आज राधेश्याम जी के परिवार में हर तरफ ठहाकों की गूँज सुनाई दे रही थी। राधेश्याम ग्रोवर जी, नोएडा में रहने वाले एक व्यापारी थे और अपनी पत्नी सुजाता संग जिंदगी के ये वर्ष अकेले व्यतीत कर रहे थे।
यूँ कहें तो परिवार बड़ा था, दो बेटे समीर और विशाल नौकरी के चलते शादी के बाद मुंबई और कोलकाता अपनी पत्नियों और बच्चों के संग माता पिता से दूर कई वर्षों से रह रहे थे| दो बेटियां आरती और नित्या भी शादी के बाद अपने अपने ससुराल जयपुर और लखनऊ रहती थीं।
राधेश्याम जी सात भाई बहनों में सबसे बड़े थे।स्वंय के चार बच्चे और आगे छोटे भाई बहनों के बच्चे अब सब अपनी अपनी जिंदगी मे शादी के बाद एवं नौकरियों एवं व्यापार के चलते इस कदर व्यस्त हो गए थे कि सभी भाई बहन कितने वर्षों से ना कभी मिले और उनमे से कुछ की तो फोन पर भी कभी कोई बातचीत नहीं होती थी। रिश्ते तो मानो जैसे सिमट कर रह गए थे।
ये सब देख कर कभी कभी राधेश्याम जी दुखी हो जाते थे।
राधेश्याम जी सभी भाई बहनों में बड़े और थोड़ा कड़क स्वभाव के होने की वजह से उनका एक रौब था।
ऊपर से कड़क अवश्य थे वे परंतु अन्दर से एक दम नर्म दिल था उनका।
परिवार में एक जुटता को बनाये रखने के लिए अपनी जवानी की अवस्था में वे जो कुछ कर सकते थे उन्होंने किया और सब उनका दिल से सम्मान करते थे और सभी भाई बहन एक सूत्र में बंधे रहते थे।
धीरे-धीरे वृद्धावस्था आते आते अब उनका मनोबल क्षीण होता जा रहा था ।वे जानते थे कि आज की पीढ़ी रिश्तों से ज्यादा अब नौकरी,कैरियर और अन्य चीजों पर ज्यादा ध्यान देने लगी है।और दूर क्यूँ जाना उनके स्वं के बच्चे भी अब कुछ सालों से ऐसे हो गए थे तो दूसरों से उम्मीद का दिया कैसे जलाते।
आज बैठें हुए वे अपना पुराना समय याद कर रहे थे और उन्होंने पत्नी से अपने मन की भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा “सुजाता! तुम तो जानती ही हो कि हम सातो भाई बहन एक दूसरे के साथ किस तरह घुल मिल कर रहते थे।
शादी के बाद भी चाहे कितनी जिम्मेदारी सभी के जीवन में हो रिश्तों की सही परिभाषा हम सब भाई बहनों को अच्छे से मालूम थी।तुमने भी इस परिवार को कितनी भली भांति सम्भाला। सभी को भरपूर प्यार दिया।
याद है बचपन में सब बच्चे गर्मी हो या सर्दी ,स्कूल की छुट्टियों का इंतजार करते कि ताई माँ के घर ही जाना है। और हमारे चारों बच्चों और बाकी बच्चों को मिलाकर काफी बच्चे हो जाते थे और वे सब कितना हल्ला मचाते थे कि पड़ोसी भी देखते थे कि रौनक तो ग्रोवर जी के घर पर लगती है।
तब हम यमुनानगर रहते थे और उस समय तो घर भी पुराना और छोटा था, फिर भी सब समा जाते थे ।
तुम और जानकी (राधेश्याम जी की एक बहन) पाक कला मे निपुण थी तो अच्छा बनाकर खिलाती थी बच्चों को। सब कितने खुश हो जाते थे।
और आज घर कितना बड़ा है हमारा। सब सुख सुविधाओं से भरा हुआ। परंतु घर मे रौनक नहीं। कितने साल ही हो गए। बस सब शादी ब्याह में मिल लेते थे। जो प्यार, लगाव बचपन में था सब के बीच। अब समय के अनुसार धुँधला पड़ गया है।लगता है मानो सभी के पास समय का अभाव हो गया है।
ये पीढ़ी आगे अपने बच्चों को रिश्तों का महत्व क्या है? क्या ये कभी बता पाएगी?जब वे स्वंय ही समय के अनुसार बदल चुके है।
क्यों है ना सुजाता?राधेश्याम जी ने थोड़ा उदासी से बोला।
आप बिल्कुल ठीक कह रहे है जी। मुझे भी सब याद है कैसे भूल सकती हूं मैं। सब बच्चे हमारे आगे ही तो पले बड़े है। सुजाता जी ने कहा।
कैसे रात को मुझ से तरह तरह की कहानियां सुनते थे।उदित ( देवर के बेटे) को तो भूतों की कहानी ही सुननी होती थी।
पहले सुन लेता था फिर रात को डर जाता था।
समय समय की बात है। सुजाता जी ने थोड़ा लंबी साँस लेते हुए कहा।
अगले दिन राधेश्याम जी अपनी पत्नी से ” सुजाता!मेरे मन में एक बात आयी है और वे अपनी पत्नी से कुछ कहते है और पूरी बात सुनने के बाद सुजाता जी मुस्कराते हुए कहती है “बहुत अच्छा विचार है।मैं सदा की तरह इसमें भी आपके साथ हूँ।
तो इसी बात पर एक कप चाय तो पिलाओ।हंसते हुए राधेश्याम जी ने सुजाता जी को कहा।
अभी लाई। ऐसा कहते हुए सुजाता जी किचन में चली जाती है।
और ग्रोवर साहब जुट जाते है अपने काम में।
और काम था “मोबाइल में बनाया उन्होंने एक प्यारा सा ग्रुप।
ग्रुप में किया एक दूसरे से नंबर लेकर सभी को एड्।
एक से दो दिन लगे इसमें। आखिर अब थोड़ी उम्र जो हो गई थी। पर रिश्तो को फिर से जीवित करने का जो ज़ज्बा उनमे था वो काबिले तारीफ़ था।
अखिर कार ग्रुप बन ही गया। और नाम दिया गया।
“ट्रू रिलेशन”
और उसके नीचे कैप्शन लिखा था,,,,,,,,,,,
“जी लो अपना बचपन दोबारा”
मिलन समारोह (री यूनियन)
और ग्रुप के पहले मैसेज राधेश्याम जी के दिल के हाल ब्यान कर रहे थे, वह मैसेज था,,,,,
(“समय का अभाव है, तेज़ रफ़्तार सी भाग रही जिंदगी!
छूट रहे थे साथी अपने,जिन्होंने बनाई बेरंग दुनिया रंग बिरंगी!
“इक जगह अब रुक ज़रा,धीमी कर रफ़्तार ज़रा!
ले अपनों को साथ ज़रा, जिस बिन अधूरा संसार तेरा!”)
फिर उन्होंने सभी को कहा “सभी को मेरी तरफ से शुभाशीष, आशीर्वाद, प्यार।
आज ये ग्रुप बड़ी मुश्किल से मैंने पूछ पूछ कर बनाया और क्यूँ बनाया आप लोग समझ ही गए होंगे।
सोचा इस बुढ़ापे में मैं भी एक पार्टी तो कर के देख ही लूं। जीवन का क्या भरोसा। कब आंखे बंद हो जाएं। और मेरी नजर में पार्टी का मतलब सभी का संग है।
सभी का संग मतलब सभी का संग। ये मेरा हुकुम समझो या आदेश या प्यार। प्यार के अनेक रंग होते है। तो सभी को आना है।
आज से ठीक 20 दिन के बाद सब ने मिलना है।
ऐसा कहकर राधेश्याम जी ऑफ लाइन हो जाते है।
सभी लोग एक दूसरे को हैलो,नमस्कार कहते है। थोड़ी बहुत बातचीत होती है।
परंतु इस बारे में किसी का कोई ख़ास रिस्पॉन्स नहीं आता।
दो दिन तक ग्रुप में कोई हलचल नहीं होती।
फिर आखिर तीसरे दिन “राधेश्याम जी की भतीजी अनामिका ( सबसे छोटे भाई की बेटी) जो विदेश रहती थी का मैसेज पढ़कर जो खुशी राधेश्याम जी को होती है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।
उसने लिखा था “बड़े पापा आई एम् इन( मैं आ रही हूँ)।
मेरी समीरा ( उसकी बेटी) को सभी से मिलना है।
विदेश से इतने कम टाइम् में टिकट अरेंज करना मुश्किल है पर मैं मैनेज कर लूँगी। आऊंगी जरूर।
आखिर मेरे बड़े पापा ने बुलाया है।
फिर क्या था,,,,,,,,,,,,,,,,,,
एक के बाद एक सभी भाई बहन धीरे-धीरे हाँ करने लगे। बहाने जरूर बनाए किसी किसी ने। परंतु आखिर कार सभी ने हाँ कर ही दी।
राधेश्याम जी के स्वं के बच्चे भी तय की हुई तारीख से 2 3 दिन पहले घर पहुंच गए। और पार्टी की सारी तैयारियों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।
यूनियन के बहाने सभी भाई बहनों में फोन और ग्रुप में बातचीत होनी शुरू हो गई थी, सभी की पत्नियां भी आपस में बातचीत करने लगी थी। क्या पहनना है से लेकर खाने पीने का मेन्यू सब आपस में और ग्रुप में डिसाइड हो रहा था।
रोज़ तरह-तरह के विचार विमर्श किए जाते। जैसे पार्टी के लिए गेम्स, कपल डांस, बड़ो के लिए टाइटल और मनोरंजन सभी कुछ राधेश्याम जी द्वारा बनाए गए उस ग्रुप में चलता रहता।
यूनियन का दिन आखिर ही गया। उस दिन सुजाता और राधेश्याम जी के चेहरे पर जो चमक थी ना वह देखने योग्य थी। दोनों बहुत खुश थे आज।
उन्होंने सुबह सुबह ही ग्रुप में एक मैसेज डाला कि जो जो नोएडा के लिए चलता जाए परिवार के साथ ग्रुप में फोटो डालता जाए।
ये फोटो यादों के रूप में भविष्य में संचित हो जाएंगी और फिर से आपस में मिलने के लिए एक दूसरे को बाध्य करेंगी। ऐसा उनका मानना था।
फोटो का सिलसिला चलता रहा। हर परिवार में आज सभी को जल्दी पहुंचकर सभी से मिलने की जल्दी लगी हुई थी। अपना बचपन जीने की जल्दी लगी हुई थी।
एक एक करके सभी राधेश्याम जी के घर पहुंच रहे थे।
जब सब पहुंच गए तब सबको आशीष देते हुए उन्होंने कहा “बच्चों। सभी ने मेरी बात का सम्मान किया। सभी का धन्यवाद। एक बात और कहनी है “सभी घर के हॉल में एक साथ दो रातें व्यतित करेंगे। कोई होटल में नहीं रहेगा।
ठीक है। सभी ने कहा और पार्टी के लिए सब रेडी होने चले जाते है।
रात को घर के एक हॉल में पार्टी का आयोजन हुआ जिसमें सब के चेहरों पर मुस्कान खिली हुई थी। सभी जोर जोर से ठहाके मार कर हंस रहे थे। बचपन की एक दूसरे की अठखेलियाँ और शरारतें बताकर एक दूसरे को छेड़ रहे थे।
एकल परिवारो में रह रहे सभी के बच्चे रिश्तों की एक नई परिभाषा समझ रहे थे।
वे भी आपस मे पहली बार मिल रहे थे और चेहरों पर सभी के कलियों जैसी मुस्कान थी।
सभी बड़ो को आपस में सुख दुख साँझा करते देख राधेश्याम जी अपनी पत्नी को पास बुलाते है और कहते है,”देख रही हो सुजाता!”हमारा परिवार” एक सूत्र में बंधा हुआ। जो इतने सालों से सपना अधूरा था शायद इस मिलन समारोह के बाद पूरा हो जाए।
जीवन में प्यार के, अपनेपन के जो रंग फीके पड़ गए थे वे फिर से रंगीन हो जाएंगे।
आप सही कह रहे हैं जी। बाबूजी (ससुर जी) के जाने के बाद आपने ही सभी को एक जुट बनाए रखने की जो कोशिश की है, वह काबिले तारीफ है। सुजाता जी ने पति से कहा।
आज आपकी कोशिश रंग लायी है।
मुझे आप पर नाज़ है।
और दोनों पति पत्नी हंस पड़ते है।
दोस्तों ये कहानी आपको कैसी लगी। पढ़कर अवश्य बताएं।
आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में।
ज्योति आहूजा।