Moral Stories in Hindi : भाई, तुमने अपने कदम पीछे क्यूँ खींच लिये थे,तुम तो मुझे बचाने चले थे,फिर क्या हुआ?काश मुझे हॉस्पिटल ही पहुँचा देते।मेरे परिवार का क्या होगा?
हड़बड़ा कर रमेश की आँखे खुल गयी।पसीने से तरबतर रमेश असहजता से उठ बैठा।सपने में दिखाई देने वाले व्यक्ति को वह पहचान गया था।उसको डर भी लग रहा था।अचकचा कर उसने पास लेटी अपनी पत्नी का हाथ पकड़ कर दबा लिया।पत्नी भी घबरा कर उठ गयी, उसने पति को पसीने से भीगे देख बोली,सुनो जी मैं अभी डॉक्टर को फोन करती हूँ, आप लेट जाइये। रमेश ने अपनी पत्नी माधवी से कहा कि नही डॉक्टर की जरूरत नही है,बस तुम मेरे पास बैठी रहो।
आज ही घटित घटना रमेश की आंखों के सामने तैर गयी।रविवार का दिन,रमेश अपनी पत्नी व बेटे के साथ मेरठ से दिल्ली कार से जा रहे थे।मेरठ शहर खत्म होने पर बाईपास के पास काफी भीड़ थी।शायद कोई दुर्घटना हो गयी थी।रमेश भी कार एक ओर रोककर उस दुर्घटना को देखने चला गया।कभी कभी कोई जानकर व्यक्ति दुर्घटनाग्रस्त होता है,इसी कारण रमेश रुक गया था।
रमेश ने देखा कि एक व्यक्ति के पावँ के ऊपर से रोडवेज बस गुजर गयी थी,ड्राइवर और कंडक्टर बस छोड़ कर भाग गये थे,घायल व्यक्ति को घेरे तमाम लोग खड़े थे,घायल चिल्ला चिल्ला कर गुहार कर रहा था कि उसे अस्पताल पहुंचा दिया जाये, मेरे पास इलाज के लिये पैसे भी है।भगवान के वास्ते मुझे अस्पताल पंहुचा दो।
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देख सब रहे थे,पर मदद को कोई आगे नही आ रहा था।रमेश को यह स्थिति नागवार लगी,उसने आगे बढ़ उस घायल व्यक्ति को सांत्वना देते हुए उसे अस्पताल लेकर जाने का आश्वासन दिया।उसने वहां खड़े लोगो से आग्रह किया कि वे घायल को उसकी गाड़ी मे लिटवा दे,वो घायल को अस्पताल ले जायेगा।कोई आगे नही बढ़ा।क्या इंसानियत बिल्कुल मर गयी है?
क्या सब पत्थर दिल हो गये हैं?सोचते सोचते रमेश कार को घायल के नजदीक लाने चल पड़ा।तभी भीड़ से एक व्यक्ति रमेश के पास आया और फुसफुसा कर बोला बाबू अस्पताल लेकर तो जा रहे हो,लेकर तो हम भी चले जाते, पर ये तो बताओ हॉस्पिटल पहुँचने से पहले ही यदि यह कार में ही मर गया तो??इस प्रश्न ने रमेश को तोड़ दिया और बहुत ही दुखी मन से रमेश दिल्ली न जाकर अपने घर की ओर वापस चल दिया।
रमेश के लिये यह घटना सामान्य नही थी,वह उस घायल की सहायता करना चाहता था, पर आज की व्यवस्था से डर कर आत्मा के विरुद्ध जाकर वह आज एक मानवीय कार्य करने से चूक गया था। शायद दिन की इस घटना का ही मन मस्तिष्क पर प्रभाव था,जो रात्रि में भी स्वप्न रूप में सामने आयी।वही घायल व्यक्ति रमेश के सपने में आकर अपना शिकवा प्रकट कर रहा था।
किसी प्रकार रात बीत गयी।प्रातः समाचार पत्र से ज्ञात हुआ कि कल हुए एक्सीडेंट में घायल व्यक्ति जिसका नाम बसन्त था,उसने पुलिस द्वारा अस्पताल ले जाते समय ही अधिक खून बह जाने के कारण दम तोड़ दिया था।वह अपने पीछे एक पुत्र और पत्नी को छोड़ गया है। यह समाचार पढ़कर रमेश अपने को ही अपराधी समझने लगा।
काश वह बसन्त को हॉस्पिटल पहुंचा देता।अपराधबोध और पश्चाताप से ग्रस्त रमेश ने बसन्त के परिवार का पता लगाना चाहा, कई दिनों बाद पुलिस की मदद से ज्ञात हुआ कि बसन्त मेरठ के मलियाना क्षेत्र का रहने वाला था।रमेश बसन्त के घर पहुंचा तो पता चला कि उसकी पत्नी अपने 18 वर्षीय पुत्र के साथ घर छोड़ कर अपने भाई के पास रहने चली गयी है। रमेश निराश हो वापस आ गया।मन पर बोझ तो था पर जीवन तो चलना ही था।
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यूँ ही तीन वर्ष बीत गये, रमेश का सीमेंट उद्योग खूब चल निकला था।एक दूसरी फैक्ट्री डालने की योजना बन गयी थी।जमीन खरीद ली गयी,निर्माण कार्य प्रारंभ शुभ मुहर्त में करने का निर्णय रमेश द्वारा ले लिया गया था।नयी फैक्टरी के लिये आवश्यक स्टॉफ की भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी गयी थी।रमेश खुद इंटरव्यू लेकर सुयोग्य उम्मीदवारों का चयन कर रहा था।
आज भी अपने ऑफिस में बैठा रमेश इंटरव्यू लेने में व्यस्त था,तभी वह एक उम्मीदवार को देख चौंक गया।तीन वर्ष पूर्व का घटनाक्रम उसकी आँखों के सामने एक बार फिर तैर गया।उसे लगा उसके सामने वो घायल बसन्त खड़ा है,हाँ बिल्कुल बसन्त ही।बसन्त का प्रारूप ही तो था,वह युवक।तभी रमेश के कानों में आवाज सुनाई दी,सर मैं सुशील,क्या अंदर आ सकता हूँ?जैसे नींद से जागा रमेश, बोला हाँ हाँ आओ, बैठो।सुशील ये तो बताओ तुम्हारे पिता का क्या नाम है? स्व.बसन्त सर।
ओह तो सुशील उस दुर्घटना में मृत बसन्त का बेटा है।
रमेश को लगा कि वह अब शायद अपनी उस कायरता का प्रायश्चित कर सके।रमेश अपनी चेयर से उठा और सुशील के सिर पर हाथ फिराते बोला बेटा आज से इस फैक्टरी का कार्य तुम ही संभालोगे—–!
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक,अप्रकाशित।
#पश्चाताप