अरमान ज़िंदगी के- बेला पुनिवाला  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : सुबह से ये सोचकर मैं कितनी खुश हूँ कि आज मेरी शादी की पाँचवीं  सालगिरह है, सब लोग मुझे शादी की सालगिरह की बधाइयाँ दे रहे हैं मेरे वॉट्स अप, फेसबुक, इंस्टा पर भी सभी दोस्त और रिश्तेदारों के मैसेज आ रहे हैं बस मैं इसी मैसेज और लोगों की बधाई सुनकर खुश हो जाया करती, लेकिन आख़िर पता नहीं कब तक ऐसा चलता रहेगा, कब तक अपने मन को मैं बस यूहीं मनाती रहूँगी ,

आखि़र कब तक ? तभी मेरे पति कमरे में आते हैं और एक नज़र उन्होंने मुझे सिर्फ़ देखा, या अनदेखा किया और अलमारी में से अपनी फाइल लेकर ऑफिस के लिए जाने लगे, मैं बस उन्हें जाते हुए देखती रह गई, जाते वक्त उन्होंने सिर्फ़ इतना ही कहा, कि ” मैं ऑफिस जा रहा हूँ  रात को देर से आऊँगा , मेरा खाने के समय इंतजार मत करना, मैं बाहर खाकर आऊँगा। “

           बस इतना सुनते ही मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन ही सरक गई। क्योंकि देर से आने का मतलब आज वह फिर से अपने दोस्तों के साथ शराब पीकर आएँगे, अपने बीते हुए कल और अपने दर्द को भुलाने के लिए, मगर ये सिर्फ़ मैं ही जानती हूँ, कि चाहे वह अपने बीते हुए कल को भुलाने की कितनी भी कोशिश कर ले, मगर ये कभी नहीं होगा,

कि वह अपनी पहली पत्नी को भुला पाए, जो शादी के एक साल बाद ही कैंसर की वजह से भगवान के पास चली गई जो किसी ज़माने में उनकी प्रेमिका भी हुआ करती थी।

          आप सोच रहे होंगे, कि तो फ़िर इस प्रेम कहानी में, मैं यहाँ क्या कर रही हूँ ? गरीब घर की सुंदर, सुशील और संस्कारी लड़की, जो अपने पिता का बोझ कम करने के लिए शादी के लिए राज़ी तो हो गई मगर शादी की सुहाग रात की रात ही मुझे मेरे पति ने कह दिया, कि ” तुम्हें मेरे घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं होगी

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तुम्हें हर वह हक मिलेगा जिसकी तुम हकदार हो, मगर यह शादी मैंने सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी माँ की खुशी के लिए ही की है, उसको तुम इस बात का एहसास कभी मत होने देना कि हम दोनों के बीच पति पत्नी जैसा कोई रिश्ता नहीं है, बस उसको तुम खुश रखने की कोशिश करना, मैं अपनी पत्नी धारा से बहुत प्यार करता था और करता रहूँगा ,

इसलिए मैं तुम्हें अपनी पत्नी का दर्जा शायद ही कभी दे पाऊँ , बस मैं जो हूँ जैसा भी हूँ तुम्हारे सामने हूँ, मैं तुमसे सच नहीं छिपाऊँगा । “

        बस ये सुनते ही मेरे अपनी जिंदगी के सारे अरमान चकनाचूर हो गए, मेरी जिंदगी के सारे सपने कांच के टूटे हुए शीशे की तरह टूट कर बिखर गए, बस तब से एक बेटी का फर्ज निभा रही हूँ जिसकी और भी दो बहनें हैं जिसकी अब शादी हो जाएगी, जिस शादी का सारा ख़र्चा मेरे पति उठा लेंगे।

मेरे माँ और बाबा का सारा खर्चा भी मेरे पति ही उठाते हैं बिना कहे, बिना मांगे जरूरत का हर सामान मेरे घर पहुँच जाता है। बस यही सोचकर खुश हो जाती हूँ कि कोई बात नहीं मेरी वजह से मेरी बहन और मां-बाबा तो खुश हैं । 

        अपनी शादी और अपने पति को लेकर एक लड़की के कितने अरमान होते हैं ये तो हर कोई जानता ही है, मगर मेरे अरमान पूरे नहीं हुए तो क्या हुआ, मेरा परिवार तो आज खुश है। इस से आगे मुझे और कुछ नहीं चाहिए, यही सोचकर मैं खुश रहती हूँ और हाँ घर में अब माँ को उनके पोते का इंतजार है,

तो मैंने और मेरे पति ने एक अनाथ बच्चे को गोद ले लिया, माँ को हम ने समझा

बुझाकर इस बात के लिए भी मना लिया, मगर माँ तो आख़िर माँ ही होती है, उनके आगे कहाँ कुछ छुप सकता है, उन्हें इस बात का अंदाजा भी लग गया, कि हमारे बीच पति पत्नी का कोई रिश्ता नहीं, फिर भी एक उम्मीद लगाए हुए हैं कि किसी दिन यह रिश्ता भी बन ही जाएगा।

मैं भी इसी उम्मीद लगाए उस दिन के इंतज़ार में बैठी हुई हूँ, कि ” एक ना एक दिन उनको भी मुझ ग़रीब पर प्यार आ ही जाएगा, औरों की तरह हम भी किसी रोज झील के किनारे बैठ कर एक दूजे का हाथ पकड़कर प्यार भरी बातें करेंगे और किसी रोज मेरे भी दिल के सारे अरमान सच हो जाएँगे , कहीं किसी रोज़, किसी किनारे। ” 

स्वरचित

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बेला पुनिवाला

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