कहाँ जाती ये दुनियां बड़ी खौफनाक है अकेली औरत को चैन से जीने नहीं देगी नित्य मर मर कर जिऊंगी।
बच्चा भी मेरी ही तरह दर दर ठोकर खाता भिखारी बनता इससे तो अच्छा है कि में अभी अपनी जीवन लीला समाप्त कर लूँ। पापा – मम्मी आपतो रखोगे न मुझे अपने पास। आप तो प्यार करेंगे न मेरे को जिसकी मैं भूखी हूं। आ रही हूँ मैं मम्मी- कह उसने अपने हाथ की नस काटली और वहीं फर्श पर लेट गई ।
पति वहीं निद्रा सुख में लीन था और वह धीरे -धीरे मृत्यु की और अग्रसर हो रही थी। सुबह जब अभीर ने आवाज लगाई चाय तो दे जा ।बहुत देर तक नहीं आई तो उठकर जैसे ही खड़ा हुआ कमरे में खून देखकर और आभा को इस तरह पडा देखकर चौंक गया। उसने तुरन्त आभा को देखा सांस चल रही थी, हाथ पर पट्टी बाँध अस्पताल ले गया। डाक्टर ने चैक कर जबाब दे दिया। शी इज नो मोर।
यह सुनते ही वह बदहवास सा आभा से लिपट गया,ये क्या किया तुमने ।डाक्टर ने पुलिस को फोन कर दिया। तुरन्त पुलिस आ गई। शव मोर्चरी में रखवा आवश्यक पूछताछ में जुट गई। अब जो होना वह कार्यवाही होती रहेगी किन्तु पंछी तो शरीर रूपी पिंजरे से आजाद हो चुका था। शान्ति की खोज में वह विलीन हो चुकी थी एक आस लिए प्यार पाने की।
पुलिस अभीर से पूछताछ कर रही थी उसके माता- पिता को भी बैठा रखा था। जब उनसे आभा के मायके वालों का पता पूछा तो उन्होंने चाचा का पता बता दिया। पुलिस द्वारा उन्हें तुरंत बुलाया गया। वे आये तो किन्तु उनके द्वारा कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई ।जब पुलिस द्वारा उन्हें शव ले जाने के लिए कहा गया तो वे इस पर भी सहमत नही थे। बे बोले मैं किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहता। काफी समझाइश के बाद वे अंतिम संस्कार करने को तैयार हुए।
चाचा द्वारा कोई भी केस दर्ज नहीं कराने पर एवं ले देकर बाप-बेटे आजाद हो गए। अभी तीन माह ही हुए थे आभा की मृत्यु को कि उन लोगों ने अभीर की दूसरी शादी करने का मन बना लिया। अब वे लडकी देखने के काम में व्यस्त हो गये। लडकी क्या उन्हें तो ऐसा शिकार चाहिये था जो उनके मन मुताबिक़ खूब सारा दहेज दे सके और फिर वे अपनी मांगे शादी के बाद भी बदस्तूर जारी रख सकें।
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हमारे समाज में अभी भी ऐसे कई माता-पिता हैं जो ज्यादा खोजबीन करे बिना तड़की की शादी कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हैं। ऐसे ही एक परिवार जिसके मुखिया विवेक जी थे उन्होंने बिना यह पता लगाये कि पहली पत्नी की किन हालात में मृत्यु हुई लड़के वालों की झूठ मूठ कहानी पर विश्वास कर अपनी बेटी का रिश्ता तय कर दिया। उनकी सरकारी नौकरी थी जिलाधीश कार्यालय के ओ. एस के पद पर आसीन थे। दो ही बच्चे थे एक बेटी निशि जो ग्रेज्यूशन कर चुकी थी और एक बेटा राज जो स्कूलिंग कर रहा था। मन मुताबिक दहेज देने को भी तैयार हो गए।
अब तो लड़के बालों की पौ बारह थी खुशी खुशी चट मंगनी पट व्याह हो गया। शुरु शुरु में तो निशी को बडे लाड प्यार से रखा गया। सास-ससुर भी अपना प्यार बहू पर लुटाते। अभीर का तो कहना ही क्या एक अच्छा पति बनने का पूरा नाटक कर रहा था।
निशि के मम्मी-पापा भी बहुत खुश थे कि चलो बेटी का रिश्ता अच्छी जगह हो गया दूजवर तो मिला किन्तु लडका अच्छा है बेटी को खुश रख रहा है। शायद पहली पत्नी में ही कोई कमी रही होगी। ऐसा परिवार तो नहीं लग रहा कि बहू को परेशान करे। उन्हें नहीं पता था कि भविष्य के गर्भ में क्या अनहोनी छिपी है जो घटित होने वाली है।
ऐसे ही हंसी खुशी चार महिने बीत गए अब धीरे-धीरे निशि पर अंकुश लगना शुरु होने लगा। पूरे घर का काम उस पर छोड़ने लगे।
बोलचाल, व्यवहार मैं भी निशि परिवर्तन महसूस करने लगी। अभीर के व्यवहार में भी परिवर्तन देख निशि समझ नहीं पा रही थी कि ये क्या हो गया ।
अब सास काम मे रोका-टोकी कर ताने मारने लगी। निशि ने जब इस परिवर्तन के बारे में अभीर से बात की तो वह बोला अरे वो मेरी मोटर साइकिल पुरानी हो गई है नई लेने की बात की तो वे नाराज हैं। शायद इसीलिए ऐसा कुछ कर रहे हैं। फिर एक दिन निशि से बोला एक बात कहूं बुरा तो नहीं मानोगी ।
बुरा मानने की कौनसी बात है कह दें जो कहना है।
अभीर तुम अपने पापा से कह कर नई मोटर साइकिल क्यो नहीं ले लेती मेरी इच्छा भी पूरी हो जाएगी और घर में तनाव का वातावरण भी कम हो जायेगा ।
अभीर अभी हमारी शादी को केवल चार महिने ही हुए हैं कितना तो पापा ने दहेज में दिया है अब में फिर कैसे उनसे यह सब कह सकती हूं।
क्या वे अपनी बेटी की खुशी के लिए इतना भी नहीं कर सकते।
अभीर करने न करने की बात नहीं है यह
मांग सम्मानपूर्वक नहीं है। आप स्वयं ही क्यों नहीं खरीद लेते।
यदि मेरे पास पैसे होते तो क्यों कहता। आपकी इतनी अच्छी नौकरी है, अच्छी सैलरी मिलती है फिर समस्या कहाँ है।
घर का खर्च में ही चलाता हूँ इतनी बचत कहां हो पाती है। बात यहीं छूट गई।
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निशि जब अपने घर गई तो उसने सारी बात अपने पापा को बताते हुए कहा पापा कुछ तो गडबड लग रही है इतनी सैलेरी पाकर भी पैसे नही हैं आश्चर्य की बात है ।पापा – बेटी तू चिन्ता मत कर मैं उनकी यह माँग भी तेरी खुशी के लिए पूरी कर दूंगा तू खुश रहे।
नहीं पापा ये तो गलत है यदि इसके बाद भी फिर उन्होंने नई मांग रख दी तो आप कब तक देंगे।
नहीं बेटा ऐसा कुछ नही होगा तू धैर्य रख। घर आकर जब पापा द्वारा मोटर साइकित देने की बात अभीर को बताई तो वह ओर सास ससुर सब प्रसन्न हो गए।
छोटी-छोटी चीजों के लिए सास ताना मारती यह भी नहीं दिया वह भी नहीं दिया तीनों कमरे में बैठदर गुपचुप बातें करते उसे दूर रखा जाता। अब निशि को घर का माहौल अजीब सा लगता। अभीर सारा दिन या तो घर में ही पड़ा रहता या फिर सुबह का निकला शाम को ही आता। उसने कई बार जानने की कोशिश की कि आखिर वह कौनसी नौकरी करता है। रोज काम पर क्यों नहीं जाता वह निशि पर चिल्ला पडा तुम अपने काम से मतलब रखो ज्यादा CID। मत बनो। तुम्हें रोटीयां मिल रही हैं न बस ।
निशि पढ़ी लिखी लडकी थी इन बातों से उसका माथा ठनका। और यह बात भी उसने फोन से अपने पापा को बताई। अब उसकी सास उसके फोन पर नजर रखने लगी।वह घबरा गई कि कहीं मेरा फोन न छीन लें । अतः अब उनके सामने फोन पर बातें करना कम कर दिया।
तभी एक दिन उसके सास-ससुर ने उसे अपने पास बिठाया और बोले बेटा हमें तुम्हारी मदद चाहिए।
कैसी मदद पापा जी।
हमारा कहीं पैसा अटका हुआ है मिल नहीं पा रहा और हमें लोन की किश्त भरनी है, अपने पापा से पांच लाख उधार दिलवा दो, पैसा आते ही हम उन्हें लौटा देंगें।
पर पापा जी, पापा इतना पैसा कहां से लाएंगे। वे केवल नोकरी करते हैं,मेरा भाई अभी पढ़ रहा है घर खर्च ही चल पाता है, फिर जो मोटर साइकिल ली थी उसकी भी किश्तें चुकानी पड़ती है। पापा तो पहले ही परेशान हैं । मैं अब उन्हें और परेशान नहीं करना चाहती। यह सुनकर दोनों का पारा चढ़ गया और वे अपने मूल रूप में आ गए लाना तो तुझे पडेगा यदि इस घर में चैन से रहना चाहती है अन्यथा तेरा भी वही हाल होगा ,कहने को तो गुस्से में कह गए, बाद में एक दम चुप हो गए कि गलत बोल गए। तभी अभीर भी वहाँ आ गया और उसे आँखें दिखाते बोला चुप चाप पापा की बात मान ले नहीं तो इतना मारूंगा कि याद रखेगी। आज तीनों का – असली चेहरा सामने आ गया। वह कांप उठी। उसके मुँह से डर के मारे आवाज ही नहीं निकली ।
सास बोली कल तू मायके जा रही है, अभीर छोड आयेगा और एक-दो दिन में पैसे लेकर आ जाना।
जी मम्मी जी कह कर घबराई सी अपने कमरे में चली गई। बैठ कर सोचती रहीअब क्या करूं सोचा यहां से तो निकलूं कैसे भी पता नहीं ये लोग मेरे साथ क्या करने वाले हैं।
सुबह वह मायके जाने को तैयार हो गई सब बडे खुश थे कि पाँच लाख तो आयेंगे। घर जाकर वहा पापा के गले लगकर फूट फूट कर रोने लगी कि पापा अब में यहाँ नहीं जाऊंगी। ये आपने मुझे कहां भेज दिया। अजीब से लोग हैं मुझे बहुत डर लग रहा है। इस बार विवेक जी को दाल में काला नज़र आया।
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उन्होंने अपने दोस्तों से सम्पर्क किया जो एक वकील थे ,दूसरे डी सी पी। और पूरी समस्या बता कर समाधान पूछा। दोनों की राय थी कि कुछ तो सबूत होना चाहिए। थोडा कुछ सबूत इकट्ठा करो। कैसे सबूत इकट्ठा करें। बैटी को बोलो जब वे उससे या आपस में बातें करें तो वह रिकार्ड कर लिया करे चुपचाप।
पर वह तो डर के मारे जाने को ही तैयार नहीं है ।तब उन्होंने कहा हम उसे समझाते हैं। DCP ने उसे समझाया कैसे क्या करना है और कहा डरो मत एक पुलिस का आदमी साधारण कपड़ों में तुम्हारे मकान के आसपास रहेगा कुछ भी भी गडबड होने पर वह वहां पहुंच जाएगा। डरने की जरूरत नहीं है। बेटा थोड़ा हिम्मत से काम लो ये लोग शातिर अपराधी हैं पहले भी सबूत के अभाव में एवं उस लड़की के मायके वालों द्वारा रूचि नहीं लेने पर साफ छूट गये और अब तुम्हारी जिन्दगी से खेल रहे हैं। यदि तुमने भी इन शातिर बदमाशों को पकड़वाने में साथ नहीं दिया तो ये तुम्हारे साथ भी अनहोनी करके और दूसरी लड़की की जिन्दगी बर्बाद करेंगें घबराओ नहीं हम सब तुम्हारे साथ हैं।
वह ससुराल जैसे ही पहुँची. सास की आवाज सुनाई ले लाई पैसे उसने घर पहुंचने के पहले ही फोन ऑन कर दिया था।
वह बोली- नहीं मम्मी जी पापा के पास तो पैसे है नहीं उन्होंने बैंक से लोन लिया है सो कारवाई में थोडा समय लग रहा दो-चार दिन में मिल जायेगे वैसे ही पापा पैसे दे जायेगे।
अच्छा चल जा काम पर लग जा।
थोडी देर बाद अभीर ने भी पैसों के बारे में पूछा। उसका उत्तर सुन आगबबूला हो गया और उसको गन्दी गन्दी गालियां देते हुए बोला तेरा बाप तब आएगा जब तुझे अधमरा देखेगा कहते उसने दो-तीन थप्पड लगा दिये ।
तब उसकी मम्मी बोली कहां जाएगा बेटी
की सलामती चाहता है तो अपने आप लाएगा । दो चार दिन और सब्र कर ले फिर इसको ढंग से सबक सिखाएंगे।
ये लोग बडे खुश हो रहे थे कि चलो पाँच लाख तो आ रहे हैं ,आगे फिर डिमान्ड कर देंगे। उन्हें नहीं पता था कि इस बार सेर को सवा सेर मिला है। जिसने उनके विरुद्ध पूरा जाल बुन दिया है।
चार दिन बाद पैसे न आने पर बौखला गए और उसके साथ गाली-गलौच, मार-पीट करना, भूखा रखना आरम्भ कर दिया।
फिर ससुर बोले भेज इसे बाप के घर रुपए लेकर आए।
जा अभी निकल घर से और जल्दी से पैसे लेकर आ।
जी मम्मी जी में बहां दो-चार दिन रुक जाती हूं यदि पापा को बैंक से पैसे नहीं मिले होंगे तो मैं उन्हें याद दिलाती रहूंगी तो शायद पापा जल्दी काम करवांये।
हां यह तूने ठीक कहा ।
उसने बैग में अपने दो चार कपड़े रखे साथ ही गहने जो उसके पास थे ,फुर्ती से बाहर निकल गई। उसे डर था कि वे लोग कहीं उसका फोन न चेक कर लें।
वह जैसे ही घर पहुंची उसकी मम्मी उसकी हालत देखकर रो पड़ीं। ये कहाँ मेरी फूल सी बच्ची को बार-बार भेज देते हो हालत देखो इसकी।पापा को भी उसे देखकर दुःख हो रहा था बोले बस बेटा अब नहीं भेजूंगा तुझे और उसे गले लगा प्यार करते करते स्वयं रो पड़े। फिर उसको लेकर DCP के पास गए उसकी हालत देख उन्होंने तुरन्त उसका मेडिकल करवाया, पापा ने रिर्पोट लिखवाई घरेलू हिंसा, मानसिक एवं शारिरिक उत्पीडन, दहेज की माँग ।पूरे परिवार को दोषी ठहराते हुए नामजद करवाया। फोन की रिर्काडिंग सुनकर सही सबूत मिले। मेडिकल रिर्पोट में उसकी चोटों के निशान बता रहे थे कि उसके साथ मारपीट की गई है। सब पुख्ता सबूत मिलते ही अगली कार्यवाही शुरू की गई।
इधर तीन दिन बीत जाने पर जब वह ससुराल नहीं गई तब अभीर ने फोन किया उसे भी रिकार्ड पर ले लिया । वहां जाकर मर गई क्या। बाप -बेटी दोंनों ही आने का नाम नहीं ले रहे।
दमाद जी इतने अधीर क्यों हो रहे हैं मैं आ रहा हूँ थोडी देर में पंहुच जाऊंगा ।
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हां हां ठीक है किन्तु साथ में उस नौकरानी को भी ले आना यहाँ मेरी माँ काम करके परेशान हो रही है।
जी जरुर,आता हूं कहते ही फोन कट गया
थोड़ी ही देर में बेल बजने पर जैसे ही अभीर ने दरवाजा खोला ससुरजी को देख कर बहुत खुश हो गया।
उसके पापा बोले समधी जी पैसे तो ले आए न कि खाली हाथ आए हैं।
नहीं ऐसा कैसे कर सकता हूं, कहते हुए जैसे ही उन्होंने पैसे समधी जी के हाथ में पकड़ाए तभी पुलिस ने आकर सबको चौंका दिया।
तीनों को गिरफ्तार कर गाड़ी में बिठा पुलिस थाने ले आए।सब कुछ इतना
अचानक हुआ कि वे कुछ समझ ही नहीं पाये।
वे बार-बार यहि पूछते रहे कि हमने किया
क्या है। हमें क्यों गिरफ्तार किया है। पांच
लाख हाथ में लेते पुख्ता सबूत था दहेज
का। तभी DCP भी वहाँ आ गए और बोले पहली बार तो तुम लोग बच गए थे पुख्ता सबूत न होने के कारण पर इस बार नहीं बच पाओगे।वह तो वह लड़की बहुत ही अभागिन थी कि उसके घर वालों ने उसका साथ नहीं दिया।तुहारे ऊपर कोई केस नहीं किया । हर बार ऐसा नहीं होता। निशि मेरी बेटी जैसी है इस बार तुम गलत जगह फंस गये।
उन्हें कोर्ट में पेश कर पन्द्रह दिन की रिमाण्ड पर लेकर सख्ती से पूछताछ की गई। सारे गुनाह कबूलवाये। फिर कोर्ट में पेश किया। मुकदमा चला अन्त में तीनों को सात-सात साल की सजा एवं दो लाख का जुर्माना सुनाया गया। तीनों जेल में अपने कर्मों की सजा भुगत रहे थे।
इधर निशि कुछ दिनों में नार्मल हो गई क्योंकि वह कभी उन लोगों से दिल से जुड़ ही नहीं पाई थी। उसे तलाक दिलवा कर
काफी खोजबीन करने के बाद, कहते हैं न दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है।उचित घर वर देखकर उसकी शादी कर दी। अब वह खुश थी।
शिव कुमारी शुक्ला
18-4-24
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
दोस्तों बेटी को कभी भार न समझें। यदि माता-पिता उसके साथ मजबूत स्तम्भ बन कर खड़े रहेंगे तो बड़ी तो बड़ी मुसीबत वह पार कर लेगी और जीवन में खोई हुई खुशियां वापस पा लेगी । आभा जैसी अभागिन बेटी की तरह मौत को गले न लगाना पडेगा। वह मासूम बच्ची बिल्कुल अकेली थी। न माता-पिता का सपोर्ट, न पास में पैसा,अनपढ़,न रहने का ठिकाना,ऐसी विषम परिस्थिति में वह कैसे लड़ती। मौत के बाद भी उसे न्याय दिलाने के लिए चाचा खड़े नहीं हुए तो क्या वे उसके मांगने पर उसके पापा की संपति लौटा देते।केस करने की स्थिति उसकी थी क्या।यह हमारे समाज की विडंबना ही है कि अकेली लड़की अपने आपको महफूज नही समझती और नकारात्मक कदम उठाने को मजबूर हो जाती है। बेटियों को शादी के बाद पूर्णरूप से ससुराल पर न छोड़ें कभी-कभी उनकी सुध भी लेते रहें कि वे किस हाल में हैं। उन्हें आपकी जरूरत तो नहीं । समाज से न डरें, लोग तो कुछ भी कहेंगे उनका काम है कहना।
हृदय को उद्वेलित और झकझोर देने वाली रचना। दिल वेदना से भर गया
हृदय को उद्वेलित करने और झकझोर देने वाली रचना। मन वेदना से भर गया
बहुत नकारात्मक दुःख भरी कहानी। पाठक गण अपनीअपनी दैनंदिन की समस्याओ से समय निकाल कर पढते समय कुछ सकारात्मक लेखन की अपेक्षा रखते हैं ।
Bakwaas