अशांति – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

अविनाश को जैसे ही पता चला कि….

बाऊजी की तबीयत बिगड़ रही  है….

वह बिना सोचे समझे ,,जल्दी ही दौड़ पड़ा उन्हें देखने….

अपने बड़े भाई साहब देवेंद्र के यहां ….

अंदर जाते ही जो नजारा देखा…

उसे देख वो बुत बन गया….

बेचारे बाऊजी ….

बाहर आंगन में खाट पर हाथ में बीजना (हाथों का पंखा ) लिए हवा कर रहे थे ….

मैली कुचैली धोती पहने हुए थे …

ऊपर भी जो बनियान डाल रखी थी…

उसमें भी न जाने कितने छेद हो गए थे ….

भाई साहब के घर का गेट खुला ही रहता था…

क्योंकि वहां पर बाऊजी जो थे …

घर की   रखवाली करने वाले….

थोड़ी देर के लिए अविनाश चुपचाप दरवाजे के कोने से खड़ा हो गया….

तभी उसने देखा कि…..

उसकी भाभी बाऊजी के लिए थाली में खाना लेकर आई ….

और  थाली जोर से खिस्काते हुए उनकी तरफ बढ़ा दी….

और नाक सिकोड़ते हुए जाने लगी …

तभी बाऊजी ने कहा….

बहू फिर आज सूखी सब्जी बना दी…

गले के नीचे कैसे उतरेगी….

दांत ना है एक भी….

तभी  तो पानी दिया है ना पापा जी साथ में….

उतर जाएगी….

सब्जी ना  अच्छी लगे तो पानी में डुबोकर खा लीजिए ….

बहुरानी बोली….

बाऊजी कुछ ना बोले ….

भाभी अन्दर चली गयीं ….

तभी अविनाश की नजर बाऊजी की खाट  के नीचे रखी छोटी बाल्टी पर गई ….

शायद उन्हें उठने बैठने में समस्या आती थी.. .

शायद तभी  पेशाब उसी में कर लेते थे….

इसी वजह से भाभी ने अपनी नाक पकड़ी  होगी….

अविनाश  तुरंत बाहर आया…..

और एक अमूल का पैकेट दही लेकर के आ गया….

उसने आकर के बाऊजी की थाली में रख दिया ….

बाऊजी किसी तरह रोटी को  मसल ही रहे थे….

तभी थाली में दही  देख उन्होंने अपनी नजर ऊपर की ओर करी….

अरे  लला  अविनाश ….

तू कैसे आ गया यहां ….??

बाऊजी तुमने तो बताई ना कि तुम्हारी तबीयत बहुत खराब है….

वह तो किशन चाचा ने फोन किया….

कि बाऊजी हांफ  रहे हैं….

उनकी सांस तेज चल रही है ….

क्या हुआ बाऊजी…

का तुम हमें अपना बच्चा नहीं समझते ….

अविनाश  बोला….

अरे  कोई बात नहीं है लला….

ठीक हूँ मैं ….

तभी देवेंद्र भाईसाहब भी आ गए …

अविनाश…

तू क्या कर रहा है यहां ….??

भाईसाहब पता चला कि बाऊजी की तबीयत ठीक नहीं है….

इसलिए उन्हें देखने चला आया….

तेरा बड़ा भाई है ना …

उन्हें देखने के लिए ….

क्यूँ अपना समय खराब कर रहा है….

जा अपना घर परिवार देख….

बाऊजी की ऐसी हालत है भाई साहब ….

देखिए कैसे आपने  आंगन में ऐसी गर्मी में  उन्हें छोड़ दिया है….

और यह कपड़े…

क्या कभी बाऊजी ने नौकरी करते समय इस तरह कपड़े पहने थे….??

बताईये भाई साहब….

कैसे ठाठ  से रहते थे बाऊजी…

अपनी मूंछों पर तांव देते हुए ….

अब ऐसा हाल ना देखा जाता….

भाई साहब सारी पेंशन आप ही तो रख रहे हैं बाऊजी की ….

तब भी यह हाल ….

और भाभी तो बोलकर गयीं कि पानी से रोटी खा लीजिए….

क्या यही दिन देखने के लिए बाऊजी और मां ने हमें पाल-पोश  कर इतना बड़ा किया…

कि आप आज इतने बड़े ओहदे  पर पहुंच गए…

और मैं भी अपना पालन पोषण कर रहा हूं….

आपने ही कहा था कि मैं बड़ा हूं ….

मैं लेकर के जाऊंगा बाऊजी को….

मुझे ना पता था कि आप पेंशन की लालच में उन्हें ले जा रहे हैं….

उनका यह हाल कर देंगे….

आज अविनाश पर ना रहा गया ….

और वो बोलता चला गया…

देवेंद्र  आपे से बाहर हो गया…..

उसने अविनाश के चेहरे पर जोर से थप्पड़ जड़ दिया …..

तभी अंदर से भाभीजी भी आ गयीं  ….

सही किया …

यह तो इसी के लायक है …

बड़े भाई साहब से जबान  लड़ा रहा है…..

अविनाश आंखों में आंसू भरें कुछ ना बोला ….

चलिए बाऊजी …

आप मेरे साथ चलिए…..

मुझे नहीं चाहिए आपकी पेंशन ….

आपकी सेवा करने के लिए उतना ही काफी है….

जितना आपने बचपन से अभी तक हमारे लिए किया ….

अविनाश बाऊजी के कुछ कपड़े थैले  में रखकर बाऊजी को अपने साथ लेकर के घर की ओर जाने लगा…..

बाऊजी देवेंद्र के घर पर टकटकी  की निगाह से देख रहे थे…..

और अविनाश जैसे बेटे की ओर फक्र कर रहे थे ….

कि चलो अंतिम समय तो कुछ सही से गुजर जाएगा…..

नहीं तो यही सोचा था….

कि इसी घर में इसी तरह से प्राण निकल जाएंगे….

ऊन्होने ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया…

ना ज़रूरत उसे पूजा और पाठ की

जिसने सेवा करी अपने माँ-बाप की

मुझे इस दुनिया में लाया

मुझे बोलना चलना सिखाया

ओ माता-पिता तुम्हे वन्दन

मैंने किस्मत से  तुम्हे पाया….

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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