आत्मघात  – नेहा शर्मा ‘नेह’

अभी श्रावणी ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा ही था कि किस्मत ने उसे बहुत बड़ा धक्का दिया। उस दिन उसका सोलहवां जन्मदिन था जिस उम्र में हर लड़की की उमंगें जवान होना शुरू जाती हैं, सपने पंख लगाकर उड़ने को बेताब होते हैं, चंचल और शोख मन उन सपनों के परों पर अपनी परवाज भरकर उड़ जाना चाहता है, उस सोलहवें जन्मदिन पर वह अपने मम्मी-पापा, भाई-बहनों के साथ जन्मदिन मनाने जा रही थी। उसके पापा ने उसे सरप्राइज दिया और प्रोग्राम बनाया कि उसका यह जन्मदिन शिमला में मनाएंगे। 

 

बहुत ख़ुश थी वो। उसके पापा अक्सर कोई न कोई सरप्राइज देते रहते थे और यह वाला सरप्राइज तो उसकी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सरप्राइज था।  

 

रास्ते भर खूब मौज-मस्ती करते, अंताक्षरी खेलते, गाने गाते जा रहे थे। उसके पिता भी अपनी धुन में उनके साथ-साथ गा रहे थे। बच्चों के साथ बच्चे बन जाते थे वो भी। कभी रोमांटिक गाना गाते तो कनखियों से उसकी मम्मी की ओर देखते और मुस्कुरा देते। बच्चे भी उनका यह प्यार देख शरारत पर उतर आते। 

 

बहुत बढ़िया सफर कट रहा था। मगर किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। अभी आधा रास्ता ही तय किया था कि रास्ते में उनकी कार का भयंकर एक्सीडेंट हो गया। सामने आते ट्रक ने किसी वाहन को बचाते-बचाते उनकी कार को टक्कर मार दी। उसके पापा ने, जो कि गाड़ी चला रहे थे, मौके पर ही दम तोड़ दिया। बाकी सभी को भी गंभीर चोटें आई। करीब दस दिन तक वो लोग हॉस्पिटल रहे। तब तक उसके पापा की मृत देह को शव गृह में रखा गया। हॉस्पिटल से छुट्टी के बाद उनका अंतिम संस्कार कर सके थे। 

 

समय बीतने के साथ-साथ सभी थोड़ा-थोड़ा सा सम्भलना शुरू हो गए। उसके पापा की ग्रेच्युटी और प्रोविडेंट फण्ड से मिले पैसों से उसकी मम्मी ने एक बुटीक खोल ली। 


 

इस हादसे को 6 साल बीत गए। धीरे-धीरे सबकी ज़िन्दगी पटरी पर आ गई। श्रावणी के भाई-बहन उससे काफी छोटे थे। भाई दस साल छोटा था और बहन उससे भी दो साल छोटी। वो भी अब ग्रेजुएशन कर चुकी थी। उसकी मम्मी को अब श्रावणी की शादी की चिंता सताने लगी थी मगर उसने साफ-साफ बोल दिया कि अपने भाई-बहन को अपने पैरों पर खड़ा करने के बाद और उनकी शादी होने के बाद ही वो कुछ सोचेगी। 

 

समय अपनी रफ्तार से चल रहा था। अब श्रावणी भी अपनी मम्मी के साथ बुटीक में मदद करती। काम बहुत बढ़िया चल रहा था। समय आने पर उसके दोनों भाई-बहन की शादी भी हो गई। अब तक श्रावणी भी शादी की उम्र पार कर चुकी थी। उसके मन में अब कोई उमंग, कोई हसरत, कोई सपना बाकी न था। शादी के नाम पर होने वाली गुदगुदाहट अब उसको लुभाती न थी। फिर भी उसकी माँ चाहती थी कि अपने जीते जी वह श्रावणी की जिम्मेदारी भी पूरी कर जाए। उनकी बुटीक का शहर में अब जाना-माना नाम था। अच्छे-अच्छे रिश्ते अभी भी आते थे। सिर्फ अपनी माँ के लिए उसने एक रिश्ते को हाँ कर दी लेकिन शादी के सभी रीति-रिवाजों से उसने मना कर दिया। बहुत ही सीधी-सादी शादी करने के लिए उसने अपने माँ को मना लिया और लड़के वाले भी राजी हो गए। 

 

बहुत ही अमीर खानदान में उसकी शादी हो रही थी लेकिन वह खुद हैरान थी कि शादी के समय एक लड़की को जितना खुश होना चाहिए, सभी तरह के रीति-रिवाजों को पूरा करने का जिस तरह से उत्साह होना चाहिए वैसा उसके मन में नहीं हो रहा था। जब से उसके पापा उसको छोड़ कर गए थे तब से वह अपने अंदर से टूट चुकी थी और अपनी माँ के साथ-साथ अपने परिवार की जिम्मेदारियों को पूरा करते-करते वह अपनी उमंगें, अपने सपने, सब भूल चुकी थी। 

 

आज उसे महसूस हो रहा था कि जैसे उसके पापा के जाने के साथ ही उसके सपनों ने, उसकी आकांक्षाओं ने, उसकी अपेक्षाओं ने, उमंगों ने आत्मघात कर लिया था। 

 

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