अर्पिता का अर्पण – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

 देखो बेटा जिससे तुम शादी करना चाहते हो वह न तो हमारी बिरादरी की है,न हमारे प्रदेश की।और तो और उसकी भाषा भी हमारी हिंदी नही है।रीति रिवाज सब अलग।कैसे परिवार में एडजस्ट हो पायेगी, अरे परिवार की भी छोड़ तेरे साथ ही कैसे निभेगी?

       ऐसा कुछ भी नही माँ, एक बार अर्पिता से मिल लो।वह किसी को भी निराश नही करेगी।मां प्लीज।

      निशांत का जन्म ही एक अच्छे सम्पन्न परिवार जिसमे सर्राफे का व्यापार होता था,कई कोल्ड स्टोरेज थे,में हुआ था।पर पता नही निशांत को अपने विद्यार्थी जीवन से ही एक जुनून था,खुद कुछ बनने का।उसके पिता,बड़े भाई, मां सबने समझाया कि इतना बड़ा कारोबार है,

दोनो भाई मिलकर संभालो।जब दूसरो को नौकरी देने में समर्थ हो तो खुद नौकरी करने का क्या औचित्य?पर निशांत बोला पापा एक बार जिंदगी से खुद झूझने तो दो,असफल रहा तो अपने आप वापस आ ही जाऊंगा।सबको निरुत्तर कर देता निशांत।

       निशांत का एक मित्र था संजय,बचपन का दोस्त।संजय के पिता भी नगर के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे।लेकिन फैक्टरी में भारी लॉस के कारण उनकी आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब हो गयी थी।संजय के पिता के सामने उसकी फीस चुकाने तक का संकट खड़ा हो गया था।

ऐसे में निशांत ने अपने मित्र संजय और उसके पिता द्वारा संघर्ष करते नजदीक से देखा था। कैसे संजय ने कभी उसकी सहायता स्वीकार नही की थी,बल्कि ट्यूशन पढ़ाकर अपना खर्च पूरा करना,तो संजय के पिता का नये

सिरे से सम्मान जनक रूप में उठ खड़ा होना,निशांत के दिल मे कही घर कर गया था।निशांत ने अपने मित्र संजय के जीवन संघर्ष से अप्रत्यक्ष प्रेरणा ले कर निश्चय कर लिया था कि वह सेल्फ मेड बनेगा।

      यह भी अजीब संयोग रहा जो संजय खुद ट्यूशन पढ़ा पढ़ा कर किसी प्रकार ग्रेजुएशन कर पाया था,उसका एक अच्छी कंपनी में अच्छा जॉब लग गया,और उसने ही निशांत का जॉब भी उसी कंपनी में लगवा दिया। कुछ ही वर्ष में निशांत का वेतन भी खूब हो गया

और उसकी पोस्टिंग अहमदाबाद में हो गयी।यही निशांत का प्रेम एक सामान्य से गुजराती परिवार की अर्पिता से हो गया।अर्पिता उसी की कंपनी में ही जॉब करती थी।निशांत अर्पिता से ही अपनी शादी के लिये अपने पापा और मम्मी से बात कर रहा था।जब ये लगा कि

निशांत नही मानेगा तो उसके माता पिता अर्पिता के माता पिता से मिलने अहमदाबाद गये।वहां जाकर उन्हें अर्पिता भा गयी और साथ ही उन्हें अर्पिता के माता पिता को भी सीधा सादा पाया।शुभ मुहर्त में निशांत और अर्पिता की शादी कर दी गयी।

    सब कुछ सामान्य चल रहा था।निशांत को कभी कभी बहुत भयंकर रूप से सिर में दर्द होता,डॉक्टर दवाई दे देता दर्द ठीक हो जाता,पर कभी भी फिर हो जाता।समझ नही आ रहा था क्या किया जाये।निशांत का मुंबई ट्रांसफर हो गया,उन्होंने मुम्बई ही शिफ्ट कर लिया।

इस बीच निशांत  और अर्पिता के बीच एक प्यारी सी गुड़िया भी आ गयी।कुछ समय मातृत्व अवकाश के बाद अर्पिता ने फिर जॉइन कर लिया।छोटी बच्ची होने के कारण उसे वर्क फ्रॉम होम करने की छूट कंपनी से मिल गयी।एक दिन फिर निशांत के सिर में भयानक दर्द उठा,

तब निशांत के माता  पिता भी आये हुए थे।वे निशांत को एक प्रतिष्ठित हॉस्पिटल में दिखाने ले गये।काफी टेस्ट हुए और डॉक्टर टीम ने निष्कर्ष दिया कि निशांत को ब्रेन ट्यूमर है और उसका जल्द ऑपरेशन निहायत जरूरी

है।कोई भी अन्य विकल्प के अभाव में परिवार द्वारा परस्पर डिसकशन कर ऑपरेशन कराने का निर्णय ले लिया गया।

       निश्चित समय पर निशांत के ब्रेन का ऑपरेशन कर दिया गया।एक सप्ताह बाद ऑपरेशन का साइड इफ़ेक्ट सामने आया।ऑपरेशन तो सफल हुआ,निशांत की जान भी बच गयी,पर मष्तिष्क की तमाम मेमोरी समाप्त हो गयी। 37 वर्षीय निशांत एक नवजात शिशु की तरह हो गया था।

अब उसे सब कुछ बताना और सिखाना था,यह एक लंबी प्रक्रिया थी,जिसमे धैर्य और हिम्मत की जरूरत थी।परिवार का हर सदस्य  विश्वास शून्य हो चुका था,उन्होंने समझ लिया था कि वे निशांत को खो बैठे हैं।पर अर्पिता ने हिम्मत नही हारी, अपनी बेटी के साथ ही निशांत की परवरिश की जिम्मेदारी उसने सहर्ष ही मौन रह कर स्वीकार की।

उसने मुम्बई में ही रहने का निश्चय किया,क्योकि यहां ही निशांत का आगे भी इलाज जारी रहना था,दूसरे उसका जॉब भी यही था।जॉब बात इतनी नही थी जितना निशांत के इलाज की बात थी।माँ को समझा कर उसने परिवार के शेष सदस्यों को भी तैयार करा लिया।

सबका कहना था अकेली अर्पिता कैसे सबकुछ कर पायेगी और कोई यहां स्थायी रूप से रह नही सकता।अर्पिता बोली माँ मैं तो गरीब घर से आयी हूँ, मुझे तो सब कुछ करने की आदत है,मां तुम्ही बताओ निशांत मुझे अपने साथ ब्याहता रूप में लाया है तो उसे मैं इस हाल में छोड़ दूं।

नही माँ  अब मेरा संघर्ष भगवान के न्याय के विरुद्ध होगा,देखूँ तो मेरे निशांत को कैसे ले जाते हैं।माँ ने भीगी आंखों से अर्पिता के सिर पा हाथ रख दिया।

       लगभग ढाई वर्ष हो चुके है,पचास प्रतिशत से अधिक निशांत की मेमोरी को अर्पिता लाने में सफल भी हो गयी है। डॉक्टर इसे चमत्कार मान रहे हैं, उनका कहना है कि अब निशांत की रिकवरी जल्द ही हो जायेगी।

    निशांत के परिवार के सदस्य कहते हैं कि अर्पिता ने असंभव को संभव कर दिखाया है,वो हमारा अभिमान है।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

सच्ची घटना, पात्रों के नाम परिवर्तित किये गये हैं।

अप्रकाशित।

#गरूर शब्द पर आधारित कहानी:

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