आज तलाक़ की अर्ज़ी पर सम्मानित न्यायाधीश के व्यवहार न्यायालय इजलास में अंतिम जिरह होनी है । अवनीश और मृदुला आमने सामने खड़े हैं ।अवनीश के चेहरे से उसके ऊँचे पद का दम्भ टपक रहा है..मृदुला भी चुपचाप एक विश्वास के साथ खड़ी है। अब तो जो होना था वो हो चुका, अब पीछे मुड़कर वो नहीं देखेगी..फिर भी अवनीश को सामने देखकर उसके साथ पाँच साल बिताए गये एक एक पल उसकी नज़रों के सामने से गुजरने लगते हैं..क्यूँ अवनीश ने इन्द्रधनुषी दुनिया को अपने ही दम्भ की आग में जला डाला? काश,अभी भी वो गलती स्वीकार कर क्षमा माँग ले…वो सामने खड़े अवनीश की बाजुओं में सिमट कर आँसुओं से सारे गिले शिकवे धो देना चाहती है..
मृदुला का आत्मविश्वास कुछ अधिक ही लग रहा है..मैंने तो उसके मरियल से चेहरे की उम्मीद की थी..खैर ,मरनासन्न गौरैया आख़िर कब तक अपने जोश के भुलावे में रह सकती है?गुज़ारा भत्ता के लिए तो उसे मुँह खोलना ही पड़ेगा,पिता के टुकड़ों पे कब तक पलेगी?औरत है पर मर्दों सा अधिकार चाहिए उसे..कमाता मैं हूँ तो निर्णय उसके कैसे हो सकते हैं? कार्यालय मेरे निर्णय पे चलता है और घर में मैं भीगी बिल्ली बनकर रहूँ! वो अपना सर उठाकर इतनी हठधर्मी नहीं करती तो मैं तलाक़ के पचड़े में क्यों पड़ता! मानता हूँ जब मैं बोलता था तब वो चुप रहती थी..वैसे भी उसका सहयोग ही क्या था, किस बात का घमंड दिखाती?.. फिर भी बराबरी का अधिकार जताने से वो चूकती नहीं थी! अवनीश का झूठा अहंकार अभी भी कम कहाँ हुआ था!
मृदुला के वकील ने गुज़ारा भत्ता के लिए इनकार करते हुए तलाक़ की अर्ज़ी पर निर्णय हेतु माननीय न्यायाधीश से अनुरोध करते हैं..इजलास में अचानक सन्नाटा छा जाता है..आखिर जियेगी वो कैसे? मृदुला चुपचाप भरपूर आत्मविश्वास के साथ खड़ी रहती है ।
दोनों पक्षों के समुचित जिरह के उपरांत बग़ैर गुज़ारा भत्ता के तलाक़ की अनुमति प्रदान की गई।अवनीश बुत..आँखों से बस एक प्रश्न..उसके आय के साधन क्या हैं?… पिता पर निर्भरता है तो मुझपर निर्भरता क्या बुरी थी?.. मृदुला ने उसकी जिज्ञासा शांत करना मुनासिब समझा..” मैं मेडिकल प्रवेश परीक्षा हेतु कोचिंग क्लास चलाती हूँ..” पास जाकर बता दिया। अवनीश की आँखें नम होती देखा…पर आत्मविश्वासी कदमों से इजलास से निकल गयी।
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स्वरचित
रंजना बरियार