‘असली चेहरा ‘ –  विभा गुप्ता

 मेरे ताऊजी की बेटी की शादी थी।वर पक्ष शहर का एक प्रतिष्ठित परिवार था।मेरे ताऊजी दहेज लेने और देने के विरोधी थें,इसलिए कई जगह दीदी का रिश्ता बनते-बनते रह जाता था।जब वर के पिता ने ताऊजी से कहा कि भगवान का दिया हमारे पास सब कुछ है, हमें तो बस आपकी बेटी ही चाहिए, और कुछ नहीं तो ताऊजी बड़े प्रसन्न हुए।फिर भी उन्होंने दीदी के लिए गहने-कपड़े और अपने दामाद को उपहार में देने के लिए सभी चीज़ों की व्यवस्था कर ली थी।

          ठीक समय पर बारात आई भी तो वे गिनती भर के थे।वर के पिता ने कहा कि ज़्यादा बाराती लाकर हम आपका आर्थिक बोझ बढ़ाना नहीं चाहते थें।उनके विचार सुनकर तो सभी लोग गद-गद हो गये।जयमाला के बाद फ़ेरे के लिए जब पंडितजी ने वर को बुलाया तो वर के पिता उसे रोक दिया और ताऊजी को एक ओर आने को कहा।

         मेहमानों के बीच वर के पिता का यह व्यवहार देखकर ताऊजी का मन आशंकित हो उठा।उन्होंने हाथ जोड़ते हुए पूछा कि क्या बात है? तब वर के पिता अपने होंठों पर कुटिल मुस्कान लाते हुए बोले, ” अब लेन-देन की बात कर लें?”

” लेन-देन? कैसा लेन-देन समधीजी,आपने तो कहा था कि हमें सिर्फ़ आपकी बेटी चाहिए, फिर ये सब क्या है?” ताऊजी ने आश्चर्य से उनसे पूछा।वे उसी तरह मुस्कुराते हुए बोले, ” आप इतना भी नहीं समझते,समाज के सामने आदर्शवादी बने रहने के लिए तो यह सब दिखावा करना ही पड़ता है।आपसे एक मर्सिडीज़ तो माँग रहें हैं, दे दीजिए और बेटी के फ़ेरे करवा लीजिए,वरना…।”

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” ठीक है,घर में(पत्नी से) करता हूँ।” कहकर ताऊजी कमरे में चले गये।उनके सामने वर के पिता का असली चेहरा सामने आ गया था।उन्होंने सोचा, अभी तो बाप का एक चेहरा सामने आया है,इन बाप-बेटों ने न जाने और कितने चेहरे छुपा रखे होंगे।इधर ताईजी अपने जेवरों की पोटली देते हुए बोली कि ले जाकर उनके मुँह पर मार दीजिये और बेटी के फ़ेरे करवा दीजिये।

      ताऊजी बोले, ” नहीं, महज़ प्रतिष्ठा के लिए मैं अपनी बेटी की बलि नहीं चढ़ाऊँगा।” कहकर वे बाहर गए और समधी साहब को बोले कि आप बारात वापस ले जाइये, बड़े नुकसान से छोटा नुकसान अच्छा है।सुनकर समधी महाशय तिलमिला गये और ‘देख लूँगा ‘ की धमकी देकर वापस चले गये।

        अगले दिन जब टेलीविजन पर पूरी घटना टेलीकास्ट हुई तो हम सब चकित रह गये।हुआ यह था कि भाई का एक पत्रकार मित्र भी शादी में आया हुआ था।न्यूज़ की तलाश में कैमरा और टेपरिकार्डर हमेशा उसके पास रहता था।ताऊजी और समधी जी पूरी बातें उसने रिकार्ड कर ली थी।इस तरह से समधीजी का असली चेहरा सबके सामने आया और उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा की भी धज्जियाँ उड़ गई थी।

        इस घटना के बाद तो दीदी के लिए कई रिश्ते आये लेकिन ताऊजी ने ज़ल्दबाजी नहीं की।मामला शांत होने के दो महीने बाद उनके मित्र ने ही आगे बढ़कर अपने बेटे के लिये दीदी का हाथ माँग लिया।

          आज सोचती हूँ तो ताऊजी की समझदारी पर गर्व होता है।सामाजिक प्रतिष्ठा के भय से उन्होंने असल चेहरे पर मुखौटा लगाकर रहने वालों के आगे घुटने नहीं टेके और उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।🙂   

                           — विभा गुप्ता

                              मौलिक

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