माँ! तुम्हीं ने तो कहा था कि लड़की की दो बार बिदाई होती है वो मायके से डोली से उतरती है ससुराल में फ़िर वहाँ से अर्थी में विदा होती है। लो देखो मैं कितनी जल्दी ससुराल से विदा हो रही हूँ। अर्थी अच्छे से सजाई है न इन लोगों ने? पापाजी को कहना देख लेंगे कहीं कुछ छूट तो नहीं रहा है। भैया से बोलना मेरे पसंद की सब चीज़ें रखवा देंगे साथ में। उन्हें भी संतोष होगा कि अब मैं किसी चीज़ में हिस्सा नहीं मागूंगी। इसी बात से डरते थे भैया ना?
कितना समझाया मैंने आपको। पापा के सामने कितना रोई, गिड़गिड़ाई। भैया के तो पैर भी पकड़ लिए थे। पर किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ा। मत भेजिए वापस मुझे इस घर कहे जाने वाले नर्क में। मैं जी नहीं पाऊँगी। शरीर पर पड़े नील, खरोचें, कुछ भी आपका दिल नहीं पिघला पाई माँ। जो चोट
बदन पर थी वो आपने देख कर अनदेखा कर दिया और जो मेरे मन के घाव थे वो तो आपने देखे ही नहीं। रक्त रंजित हृदय मेरा कहाँ नज़र आया किसी को। आपने वो सब फरमाइश पूरी कर दी जो मेरे पति नामक व्यापारी ने चाहा था। और मुझे भी वापस भेज दिया।
आप लोगों ने एक बार भी नहीं सोचा कि मेरी शादी के गुल्लक में जब तक रोज़ पैसे नहीं डालोगे यह भरेगा नहीं। और जब तक यह भरेगा नहीं ससुराल वालों को संतोष नहीं होगा। एक भरेगा वो दूसरा ले आएंगे। ऐसे ही तो ताने देते हैं सब यहाँ! तेरे घर वाले अगर सब पूरा नहीं करेंगे तो हम दूसरी शादी करवा देंगे बेटे की। तुझे घर बिठा देंगे। क्या कर लेगी तू। इनकी लालच की गुल्लक कभी नहीं भरने वाली माँ। दूसरी, तीसरी, चौथी की ख्वाहिश हैं इनकी।
तुम सबको लगता रहा कि नई उमर है दामाद की। अभी समझ कम है एक बच्चा होगा तो सुधार जाएगा। जिम्मेदारी आएगी तो स्वभाव बदल जाएगा। कभी सांप को बदलते देखा है क्या? कभी नमक को मीठा होते देखा है? कभी सूरज को रात में निकलते देखा है? कैसे इतना भरोसा कर लिया आप सब ने। अपनी जनी बेटी का दर्द नहीं पढ़ पाए आप और दो साल के जुड़े रिश्ते पर अंधविश्वास बन गया आपको।
रोज़ सोचती हूँ भाग जाऊं यहां से। कहीं भी जाकर रह लूंगी। भीख मांगकर जी लूंगी। बहुत बड़ा संसार है कहीं तो ठिकाना मिलेगा। कहीं तो दो रोटी मेरे नाम की लिखी होगी। नहीं आऊंगी लौटकर आपके घर। हां! आपका घर। आपने ही कहा था बिट्टू अब तेरा ससुराल ही तेरा घर है। उन्होंने भी
कह दिया कैसा घर? जब तक हमारी मांगी चीजें नहीं लेकर आती तेरा घर कैसे? ये तेरे ससुर का घर है। जब तेरा पति खरीदेगा तेरे लिए तब कहना अपना घर। और पति कहता, अपने बाप को बोल एक फ्लैट लेकर दें। आप लोगों ने कितना तो दिया था फ़िर भी इनकी भूख है कि मिटती नहीं है। थोड़े थोड़े दिन में नई फरमाइश।
कितना बेशर्म है आपका दामाद। दीवाली पर जानबूझकर पुराने मोबाइल में सिम डालकर ले गया , पापा ने देखकर पूछा तो हंसते हुए बोला मैं तो सोच रहा था आप देंगे दिवाली पर लेटेस्ट वाला आई फ़ोन। पापा ने दूसरे ही दिन यहां लाकर छोड़ा नया फ़ोन। पच्चीस सालों में मेरी इतनी फरमाइश पूरी नहीं की होगी आप लोगो ने जितनी दो सालों में अपने राक्षस जैसे दामाद की पूरी की है।
मैं आश्चर्यचकित रह जाती हर बार। क्या केवल इसलिए आप लोगों ने इस जानवर को सर पर चढ़ाया हुआ है कि इसने आपकी साधारण पढ़ी लिखी, दिखने में सामान्य, ठिगनी बेटी से शादी की है। बड़ा सरकारी अफ़सर है। इसके पिता रिटायर्ड आईएएस हैं।
पापा! आपने ही तो कभी आगे नहीं बढ़ने दिया मुझे। हमारे परिवार की लड़कियां बाहर नहीं जाती पढ़ने को। नौकरी कराना है क्या पढ़ाकर? घर के काम सीखो वही ससुराल में इज्जत दिलाते हैं। आपने कब मुझे अपने मन का करने दिया। आपने जैसा चाहा वैसा जिया मैंने पापा। मुझे मालूम है आपको थोड़े दिन अफ़सोस होगा, फ़िर आप अपनी जिंदगी में मगन हो जाएंगे। तीन बेटे हैं आपके। आपके लिए वही सब कुछ हैं। मैं तो पुरौनी में आई थी आपके घर।
आपकी बात का मान रख रही हूँ माँ। डोली में आई थी अर्थी में विदा हो रही हूँ। मैंने अपनी जान ली या इन लोगों ने, क्या फ़र्क पड़ता है। मुझे पता है मेरे जाने के बाद थोड़े दिन अफ़सोस करेंगे आप सब।
पुलिस केस बनाएगी, ससुराल वालों को पकड़ेगी, मेरे ससुर की पहुंच और पैसे के बल पर ये सब छूट भी जाएंगे। मत करना केस, मत लड़ना मेरे लिए आप लोग। जीते जी आप नहीं लड़ पाए मेरे लिए तो मरने के बाद क्या फायदा लड़ कर। इसे मेरी आखिरी इक्छा समझ लो। ईश्वर अगर कहीं है तो वो कभी न कभी करेगा अपनी अदालत में इंसाफ़।
अलविदा
आपकी अभागी बेटी
#साजिश
©संजय मृदुल