आदित्य अजीत मेहरा का इकलौता बेटा था। इंजीनियर की डिग्री प्राप्त करने के बाद वह नौकरी की तलाश में
था । उसने सोचा था कि वह जल्द ही एक अच्छे पद पर आसीन होगा परंतु वक्त सरपट घोड़े समान भागता
चला जा रहा था और नौकरी न मिलने की हताशा आदित्य के भीतर एक गहरी काली उदासी के तरह अपनी
जड़े जमाती जा रही थी। अवसाद के इस दौर में अजीत तब ऊंचाई से नीचे गिरे जब नौकरी के लिए आदित्य
ने उनसे एक खास रकम मांग रखी जिसे रिश्वत के रूप में आगे देकर वह अपने नाम के आगे अपनी डिग्री में
दर्ज शिक्षा का उपयोग कर सकता था।
ज़िंदगी भर दूसरों को ईमानदारी का सबक देने वाले के अपने घर उनका अपना सपूत घूसखोरी की सहायता से
नौकरी प्राप्त करना चाहता था, ये बात ही अजीत को एक गाली समान लगी थी। उनकी तमाम दलीलें
आदित्य के तथाकथित मॉडर्न सोसाइटी के तरीकों के आगे फेल हो गई थी।
“आप के असूल,आपके आदर्श ना मुझे जीने देंगे और ना ही आपकी ईमानदारी की शिक्षा मुझे दो वक्त की
रोटी खिला पाएगी पापा”
“गलत,केवल दो वक्त की रोटी नहीं, तुम्हारी चाहत इससे कहीं ज्यादा है। रुपयों के सीमेंट से बनी जिन पतन
की इमारतों के जंगलों में तुमको गुम हो जाना चाहते हो वहां अंधेरे के अलावा कुछ नहीं है मेरे बच्चे,आज तुम
रिश्वत देना चाहते हो, कल तुम रिश्वत लोगे। तुम्हारी औलाद भी कल को इस रास्ते पर चल पड़ी तो क्या
करोगे..! तबाही के इस रास्ते पर जाने वाला यह एकतरफा रास्ता है आदित्य जहां से वापसी की कोई राह नहीं
है”
“ओह, पापा प्लीज.. तो क्या आपने सिर्फ धूल में दब जाने के लिए डिग्री दिलवाई है मुझे। यह आज का दौर
है यहां कुछ पाने के लिए शुरुआत पहली नहीं बल्कि आखिरी सीढ़ी से करनी पड़ती है। आप अपना फैसला
सुनाइए..!..क्या रिटायरमेंट की रकम ताले में बंद करके उसकी चाबी अपने पास रखना चाहते हैं या उसी चाबी
से मेरे लिए एक नई जिंदगी के दरवाजे खोलना चाहते हैं..!..अगर आज मम्मी होती तो एक पल नहीं लगाती
वह मेरा साथ देने में..!”
“चुप कर बेशर्म, गायत्री तेरी मां,जिसने तेरी परवरिश के लिए चाहे अपने तन से गहने उतार दिए पर कभी मेरे
माथे से ईमानदारी का तिलक नहीं हटने दिया और तू कह रहा है कि आज वह होंती तो तेरे इस कुकर्म में
तेरा साथ देती..! जा चला जा अभी मेरी नजरों के सामने से,जितने पैसे चाहिए बता देना, कुछ दिनों में
इंतजाम हो जाएगा” अजीत गुस्से से कांप उठे थे।
नौकरी लगने के बाद सात आठ महीने बाद ही आदित्य ने नेहा नाम की लड़की से कोर्ट मैरिज कर ली, ये
देख सुन कर अजीत का रोम रोम दुःखी हो उठा, अपने इकलौते बेटे की शादी का कितना चाव था उन्हें पर ये
इच्छा भी उनकी पूरी नहीं हुई ।
कुछ ही महीनों में गौतम का घर सभी नए नकोर आधुनिक उपकरणों से लैस हो गया था। नेहा भी नौकरी
करती थी। उसको भी नई गृहस्थी बसाने का चाव होगा,यही सोचकर अजीत इस बारे में कुछ ना पूछते ना
कहते।
एक दिन अजीत घर पर अकेले थे की घर के दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजा खोल कर देखा की चौखट पर दो
अनजान आदमी खड़े थे। उन्होंने आदित्य के लिए पूछा तो उन्होंने उन्हें अंदर आने के लिए कहा पर उन लोगों
ने इंकार कर दिया और एक ब्रीफकेस गौतम को सौंप कर कहा कि इसमें उनके प्रोजेक्ट से संबंधित कुछ
कागजात हैं जो आदित्य ने घर पर देने के लिए कहा था। अजीत ने ब्रीफकेस लेकर आदित्य के कमरे में रख
दिया। शाम को आदित्य के घर लौटने पर उन्होंने ब्रीफकेस के बारे में उसे बताया।
“क्या…मैंने कहा था कि घर पर दे जाना पर मैंने तो उन्हें होटल में…!” बात अधूरी छोड़ कर आदित्य अपने
कमरे की तरफ भागा। जैसे ही उसने ब्रीफकेस खोला उसमें नोटों की गड्डियां चमक रही थी। तभी घंटी बजी
तो वह चौंका और जल्दी से दरवाजे पर पहुंचा।
आने वाले चार लोगों में से दो व्यक्तियों को देखकर गौतम बोले कि “आप लोग तो सवेरे भी आए थे..”
“हम इनकमटैक्स डिपार्टमेंट से आए हैं” मुख्य अधिकारी ने अपना कार्ड दिखाते हुए कहा। सभी घर के अंदर
आ चुके थे। दो अधिकारी घर की तलाशी लेने लगे।
दो अधिकारियों ने आदित्य को जकड़ लिया था,”मिस्टर आदित्य, आपको रमेशचंद से रिश्वत मांगने के आरोप
में गिरफ्तार किया जाता है”
“मैंने रमेशचंद से कोई रिश्वत नहीं ली है”घबराहट की वजह से आदित्य के मुंह से ठीक से बोल भी नहीं फूट
पा रहे थे।
तब तक एक अधिकारी ने आदित्य के कमरे से वो ब्रीफकेस लाकर उसके आगे कर दिया।
“इन नोटों पर हमारे डिपार्टमेंट की मोहर लगी हुई है आदित्य राणा,यह देखो,” अधिकारी ने एक नोट की गड्डी
आदित्य की आंखों के आगे से घुमा दी। बहुत दिनों से हम तुम्हें पकड़ने की योजना बना रहे थे। तुम्हारे
ऑफिस में भेजा गया रमेशचंद नाम का आदमी हमारी ही टीम का मेंबर था पर तुमने उससे ऑफिस में कुछ
लेने से इनकार करके होटल में बुलाया था पर तुम समय पर होटल नहीं पहुंचे नहीं तो यह ब्रीफकेस तुम्हारे
घर पहुंचाया गया”
“ मिस्टर आदित्य, रिश्वत लेने के आरोप में तुम्हें गिरफ्तार किया जाता है।“
आदित्य की आंखों से आंसू बरस रहे थे और अजीत तो टूटे वृक्ष की भांति सोफे पर गिर पड़े,कुछ क्षणों बाद
लड़खड़ाते कदमों से वह आदित्य के सामने पहुंचे। आदित्य कि नज़रे झुकीं हुईं थी। अजीत ने एक ज़ोरदार
थप्पड़ उसके गाल पर रसीद किया।
“अब अपने बाप को बस एक यही आखरी तोहफा देना बाकी रह गया था क्या तेरे लिए..!.. खानदान की
इज्ज़त मिट्टी में मिला दी इसने,..इसे ले जाइए साहब, ले जाइए,अजीत के स्वर टूट चुके थे।
रिश्वत के आरोप में आदित्य को एक वर्ष की सजा हुई।
आदित्य के जेल जाते ही नेहा को भी ऑफिस से निकाल दिया गया था। बहुत मुश्किल से उसने दूसरी नौकरी
खोजी थी परंतु गर्भावस्था में तबीयत खराब होने की वजह से वह नौकरी ना कर पाने की स्थिति में थी
इसलिए नौकरी छोड़कर घर पर रहने लगी।
अजीत हर यथासंभव तरीके से उसका ध्यान रख रहे थे। सही वक्त पर उसने पुत्र को जन्म दिया। नवजात
शिशु को हाथों में लेते ही अजीत की आंखों के आगे आदित्य का चेहरा घूम गया।
जिस दिन आदित्य को वापस आना था उस दिन सुबह से ही नेहा उत्सुक और बेचैन थी पर अजीत के
भावहीन चेहरे को देखते हुए उनसे इस बारे में बात करने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। अजीत आदित्य
को दोपहर बाद अपने साथ घर लेकर आए। उसे देखते ही नेहा के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। आदित्य की
आंखें भी भरी हुई थी। नेहा की बाहों में अपने बच्चे को देखकर उससे रुका ना गया। नेहा ने शिशु को उसकी
तरफ बढ़ाया। आदित्य उसको गोद में लेकर बेतहाशा चूमने लगा।
अजीत चुपचाप अपने कमरे की ओर बढ़ चले। आदित्य ने शिशु को नेहा को सौंपते हुए अजीत को
पुकारा,उनके कदम रुक गए थे पर वे मुड़े नहीं।
आदित्य उनके समीप पहुंचकर बोला,”पापा आई एम सॉरी पापा,प्लीज मुझे माफ कर दीजिए, मैं भटक गया
था। बहुत बड़ी गलती हो गई थी मुझसे। आज के इस मॉडर्न और महत्वाकांक्षाओं से बुने मकड़जाल में फंस
गया था मैं। हर दूसरे व्यक्ति को कुचल कर आगे बढ़ने की अंधी दौड़ में आपकी दी गई अनमोल शिक्षाओं का
महत्व मैं समझ ना सका। भूल गया था कि आपने हर अनुभव अपनी जिंदगी के उतार-चढ़ाव से पाए हैं।
आपने मेरे लिए अपनी जिंदगी होम कर दी और मैं…कहते हुए आदित्य अजीत के गले लग कर फूट-फूट कर
रोने लगा। अजीत के हाथ आदित्य की पीठ सहलाने लगे।
“बस,तुम सही गलत की पहचान समझ गए, यह बड़ी बात है। अपने स्वार्थ, अपने सुख, अपनी झूठी शानो
शौकत के लिए हमें कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे हमारे पूर्वजों की, हमारे खानदान की
इज्ज़त से खिलवाड़ हो,असली दौलत तो इंसान की इज्ज़त ही है, समझ गए बेटा।
“जी,पापा…अब से मेहनत की कमाई ही लक्ष्य है जीवन का” पिता पुत्र दोनों की ही आंखे छलक उठीं। नेहा भी
नन्हें शिशु के साथ उनके करीब आ गई थी। आज सभी सही मायनों में दिल से शांति और सुकून का अनुभव
कर रहे थे।
लेखिका – भगवती
#खानदान की इज्ज़त