त्रिवेणी अपने समय की बहुत बड़ी नृत्यांगना जिसकी चमक उम्र के इस पड़ाव पर आकर भी कम ना हुई थी। कई सारी नई उम्र की लड़कियां भी अब देश के परंपरागत नृत्य में अपनी जगह बना रही थी पर किसी में भी अब तक त्रिवेणी जैसे हाव-भाव और लचीलापन नज़र नहीं आता था। ऐसे में अपराजिता जैसी नवयौवना जिसकी उम्र मुश्किल से बीस साल होगी,कत्थक की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में प्रदेश स्तर पर चयनित होकर भाग लेने आती है। नृत्य करते हुए उसकी भाव भंगिमा और शरीर का समन्वयन देखते बनता था।
सारे निर्णायक मंडल ने एक स्वर में उसको विजेता घोषित कर दिया। कई वर्षों बाद आयोजन समिति को देश का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करने के लिए अपराजिता के रूप में नई प्रतिभा मिली थी नहीं तो अभी तक कोई भी कम उम्र की लड़की त्रिवेणी को टक्कर नहीं दे पाई थी। आज त्रिवेणी के दंभ को चुनौती मिली थी। इतने कम उम्र की लड़की से पीछे रहना बार-बार उसको एक वृश्चिक दंश की भांति चुभ रहा था। हालांकि हार- जीत तो जीवन का हिस्सा है पर हर बार अपनी प्रशंसा और वाही-वाही सुनने की त्रिवेणी को आदत हो गई थी। वो अपनी हार स्वीकार ना कर सकी और गुस्से से दनदनाती हुई निकल गई।
अगले दिन के सभी समाचार पत्रों में अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए किसी अपराजिता नाम की नई लड़की का चयन और त्रिवेणी का गुस्से से तमतमाकार आयोजन से निकलना सुर्खियों में छाया हुआ था। इसके साथ दो-चार समाचार पत्रों में उस लड़की अपराजिता की फोटो भी छपी थी। फोटो को देखकर त्रिवेणी को अपने कॉलेज के दिन याद आ गए वो भी हुबहू ऐसे ही दिखती थी। एक समाचार पत्र ने अपराजिता के सराहना करते हुए लिखा था कि साधारण से परिवार की ये लड़की ना सिर्फ चेहरे-मोहरे में त्रिवेणी की प्रतिरूप लगती है अपितु नृत्य और भाव भंगिमा में भी उससे इक्कीस ही बैठती है।
वो अभी ये सब पढ़ ही रही थी कि उसकी घनिष्ठ सखी रेशमा का फोन आया और उसने उसे टीवी का प्रतिष्ठित चैनल लगाने के लिए कहा। जैसे ही टीवी खोला, उसमें अपराजिता का लाइव साक्षात्कार आ रहा था। वैसे भी मीडिया की आदत तो चढ़ते सूरज को प्रणाम करने की होती है। त्रिवेणी को उस लड़की की शक्ल और बात करने का तरीका हुबहू अपने जैसा लग रहा था, वो कुछ सोच समझ पाती,इतनी ही देर में उसको अपराजिता के परिवार के विषय में कुछ शब्द पड़े जिसमें उसे सुनाई दिया कि उसके पिता नहीं हैं,उसकी मां ने पार्लर में काम करके उसको पढ़ाया लिखाया और नृत्य की विधिवत शिक्षा दिलाई।
साक्षात्कार के समाप्त होने के पश्चात भी त्रिवेणी का मन अपराजिता में ही अटका हुआ था।अपराजिता के चेहरे से इतनी समानता उसके लिए पहेली बनी हुई थी। वैसे तो उसने कहीं पढ़ा भी था कि पूरी दुनिया में छः लोगों के चेहरे मिलते जुलते होते हैं पर इन तर्कों से वो अपनेआप को समझा नहीं पा रही थी।
यही सब त्रिवेणी के दिमाग में चल रहा था तभी उसके बीस साल पुराने अतीत की यादें चलचित्र की भांति उनकी आंखों के समक्ष चलने लगीं। आज से बीस साल पहले वो अल्हड़ सी किशोरी थी और उसको विदेशी उच्चायोग में राजनयिक के पद पर कार्यरत पिता के धन और शानोशौकत ने पूरी तरह बिगाड़ रखा था।
पिता अपने कार्य से तो माता अपनी किट्टी पार्टी और अभिजात्य वर्ग की अन्य पार्टी की वजह से अधिकतर घर से बाहर ही रहते थे। घर पर प्यार के दो बोल के साथ-साथ उसके अनुचित कृत्यों पर बोलने वाला कोई ना था। वो अपने साथ पढ़ने वाले लड़के लड़कियों को ही घर पर बुलाकर अपना समय बिताती। ऐसे ही उसकी घनिष्ठता चंदन नाम के लड़के से हो गई जिसका रहन सहन का स्तर उसकी तुलना में काफ़ी निम्न था।
पहले तो चंदन त्रिवेणी से दूर रहने की कोशिश करता पर वो उम्र ही कुछ ऐसी होती है कि दिल के आगे दिमाग एकदम बेबस हो जाता है। ऐसा ही कुछ चंदन के साथ भी हुआ,वो त्रिवेणी के मोहपाश में ऐसा बंधा कि अपने आस-पास की दुनिया भूलने लगा। त्रिवेणी के घर पर तो वैसे भी उसके बहकते कदमों को रोकने वाला कोई नहीं था। एक दिन चंदन त्रिवेणी के साथ उसके घर पर ही था और दोनों के बीच ऐसा कुछ हो गया जो समाज की नज़रों में ठीक नहीं था।
दोनों के बीच की सारी मर्यादा टूट गई। थोड़े समय बाद जब त्रिवेणी की तबियत खराब हुई और घरेलू उपचार के बाद भी कोई लाभ ना हुआ तब त्रिवेणी की मां का ध्यान उसकी तरफ गया।
डॉक्टरी परीक्षण के बाद त्रिवेणी के गर्भवती होने की पुष्टि हो गई। अब त्रिवेणी के माता-पिता के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उन्होंने उसका गर्भपात करवाने की कोशिश की पर डॉक्टर ने उसकी उम्र कम होने तथा समय थोड़ा अधिक बीत जाने के कारण मना कर दिया।
अब त्रिवेणी के माता-पिता को समझ नहीं आ रहा था क्या करें। एक तरफ समाज में उनकी बनाई प्रतिष्ठा और दूसरी तरफ बेटी का भविष्य।औलाद के प्रति अपना कर्तव्य ना निभाने का पछतावा भी कहीं ना कहीं मन में था। त्रिवेणी के पिता जी ने तुरंत फैसला लिया कि वो त्रिवेणी को बच्चा होने तक अपनी विधवा बहन जो यहां से दूर एक कस्बे में रहती है वहां भेज देंगे। वैसे भी यहां उनके घर वालों का आना-जाना नहीं था, वो ही हर महीने उनके पास ज़रूरत का सब समान और रुपए पैसे भेजते रहते थे।
सुबह की पहली किरण के साथ ही पत्नी को त्रिवेणी के साथ अपनी बहन के पास रवाना कर दिया। सबको यही कहा गया कि कुछ ज़मीन संबंधी काम अचानक से आ गया इसलिए पुत्री और पत्नी को तुरंत वहां भेजना पड़ा। उस समय सोशल मीडिया या मोबाइल का ज़माना तो था नहीं कि किसी को ज्यादा भनक भी लगती।त्रिवेणी के गर्भवती होने की खबर के बाद उसका पढ़ने जाना भी बंद हो गया था इसलिए चंदन से मुलाकात भी बंद हो गई थी।
कई बार चंदन ने त्रिवेणी से मिलने की कोशिश भी की तो उसको घर के बाहर बैठे गार्ड ने अंदर ही नहीं जाने दिया। इस तरह चंदन से त्रिवेणी के प्रेम अध्याय की समाप्ति यहीं हो गई। ये प्रेम संबंध वैसे भी त्रिवेणी के लिए सिर्फ मौज़मस्ती के लिए था जिसको उसने सिर्फ अपना अकेलापन दूर करने के लिए किया था।
अब त्रिवेणी अपनी मां के साथ अपनी विधवा बुआ के पास पहुंच गई। कुछ महीने के पश्चात प्रसव का समय भी आ गया और प्रसव पीड़ा से वो बच्चे को जन्म देने के पश्चात बेहोश हो गई। जब वो होश में आई तो उसको बोला गया कि बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ था।
मरे हुए बच्चे की बात सुनकर उसे थोड़ा तो झटका लगा पर फिर उसने अपने भविष्य की सोचते हुए अपनी बुआ और मां से ज्यादा कुछ नहीं पूछा। उसको तो ये भी नहीं पता था कि उसको बेटी पैदा हुई थी या बेटा। सब कुछ उसके पिताजी की योजनानुसार चल रहा था। उसके प्रसव के बाद और उसकी तबियत के संभलते ही उसके पिता ने अपना ट्रांसफर दूसरे शहर में करा लिया।
अब यहां उसकी आगे की पढ़ाई और नृत्य की विधिवत शिक्षा शुरू हुई। वैसे भी वो नृत्य में पहले से ही पारंगत थी पर अब वो उसमें और भी निपुणता प्राप्त करती जा रही थी।उसके सब दोषों को पिता ने अपने पद के आवरण से ढककर चार-पांच वर्षों के बाद उसका विवाह मानव से किया जो उद्योगपति घराने से था।ससुराल में भी कोई रोक-टोक नहीं थी। ससुराल के वैभव और मानव के प्यार के बीच वो अपने अतीत के काले सच को पूरी तरह भूल गई।
इन्हीं सबमें जिंदगी के कई साल निकल गए। शादी के इतने सालों बाद भी त्रिवेणी के घर बच्चे की किलकारी ना गूंजी। वो दोबारा गर्भधारण ना कर पाई। उसके और मानव के सभी टेस्ट भी हुए पर परिणाम शून्य ही रहा। ऐसे में उसको अपना पहला गर्भधारण और चंदन की धुंधली याद तो आती पर वो उसे सिरे से झटक कर वर्तमान में आ जाती। वैसे भी किसी पुरानी दोस्त से उसको चंदन के फौज में वीरगति प्राप्त करने की खबर भी मिली थी। दिन ऐसे ही बीत रहे थे।
मानव ने अपनेआपको काम में और त्रिवेणी ने खुद को नृत्य में पूरी तरह डुबो लिया था। अब त्रिवेणी को लग रहा था कि कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रसव के बाद उससे झूठ बोला गया हो। बच्चा ठीकठाक पैदा हुआ हो क्योंकि बेहोश होते होते उसने बच्चे के रोने की आवाज़ तो सुनी थी। अब वो जल्द से जल्द इस राज को जानना चाहती थी।माता-पिता तो अब नहीं रहे थे पर बुआ जी अभी ज़िंदा थी।
त्रिवेणी ने फैसला लिया कि सूरज की पहली भोर के साथ वो बुआ जी के पास जायेगी और सारी सच्चाई पता लगाएगी। वो तड़के उठकर गाड़ी लेकर बुआजी के पास निकल गई। मानव भी अपने काम के सिलसिले में और ससुराल के अन्य लोग किसी विवाह समारोह में भाग लेने के लिए बाहर गए हुए थे इसलिए उसको किसी से कुछ कहना-सुनना भी नहीं था।
वो बुआजी के पास पहुंची और उसने उनसे अपने प्रसव की सारी बात सच सच बताने के लिए कहा। पहले तो बुआजी आनाकानी करने लगी पर जब उसने उनको पाप-पुण्य का वास्ता दिया तो उन्होंने बताया कि उसने एक सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया था जिसके पैदा होते ही किसी अनाथाश्रम के बाहर छुड़वा दिया गया था। उसके बाद उस बच्ची का क्या हुआ किसी को नहीं पता।
अब त्रिवेणी के सामने एक ही रास्ता था कि वो किसी तरह अपराजिता के घर तक पहुंचे और उसकी तथाकथित मां से सारी सच्चाई पता लगाए। अब त्रिवेणी को अपने काले अतीत पर पछतावा हो रहा था। जिसमें उसने क्षणिक सुख की मौज-मस्ती के लिए आगे के अंजाम की परवाह नहीं की थी। वो आज अपने घर एक बच्चे की किलकारी से भी वंचित थी शायद ये उसके अतीत के गुनाह का दंड था। एक अंतर्द्वंद तो उसके मन में अभी भी चल रहा था कि अगर अपराजिता उसकी ही बेटी हुई तो वो कैसे उसे अपनाएगी? कैसे वो मानव और अपने ससुराल वालों को इस विषय में बताएगी?ये सब सोच ही रही थी कि उसके अन्दर की मां ने इन सब बातों से इतर उसे अपराजिता के घर जाने को विवश कर दिया। जब वो किसी तरह उसके घर पहुंची तो देखा,अपराजिता की मां बिस्तर पर बीमारी की अवस्था में लेटी हुई थी और अपराजिता उनकी सेवा में लगी हुई थी। त्रिवेणी को देखकर वो दोनों आश्चर्यचकित हो गई।
अपराजिता और त्रिवेणी के चेहरे में इतनी समानता थी कि बिस्तर पर पड़ी अपराजिता की पालनकर्ता मां दिव्या बिना कुछ कहे ही सब समझने बूझने में लगी थी। बिना किसी भूमिका के दिव्या ने कहा कि मैं अपराजिता की जन्मदात्री मां नहीं हूं,पालनहारिणी मां हूं। ये बात अपराजिता भी जानती है। इसको मैंने अपनी जान से भी ज्यादा संभाल कर रखा है। ये एक दिन की भी नही थी जब अनाथाश्रम के बाहर सबसे पहले मैने इसे देखा था। एक दिन वहां आग लगी, सारे लोग तितर बितर हो गए। पता नहीं कैसे नन्हीं सी ये बच्ची मेरे साथ हो गई। मैं तो खुद उस समय उन्नीस बीस साल की थी। लोगों से बचते-बचाते किसी तरह इसको साथ लिए मुंबई आ गई और बार डांसर बन गई।
खुद कीचड़ में रही पर इस पर आंच ना आने दी। बाद में बार में डांस पर प्रतिबंध भी लगा पर मैंने घरों में और पार्लर में काम करके इसको पाला। इसने भी मेरे को कभी तंग नहीं किया हमेशा पढ़ाई और नृत्य में अव्वल आती। स्कूल की तरफ से ही इसको पढ़ाई और नृत्य की शिक्षा का सारा प्रबंध किया गया। इसने कत्थक में विशेष परांगता हासिल की। इसका डांस देखकर मैं अक्सर सोच में पड़ जाती कि ये इसके अंदर किसके गुण आए हैं पर आज आपको देखकर कहीं ना कहीं मेरे को लग रहा है कि आपसे इसका कुछ न कुछ तो रिश्ता है।
ये सब सुनने के बाद त्रिवेणी ने रोते हुए कहा कि मैं ही इसकी अभागी मां हूं जिसने इसको जन्म तो दे दिया पर आगे इसकी कोई खोज-खबर ना ले पाई।मैं अपनी ही दुनिया में मस्त हो गई थी शायद इसी का दंड है जो आज मेरे को कोई मां कहने वाला नहीं है।
आज मैं इसके मुंह से मां सुनना चाहती हूं, मैं इसे परिवार के सामने सीधे तो नहीं अपना सकती पर गोद लेकर अपना बनाना चाहती हूं। इन सब के बाद इसकी जिंदगी में सब सुविधा होंगी। तुम्हारा इलाज़ भी अच्छे से हो जाएगा। ये सब बातें सुनकर अपराजिता ने त्रिवेणी के साथ जाने से मना कर दिया। उसने कहा कि आपने देवकी और यशोदा की कहानी तो सुनी ही होगी।जन्म देने से ज्यादा पालने वाले का महत्व होता है। वैसे भी जिस समय मुझे मां की गोद की सबसे ज्यादा जरूरत थी तब आप अपनी दुनिया में मस्त थी।
आज अगर मेरी ये पालनकर्ता मां नहीं होती तो दुनिया मेरे को अवैध बच्चे का नाम दे चुकी होती। आज जब मेरी बारी आई इनकी देखभाल की,तब मैं इनको बीमारी की हालत में छोड़कर नहीं जा सकती। वैसे भी आपके बड़े महलों में मेरी उपस्थिति पैबंद का काम करेगी।
आज भी आपको अपने ससुराल के मान सम्मान की चिंता है।आप मेरे को अपनाना तो चाहती हैं पर गोद लेकर,जिससे अपने अतीत के काले सच को छुपा सकें और पूरी दुनिया को दिखा सकें कि आप कितनी महान हैं।आपके इसी स्वार्थ के चलते शायद भगवान ने आपको अब तक मातृत्व के सुख से वंचित रखा है। अपराजिता की बातों ने त्रिवेणी को अंदर तक हिला दिया।
पछतावे की आग में झुलसती हुई वो वहां से उठकर अपने घर की तरफ चल पड़ी। शायद उसके कर्मों की यही सज़ा नियति ने तय की थी। आज अतीत की स्याही ने उसके जीवन भर के पछतावे की कहानी गढ़ दी थी।
दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी। हर कहानी का अंत सुखद नहीं हो सकता। यहां तो फिर भी अपराजिता को जीवन संवारने वाली पालनकर्ता दिव्या के रूप में मिल गई पर हर किसी के साथ ऐसा नहीं होता। विवाह पूर्व बनाए इस तरह के प्रेम संबंध कितने ही नवजात बच्चों की ज़िंदगी खराब कर देते हैं इसलिए माता-पिता को किशोरवय के बच्चों को बहुत ही अच्छी परवरिश देने की आवश्यकता है।
#पछतावा
डॉ पारुल अग्रवाल
नोएडा
Absolutely
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