अस्तित्व – ऋतु दादू : Moral Stories in Hindi

शिवानी और गरिमा दोनो बचपन की पक्की सहेलियां है,किस्मत से उनका विवाह भी एक माह के अंदर  ही एक ही परिवार में हो गया।दोनो सहेलियां रिश्ते में देवरानी जेठानी बन गई।उनके पति चचेरे भाई हैं और दोनो का घर भी पास पास ही है। शिवानी भी अपने घर की बड़ी बहु बनी और उसके एक देवर है और गरिमा भी बड़ी बहु है और उसके भी एक देवर है। दोनो सहेलियां बहुत खुश है कि अब हमेशा साथ साथ रहेंगी। शिवानी बहुत सुगढ़ और आदर्श बहु बनने के सपने देखती थी।विवाह के  बाद जब सासू मां ने कहा कि बहु तो साड़ी में ही अच्छी लगती है

तो उसने बिना प्रतिवाद किए साड़ी पहनना शुरू कर दिया जबकि गरिमा ने सम्मानपूर्वक मना कर दिया,उसने कहा मैं दिन भर साड़ी पहन कर नहीं रह सकती,कोई आयोजन या त्यौहार होगा तो मै अवश्य साड़ी पहनूंगी।गरिमा अधिकतर सलवार सूट पहनती थी।गरिमा की सासू मां अपनी जेठानी  यानि शिवानी की सासू मां से अक्सर गरिमा की बुराई करती तो शिवानी की सास गर्व से शिवानी की ओर देखती कि  देखो मेरी बहु मेरा कितना कहा मानती है और शिवानी के कांधे पर एक अदृश्य मैडल लग जाता और वह खुशी से झूम उठती।

शिवानी रोज़ सुबह सबसे जल्दी उठ जाती,घर की सफाई करती, ताज़ा पानी भरती फिर सबके लिए चाय बनाती,तब तक सारे घर वाले उठ जाते और शिवानी की तारीफ करते , उधर गरिमा सुबह उठकर सैर करने जाती फिर आकर अपने लिए नीबू पानी बनाती ,उसके समझाने से उसका पति और देवर भी उसके साथ निबू पानी पीने लगे  तो अपने लिए चाय सासूमां को बनानी पड़ती।इन सब छोटी छोटी बातो को लेकर वह अक्सर शिवानी की सास से गरिमा की बुराई करती और शिवानी के कांधे पर अदृश्य मैडल की गिनती बढ़ती जाती।

दोनो की वार्षिक परीक्षाएं बाकी थी,दोनो की सास को बहुओं के काम की आदत पड़ चुकी थी।शिवानी की सासूमां ने एक बार कहा कि घर गृहस्थी ही तो संभालनी है,क्या करोगी परीक्षा देकर तो वह उनकी बात एकदम मान गई और परीक्षा देने का इरादा छोड़ दिया उधर जब गरिमा की सास ने उससे कहा, देखो शिवानी भी परीक्षा नहीं दे रही तुम भी मत जाओ तो उसने कहा कि मैं तो डिग्री अवश्य लूंगी , मैं परीक्षा देने जरूर जाऊंगी। 

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शिवानी अपनें घर वालों को खुश करने के लिए रोज़ नए नए व्यंजन बनाकर खिलाती और स्वयं भी खाती जिसका असर सबकी सेहत पर भी पड़ रहा था। गरिमा ने अपने आप को चुस्त दुरुस्त कर रखा था ,दोनो को देखकर कोई कह ही नहीं सकता था कि ये दोनो एक सी उम्र की हैं,शिवानी अपनी उम्र से कहीं अधिक बड़ी दिखने लगी थी। गरिमा ने कई बार शिवानी को समझाना चाहा पर उस पर तो तो अच्छी बहु और अच्छी भाभी बनने का भूत सवार था।

वक्त अपनी रफ्तार से बीत रहा था,दोनो के देवरों का रिश्ता भी तय हो गया। गरिमा की देवरानी जब ससुराल आई तो उसे वैसा ही वातावरण मिला जिसकी कामना हर लड़की करती है, आधुनिकता एवम् खुलापन। शिवानी की देवरानी  नौकरी करती थी,उसने देखा शिवानी दिनभर साड़ी पहनकर रहती है तो उसने बोल दिया कि वह इस तरह साड़ी पहनकर नहीं रह सकती,इस पर उसकी सासूमां ने कहा कि कोई बात नहीं जो तुम्हारी इच्छा हो वो पहन लेना, हमने तो शिवानी पर भी कभी ज़ोर नहीं डाला साड़ी पहनने के लिए,उसे ही साड़ी पहनना पसंद है,ये सुन शिवानी उनका मुंह देखती रह गई।

कुछ दिन बाद जब देवरानी सुबह जल्दी नहीं उठती तो सास कहती कि कोई बात नहीं अभी बच्ची है,जल्दी नहीं उठा जाता होगा,तुम ही कर लिया करो सुबह के काम , तुम्हे तो आदत है ,ये सब करने की।

सास ससुर मिलने जुलने वालो से छोटी बहु की अच्छी नौकरी की खूब तारीफ़ करते और साथ में ये भी कह देते कि  हमारी बड़ी बहु का तो पढ़ने में मन ही नहीं था, इसीलिए परीक्षा भी देने नहीं गई नहीं तो आज यह भी अपनी सहेली  गरिमा की तरह शिक्षिका होती।इस तरह की बाते सुन सुनकर शिवानी का मन चित्कार उठता,

उसके सारे मेडल्स तो कब के इधर उधर गिर चुके थे।  सबको लगता कि वह अपनी देवरानी को स्वीकार नहीं कर पा रही है,जब देखो उससे अपनी तुलना करती रहती है,सासू मां कहती कि तुम्हारा ज़माना और था अब जमाना बदल रहा है। इन सब बातो की वजह से शिवानी अवसाद में घिरी रहने लगी।

अपनी प्यारी सहेली की ऐसी हालत देख गरिमा को बहुत दुख होता था। एक दिन जब शिवानी उसके सामने बैठकर बहुत रोई तो गरिमा ने उसे प्यार से समझाया,देख शिवानी पुरानी बातो को भूलने में ही भलाई है,जितना पीछे देखेगी उतना ही तुझे दुख पहुंचेगा। अब  भी देर नहीं हुई है, मै ये नहीं कह रही हूं कि बेशर्म बनो पर उतना करो जितना तुम कर सको। सुबह उठकर अपने और अपने बच्चो लिए वक्त निकालो, घर के कार्यों के लिए और लोग हैं,जब तुम नहीं करोगी  तो और लोग अपने आप करेगें। तुम बुरी बन जाओगी ये चिन्ता मत करो

क्योंकि अच्छी तो तुम आज भी नहीं हो। परीक्षा न देकर तुमने बहुत बड़ी गलती की पर कोई बात नहीं,तुम नौकरी नहीं कर सकती पर अपने शौक के लिए तो वक्त निकाल सकती हो। तुम्हारी भाषा पर अच्छी पकड़ है तुम लिखना शुरू करो,कितनी अच्छी कविताएं लिखती थी तुम।

आज शिवानी को एहसास हो रहा था कि शुरू से ही अपना अस्तित्व सम्भाल कर चलती तो आज ये नौबत न आती।सही बात को सही और गलत बात का विद्रोह करने में ही भलाई है।

ऋतु दादू 

इंदौर मध्यप्रदेश

#खुशियों का दीप

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