अशांति की वजह कही मैं तो नहीं… – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ क्या हुआ महेश बाबू..आज फिर से आपका  घर जाने का मन नहीं कर रहा है ?” पार्क में महेश जी को बैठे देख कर उसी अपार्टमेंट में रहने वाले नवल जी ने पूछा 

“ क्या ही बताऊँ नवल बाबू… कितना लाचार हो गया हूँ हर दिन घर में अशांति फैली रहती है और इसकी वजह बनता हूँ मैं…..हम मर्दों की ज़िन्दगी भी पत्नियों के बिना कैसी हो जाती है ये उनके जाने के बाद समझ आता है.. जब तक वो संग रहती है हमारे हर प्रहार को खुद पर झेल कर मुस्कुराती रहती है उसके ना रहने से वो प्रहार हम पर लौट कर आ जाते हैं ।” महेश बाबू बोले

“ अरे भाई ऐसा क्या हो गया… बेटे ने कुछ कह दिया और बहू ने?” नवल जी वही पास आ कर बैठ गए साथ में उनका पोता भी स्ट्रॉलर पर था

“ नवल बाबू आप और भाभी जी भी अपना घर छोड़ कर यहाँ बेटा बहू के साथ रहते हैं कभी आपके घर में आप लोगों की वजह से अशांति नहीं होती ?” महेश बाबू ने पूछा 

ये सुनकर नवल बाबू हँसते हुए बोले,” महेश बाबू जब बच्चे अपने हिसाब से रहने लगते हैं तो उनकी दिनचर्या भी अलग तरीक़े से फिट हो जाती हैं ऐसे में जब हम आते हैं उन्हें सब अनफिट लगता है ऐसे में जब किसी एक पर और ज़्यादा ज़िम्मेदारी का बोझ आ जाता है तो स्वाभाविक है अशांति तो फैलेगी ही…

बस यही बात हमने यहाँ आने से पहले तय कर लिया था… मेरी जो दिनचर्या है उसे शीला (पत्नी)के कहने पर थोड़ा बदल लिया और जो भी ज़रूरत होती है मसलन चाय पानी वो मैं शीला से कह देता हूँ नहीं तो अगर दोनों व्यस्त हैं तो खुद कर लेता हूँ इतना भी शरीर को आरामतलब बना कर बीमार करने की कोशिश नहीं करता….

अब आप बताइए भाभी जी के जाने के बाद आपका घर में कितना सहयोग रहता है… जो काम बहू की मदद को भाभी जी कर देती होगी वो तो आप नहीं कर सकते पर जो करने लायक़ हो वो करते हैं… जैसे कभी बाज़ार से ज़रूरत का कुछ सामान लाना हो ले आए …आपके घर तो पोता पोती दोनों है पोती स्कूल जाने लगी है पोता दो बरस का है ऐसे में आप बहु की कितनी मदद कर पाते हैं?” नवल बाबू ने पूछा 

“ अरे नहीं नहीं नवल बाबू ये सब मेरे काम थोड़े ही है मैंने तो कभी ये सब किया ही नहीं… वो सब तो मेरी सावित्री सँभालती रही ।” महेश बाबू ने कहा 

“ यही वजह है महेश बाबू कि अब आपको घर में अशांति नजर आ रही है… चलिए ये तो नहीं कहूँगा जो भाभी जी किया करती थीं वो ही आपको करना चाहिए पर अभी तो आप सही सलामत हैं खुद से बहुत कुछ कर सकते हैं….बहू व्यस्त हो तो चाय बना लीजिए नहीं तो इंतज़ार कीजिए जब बहू बच्चों से फ्री होगी

तब बना देंगी नहीं तो उतनी देर बच्चों को आप देख लीजिए… बेटा काम पर चला जाता है तब पोती को स्कूल से लाने पहुँचाने का काम आप कर सकते हैं… उसके स्कूल के होमवर्क आप करवा सकते हैं… जैसे आप यहाँ टहलने और बैठने आते हैं बच्चों को भी ले आया कीजिए जैसे मैं लेकर आता हूँ उतने में बहू रात का खाना बना लेती और बाकी काम शीला के साथ मिलकर निपटा लेती है ।” नवल बाबू समझाते हुए बोले

महेश बाबू कुछ देर चुप रहे फिर बोले,” सही कह रहे है नवल बाबू… सावित्री उसकी मदद करती थी तो काम भी जल्दी हो जाता था और घर में शांति बनी रहती थी अब तो सुबह होती नहीं है कि बेटे को जल्दी जाना होता फिर वो चिकचिक करता बहू कहती रहती है दो ही हाथ है कैसे सब करूँ…

अब मैं भी जितना हो सकेगा मदद करूँगा… तब मेरे घर में भी शांति रहेगी।” कह कर दोनों उठ कर अपने अपने घर जाने को हुए तो देखा नवल बाबू की पत्नी आ रही थी… ,” अजी कितनी देर कर दिए मुन्ने को दूध देने का वक्त हो गया ।” 

महेश बाबू ये देख कर सोचने लगे,…बहू भी तो सब काम समय पर ही करना चाहती है पर कभी मैं कभी कुहू तो कभी कुश के साथ साथ अनिकेत के भी सारे काम अकेले ही तो करती है कैसे कोई चिढ़ चिढ़ नहीं करेगा।

दूसरे दिन महेश बाबू ने बहू नंदा से कहा,” बहू आज कुहू को स्कूल मैं छोड़ आऊँगा… अनिकेत को जाते जाते छोड़ने के लिए कहने की ज़रूरत नहीं है…और हाँ बहू जो काम मेरे से हो सकेगा वो कह देना… देख रहा हूँ सावित्री के जाने के बाद तुम्हारे उपर बहुत ज़िम्मेदारी आ गई है अकेले सँभालना मुश्किल हो रहा है…मैं थोड़ी मदद कर दूँगा तो तुम्हारे काम भी हल्के हो जाएँगे।” 

“ ये क्या कह रहे हैं पापा जी..आप ये सब काम कैसे करेंगे आज तक आपने कुछ किया भी नहीं है … रहने दीजिए नंदा कर लेगी ।” महेश बाबू की बात सुनकर अनिकेत ने कहा

“ यही तो गलती है बेटा… सावित्री ने ना कभी तुम्हें ना कभी मुझे कुछ करना सिखाया… और सब अकेले करती रही…पर सबसे सब काम हो ही ये ज़रूरी तो नहीं… मैं देख रहा था नवल बाबू अपने पोते को लेकर घुमने निकलते हैं…घर के ज़रूरी काम कर दिया करते और ख़ुश रहते हैं तो मैं भी कर सकता हूँ

बस तुम सुबह सुबह बहू पर चिल्लाया मत करो…घर में सुबह ही अशांति फैल जाती है तो पूरा दिन ख़राब जाता है अब से मैं भी थोड़ी मदद करूँगा तो मेरा भी समय कट जाएगा और तुम्हारी माँ को भी अच्छा लगेगा कि मैं उसकी बहू की मदद कर पा रहा हूँ।” महेश बाबू अनिकेत के कंधे पर हाथ रख थपथपाते हुए बोले

नंदा पति और बेटी का टिफ़िन पैक करते हुए मन ही मन ससुर जी को धन्यवाद कह रही थी…. चलो पति ने ना सही ससुर को तो समझ आ गया…आख़िर अकेले सबके काम वक्त पर करने के लिए दो हाथों से ज़्यादा हाथ की ज़रूरत होती है।

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#अशांति

VM

1 thought on “अशांति की वजह कही मैं तो नहीं… – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi”

  1. हर व्यक्ति को खुद करने लायक काम खुद कर लेना चाहिए। सभी मिल बांट कर काम करेंगे काम जल्दी होगा। सभी में अपनेपन का अहसास पैदा होगा। और घर मे हंसी खुशी का माहौल बना रहेगा…

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