हमारे पड़ोस में रहने वाली एक तलाक शुदा टीचर आशा मेडम का देहांत हो गया। 35 साल नोकरी करके के बाद सरकारी स्कूल से सीनियर टीचर के पद से सेवा निवृत्त होकर अकेली जीवन बिता रही थीं। उसके निधन के वक्त ओर बाद मे कोई भी रिस्तेदार नही पहुंचा। अंतेष्टि /किर्या करम के सारे कार्य पड़ोसियों ने किये। इस अकेलेपन का कारण भी वो खुद थी। उनके अकेले पन के पीछे की कहानी इस प्रकार हैं…..
मा बाप की इकलौती सन्तान, माता पिता दोनो टीचर थे, सो घर का माहौल किताबी था। उसने भी टीचर बनने का मन बना लिया। उसे पढ़ने का शौक् था और अच्छे नंबरों से पास होती थी। जितनी वो पढ़ने में तेज थी, उतनी ही दिखने में सुंदर भी थी। परंतु जबान ओर बोलचाल में बहुत ही तेज तरार थी।
बढे छोटे का कोई लिहाज नहीं। समय के साथ साथ उसकी खूबसूरती और जबान दोनों कहर ढाने लगे ओर पूरे शहर में मशहूर हो गई। उसके व्यवहार के चलते कॉलेज में उसका कोई फ्रेन्ड/ बॉय फ्रेन्ड भी नहीं था। माता पिता के लाख समझाने के बाद भी उसके स्वभाव में कोई अंतर नहीं आया। समय बीतता गया और उसकी साइंस में बी एड की डिग्री पूरी हो गई ओर एक प्राइवेट स्कूल में टीचर लग गई।
उसकी नोकरी लगते ही माँ बाप को उसकी शादी की चिंता सताने लगी। जबभी कोई रिश्ता आता, वो 50 कमियाँ बता कर मना कर देती। कभी सुन्दर नहीं है, कभी कमाता कम है, कभी पढा लिखा कम है, तो कभी हाइट कम है वगहर वगहर। धीरे धीरे रिश्ते आने कम होते गए और उमर बढ़ती चली गई। उम्र बढ़ने के साथ साथ उसकी भी शादी की इच्छा बढ़ती जा रही थी। इसी बीच एक दिन आशा के पिता को हार्ट अटैक आया और वो स्वर्ग सिधार गए।
फिर एक दिन आशा की मां ने आशा को अपने पास बिठाकर बोला, तेरे साथ वाली सभी लड़कियॉ एक एक, दो दो बच्चों की माँ बन गई हैं। 8-10 साल पहले जो तू चाहती थी, वो सब तो अब भूल जा। अब थोड़ा समझदारी से काम ले, जिंदगी में थोड़ा समझौता भी जरूरी है। अब मेरी भी तबीयत ठीक नहीं रहती,
इससे पहले की मेरी आँखे भी बंद हो जाये, तू अपनी आँखें खोल ले, अभी भी बहुत देर नहीं हुई हैं। आखिर कार वो शादी के लिए राज़ी हो गई और उसने अपने से कम कमाने वाले मामूली क्लर्क विजय से शादी के लिए हाँ कर दी। विजय दिखने में ठीक ठाक था, माँ बाप दोनों नहीं थे।
इस कहानी को भी पढ़ें:
लड़के ने शादी में शो बाजी पर ज्यादा खर्च नहीं किया । थोड़े दिन तक तो सब ठीक था, फिर वो अपने रंग दिखाने लगी। पति को बात बात पर टोकना, सीधे मुँह बात न करना, किसी के भी सामने बेज्जती कर देना, ये आम बात हो गई। वो विजय को पत्ति कम और नोकर ज़्यादा समझती थी
। विजय पलट कर कुछ न बोलता, क्योंकि उसे घर में शांति चाहिए थी। बक्त के साथ साथ आशा की मां की तबीयत भी बिगड़ती गई और एक दिन वो भी भगवान को प्यारी हो गई। माँ बाप के जाने के बाद आशा बिल्कुल अकेली हो गई। सभी रिश्तेदारो से सम्पर्क खत्म हो गया।
समय के साथ साथ पति पत्नी के रिश्तों में खटास बढ़ती चली गई ओर केवल नाम का रिश्ता रह गया। एक दिन ऑफिस से देर से आने पर विजय पर इतना ज़ोर से चिल्लाईं की उसके आत्म – सम्मान को बहुत चोट लगी और सब्र के सारे बांध टूट गए। विजय ने उस दिन एक बडा फैसला लिया
ओर दूसरे शहर मे दूसरी नोकरी ढूंढ ली। एक इतवार हो हर दिन की तरह सुबह की चाय बनाकर उसे उठाया और चाय पिलाई। चाय पीने के बाद अपना बैग उठाया और बोला मैं जा रहा हूं, अपना ख्याल रखना। आशा ने पूछा कहाँ जा रहे हो, कब तक लौटोगे? विजय ने उसकी बात को अनसुना कर बाहर निकल गया। अगले दिन डाक से तलाक के कागज भेज दिया। आशा ने भी अहंकार में आकर सिग्नेचर कर दिए। जल्दी ही दोनों का तलाक हो गया।
अब आशा पूरी तरह से अकेली हो गई, अब अपना कहने के लिये कोई नही था। अपने शहर से मोह भंग हो गया। फिर एक दिन उसने अख़बार में सरकारी स्कूल टीचर की नोकरी देखी ओर अप्लाई कर दिया। तलाक शुदा कोटे से सिलेक्शन हो गया और दूसरे शहर में पोस्टिंग हो गई। नए शहर मे आकर वो स्कूल ओर घर मे ही सीमित होकर रह गई। उसे अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा था और साथ साथ माँ बाप की बातें। पर अब तीर कमान से निकल चुका था।
हमारा दिल माने या न माने पर हमारा समाज आज भी पुरूष प्रधान है। पति का स्थान पत्नी से अगर ऊपर नहीं , तो नीचे तो बिलकुल नहीं है। परिवार में एक दूसरे को समझना और उनका सम्मान करना अति आवश्यक हैं। मेरा मानना है कि पति का सम्मान करना कोई गुलामी नही है। पति के बिना स्त्री का बजूद हमेशा सवालों के घेरे में रहता है।। अधिकांश कमाऊ बीबियों अपनी कमाई के गरूर मैं पति का मान सम्मान सब भूल जाती है ओर बाद में तन्हा जीवन बिताने को मजबूर हो जाती हैं ओर उनका अंत आशा मैडम की तरह ही होता है।
लेखक
एम पी सिंह
स्व रंचित, अप्रकाशित