अर्थ  : Moral Stories in Hindi

अनिल,पापा को इस महीने कुछ पैसे की ज़रूरत है तो अनिल अगर इस महिने कार की ई एम आई तुम भर देते तो अच्छा होता..” सुधा ने सहज स्वर में अनिल से कहा।

मैं कैसे भर दूं, मुझे घर पर पैसा नहीं देना क्या..!” अनिल बेशर्मी से बोला।

कैसी बातें कर रहे हो,तुम हर महिने अपने घर पैसे दे सकते हो और मैं एक महीना अपनी सैलरी अपने पापा को नहीं दे सकती..?” सुधा आहत सी होती हुई बोली।

देखो सुधा, ये बात पहले ही हो गई थी कि कार की ई एम आई तुम ही भरोगी और घर के किराए में हिस्सा देता हूं ना”

अरे, तो कोई एहसान करते हो क्या, घर का किराया तो देना ही होगा ना, बल्कि हिस्सा क्या तुम्हें पूरा किराया देना चाहिए”

ऐसा है सुधा, पहले तो तुमने शादी की जल्दी मचाई और अब जब शादी कर ली है तो तुमसे निभाई नहीं जा रही है ..!”

तुम भी जानते हो कि हमने जल्दी शादी का फ़ैसला क्यूं लिया, उसके लिए क्या मैं ही अकेली ज़िम्मेदार हूं क्या..?” सुधा की आँखें भर आईं।

तो इमरजेंसी पिल नहीं खा सकती थीं क्या..?” अनिल क्रोधित सा बोला।

क्या तुम नहीं जानते कि पिल ने काम नहीं किया और अनिल मेरी उमर भी तो देखो, अगर किसी वजह से एबॉर्शन नहीं हुआ तो हमें बच्चा पैदा करने में प्रॉब्लम क्या है, क्या कैरियर, तरक्की, सारी सुख सुविधाएं जुटाने में तुमने कभी अपनी और मेरी वक्त के साथ गुजरती उम्र पर ध्यान दिया है.. उससे ज्यादा उम्र में बच्चा पैदा करने का प्लान करेंगें तो हम दोनों को ही कई तरह की मुश्किलों से गुजरना होगा ?”

इन बांतों में कुछ नहीं रखा है, सीधी सी बात है अपनी सैलरी अपने घर देनी है तो अपने घर जाकर ही रहो”

क्या शादी के बाद मेरे मम्मी पापा का मुझ पर कोई हक नहीं रहा, क्या इसलिए उन्होंने मुझे इतनी तकलीफों से पढ़ा लिखा अपने पैरों पर खड़ा किया है कि शादी के बाद मैं उन्हें भूल जाऊं..?”

जो सोचना है सोचो, मुझे जो कहना था मैंने कह दिया” इतना कहकर अनिल ऑफिस जाने के लिए सीढ़ियां उतर गया।

सुधा ने आज ऑफिस से छुट्टी ली और अपने घर जाने के लिए कैब बुलाई।

कैब बुक करते वक्त एक व्यंगातमक मुस्कान उसके चेहरे पर आ गई।

कार का पूरा इस्तेमाल करे अनिल और हर महीने ई एम आई भरूं मैं, पिछली बार मेरी बुआ की बेटी आई थी तो कैसे मंहगे पेट्रोल का वास्ता देकर उसे कार में शहर घुमाने से मना कर दिया था और अपनी बहन और उसके मंगेतर को घुमाने में तो कार जैसे पानी से चलने लगती है।”

इन्हीं सोचों में गुम सुधा की कैब उसके घर के आगे रूकी ।आठवें माह चल रहा था उसका। सुबह की बहस से काफ़ी तनाव में थी वो। चाह कर भी हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी कैब से उतर कर एक कदम भी चलने की तभी ऐसा लगा जैसे पूरा दुनिया घूम रही हो, वो कैब में ही बेहोश हो गई।

होश में आई तो देखा समझा कि बच्चे का जनम हो चुका है। उसकी मम्मी उसके पास ही थीं। उन्होंने मुस्कुराते हुए उसके सर पर हाथ फेरा और उसे प्यारी सी बिटिया होने की बधाई दी । आंतरिक खुशी से उसकी रूलाई फूट पड़ी। 

आठमासी है ना इसलिए डॉक्टरों की देखरेख में है पर घभराना बिल्कुल नहीं, बच्ची ठीक है” मम्मी उसे पूर्ण दिलासा दें रहीं थीं।

कई घंटे गुजरने के बाद भी जब अनिल नहीं आया तो सुधा ने मम्मी से उसके बारे में पूछा।

मम्मी हिचकिचा सी गईं।

मम्मी क्या बात है, साफ साफ बताइए ना” सुधा किन्हीं अनदेखे अंदेशों की आशंका महसूस करके बोली।

मम्मी ने बहुत हिम्मत करके उसे पूरी बात बताई।

उसे कैब में बेहोश देख ड्राइवर ने तुरंत उसके घर पर बताया और उसी कैब में सुधा के मम्मी पापा उसे हॉस्पिटल लेकर पहुंचे। सुधा की मम्मी ने अनिल को फोन करके सीधा हॉस्पिटल आने को कहा।

सुधा का ब्लड प्रेशर काफी लो हो गया था। डॉक्टर के अथक प्रयास से बहुत मुश्किल से बच्ची का जन्म हुआ।

अनिल भी अपनी मम्मी के साथ पहुंच चुका था। जब अनिल की मम्मी को बेटी होने की बधाई दी तो उन्होंने वहीं जेसे सारा जहर उगल दिया,“ लड़की की क्या बधाई दें रहीं हैं आप समधन जी, एक तो आपकी उम्रदराज बेटी को अपनी बहू बनाया जबकि ना कोई खास शक्ल है उसकी, अनिल के लिए तो कितनी जवान और सुन्दर लड़कियों के रिश्ते आ रहे थे”

ये इतनी खुशी के मौके पर आप कैसी बातें कर रहीं हैं और अनिल और सुधा की उम्र तो एक दूजे के लिए सही है”

अरे, मर्द की उम्र नहीं देखी जाती, वो तो हमेशा जवान ही रहता है, किसी भी उमर में बच्चा कर सकता है “ अनिल की मम्मी ने बेवकूफी भरे घमंड में ये बात कही।

एक औरत होने के बावजूद आपकी कैसी सोच है बहन जी, आज हमारे बच्चों के जीवन में एक नया रिश्ता जुड़ा है, आपको तो खुश होना चाहिए, आइए अपनी बहू से, अपनी पोती से मिलिए”

हूं मिलना तो दूर मैं तो सुधा की बेटी की शक्ल भी नहीं देखना चाहती, सुनिए समधन जी, सुधा अब यहां से अनिल के घर नहीं जाएगी, अपनी बेटी और उसकी बेटी को आप अपने ही घर ले जाती”

अनिल बेटा,तुम चुपचाप सुन रहे हो, ये तुम्हारी पत्नि और बेटी के बारे में कहा जा रहा है और तुम ख़ामोश हो” सुधा की मां ने हैरानी से अनिल को देखा।

अनिल तो इधर उधर देखने लगा जैसे अपनी मम्मी की हर बात से सहमत हो।

सुधा चुपचाप सब सुनती रही।

मम्मी उसके पास आईं और बोलीं,” बेटी, तू अनिल से बात कर, अभी हो सकता है मां के दवाब में चुप हो”

ये क्या सीख दे रही हो अरुणा अपनी बेटी कोये बलदेव थे, सुधा के पापा।

जो इन्सान इतना गिरी हुई हरकत कर सकता है कि अपनी नवजात बच्ची का चेहरा देखे बिना वापिस लौट गया हो, क्या वो किसी के समझाने से समझेगा..!..”

किसी नहीं उसकी पत्नि है सुधा”

तो क्या वो इसे पत्नि का दर्जा दे रहा है..?”

वैवाहिक जीवन में ये सब चलता रहता है”

जिन्हें अपनी बेटीयों को ऐसे बददिमाग,जाहिल, और स्वार्थी पति के साथ जीवन गुजारने को मजबूर करना है,ऐसे अभिभावकों के साथ मेरी पूरी हमदर्दी है, पर मेरी बेटी ऐसा जीवन नहीं जिएगी।”

वो सक्षम है, काबिल है,जीवन खुल कर जिएगी, घुट कर नहीं, हमारी बेटी के साथ हमेशा हमारा आशीर्वाद रहेगा और आशीर्वाद केवल औपचारिकता के चलते नहीं दिए जाते, आशीर्वाद का असली अर्थ उसके शब्दों में छुपी ताकत होती है जो हर परिस्थिति में बच्चों को अपना जीवन सुचारू रूप से संयम और समझदारी से चलाने की हिम्मत देती है।” 

इसके बाद जब सुधा की बांहों में उसकी नन्हीं परी आई तो खुद ब खुद उसके मुंह से निकल पड़ा,“ मेरी बच्ची, हमेशा खुश रहना ,सही राह पर चलना और हिम्मत सेकाम लेना, तुम्हारी मां हमेशा तुम्हारे साथ है।” इतना कहकर सुधा ने उसके माथे पर एक चुंबन अंकित कर दिया।

 

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