सलोनी की माँ, उर्मिला देवी, उस दिन आँगन की चौकी पर बैठी चुपचाप आटे की लोई गोल कर रही थीं, पर उनके चेहरे पर एक गहरी निराशा और थकान का साया साफ दिखाई दे रहा था। इतने वर्षों में उन्होंने अपनी बेटी सलोनी को पढ़ाया-लिखाया, संस्कार दिए, घर संभालना सिखाया, और एक आदर्श लड़की की तरह गढ़ दिया था।
लेकिन जिस बात की उन्हें सबसे अधिक चिंता थी, वह थी—रिश्ता।
कहीं पर बात बनते-बनते टूट जाती।
किसी जगह लड़के वालों को सलोनी पसंद आ जाती, पर अगले ही दिन फोन आ जाता—
“हमें रिश्ता आगे नहीं बढ़ाना है।”
उर्मिला देवी हर बार हताश होकर कहतीं,
“आखिर ऐसा क्या है सलोनी में जो हर बार अच्छा रिश्ता हाथ से फिसल जाता है? हमारी बिटिया में तो कोई कमी नहीं है। फिर क्यों… क्यों हर बार ये अड़चन?”
सलोनी, जो भीतर से मजबूत थी, पर लगातार इन ठोकरों से टूट रही थी।
पहले-पहल वह हर रिश्ता टूटने के बाद मुस्कुरा देती थी—
“किस्मत में नहीं था माँ, कोई बात नहीं…”
लेकिन अब उसकी मुस्कान धीरे-धीरे फीकी पड़ने लगी थी।
कमल जी, सलोनी के पिता, यह सब देखकर अंदर ही अंदर घुट रहे थे।
वे हमेशा कहते,
“इतनी सुशील, समझदार और सभ्य लड़की… इसे कौन नकार सकता है? जरूर कहीं न कहीं कोई भेद है जो हम जान नहीं पा रहे।”
फिर एक दिन…
एक नया रिश्ता आया—बेहद अच्छा।
लड़का पढ़ा-लिखा, सीधे-सादे परिवार से, और सबसे अनोखी बात—लड़के वाले सलोनी को पहली ही मुलाकात में पसंद कर गए।
लड़के की माँ ने सलोनी को अपने पास बैठाते हुए कहा था,
“बिटिया, तुम जैसी लड़कियाँ आजकल कहाँ मिलती हैं? सरल, सभ्य और आदर करने वाली।”
कमल जी और उर्मिला देवी की आँखों में उसी क्षण एक उम्मीद का दीप जल उठा।
तारीख़ें तय हो गईं।
सगाई का शुभ मुहूर्त भी एक महीने बाद का निकाल दिया गया।
पर इस बार कमल जी पहले वाले कमल जी नहीं थे।
वे हर कदम सोच-समझकर रख रहे थे—बिल्कुल गिन-गिन कर।
क्योंकि उन्हें अब अहसास होने लगा था कि जिस तरह हर रिश्ता आखिर समय पर टूट जाता है, उसके पीछे कोई साधारण कारण नहीं हो सकता।
और फिर…
एक दिन उन्हें सच्चाई का सामना करना पड़ा।
एक पुराने परिचित, जो लड़के वालों के घर गए थे, ने कान में कहा—
“कमल जी, आपको पता है? आपके ही कुछ रिश्तेदार लड़के वालों के घर जाकर आपकी बेटी के बारे में उल्टा-सीधा बोल रहे हैं। कहते हैं कि लड़की में बुरे स्वभाव की कमी है, घर नहीं संभाल पाएगी, और आपके परिवार के बारे में भी मनगढ़ंत बातें बता रहे हैं। इसलिए रिश्ते बात बनने से पहले ही टूट जाते हैं।”
कमल जी स्तब्ध रह गए।
उनके मुँह से निकला ही नहीं—
“कौन… कौन कर सकता है ऐसा?”
पर उन्हें जवाब पता था।
वही दो-चार तथाकथित अपने।
जिनके घरों में कभी चाय तक नहीं पी थी, पर दूसरों का घर तोड़ने में मज़ा आता था।
ईर्ष्या… जलन… और रिश्तेदारों की वो अदृश्य दीवारें, जो किसी भी अच्छे घर को कठिनाई में डाल सकती हैं।
उर्मिला देवी ने सुनते ही सिर पकड़ लिया—
“अपनों से दुश्मन अच्छे, कम से कम सामने वार तो करते हैं। ये तो मुस्कुराकर पीठ पीछे आग लगाते हैं!”
सलोनी मन ही मन टूट गई।
उसे पहली बार लगा—
“क्या मेरी खुशी किसी और को इतनी चुभती है?”
कमल जी ने दृढ़ निश्चय कर लिया—अबकी बार सच छुपाने का नहीं।
सगाई से दो हफ्ते पहले उन्होंने लड़के वालों को घर बुलाया।
अकेले में उन्होंने लड़के के पिता से कहा—
“भाई साहब, एक बात साफ-साफ कहनी है। हो सकता है मेरे कुछ ‘खास अपने’ इस बार भी संबंध तोड़ने की कोशिश करें। इसलिए मैं आज आपके सामने पूरी सच्चाई रख रहा हूँ। आप चाहे तो अभी हमारे बारे में सब पता करवा लें, पर कृपया किसी और की बातों में मत आइए। बार-बार रिश्ता टूटने से मेरी बेटी और घर पूरी तरह टूट चुका है।”
लड़के के पिता, रमेश जी ने गहरी सांस ली और कहा—
“कमल जी, चिंता मत कीजिए। हम भी इन हालात के भुगतभोगी हैं। हमारी बेटी के रिश्ते में भी हमारे अपने ही आग में घी डालते थे। इसलिए हम आपका दर्द समझते हैं।
और हम आपको यकीन दिलाते हैं—इस बार ये रिश्ता जरूर होगा। चाहे कोई कितना भी भड़का ले।”
पहली बार सलोनी और उसकी माँ के चेहरे पर सच्ची राहत दिखी।
रमेश जी ने आगे कहा—
“हम अपनी होने वाली बहू की इज्जत को अपनी इज्जत समझते हैं। दुनिया में सब एक जैसे नहीं होते। कुछ लोग आज भी अच्छे भी हैं, जिनके लिए रिश्ते सिर्फ नाम का नहीं, सम्मान का बंधन होते हैं।”
उनकी आवाज़ की सच्चाई ने कमल जी के दिल को छू लिया।
उसी शाम
लड़के, विशेष, ने सलोनी को कॉल किया।
पहली बार इतने खुले दिल से बोला—
“सलोनी, मुझे पता है आपके घर के कुछ लोगों ने हमारे यहाँ उल्टी-सीधी बातें पहुँचाने की कोशिश की थी। पर मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता। मैं आपको आपसे समझना चाहता हूँ, दुनिया की बातों से नहीं।”
सलोनी की आँखें पलभर में भर आईं।
उसने धीमे स्वर में कहा—
“आपको… मेरी वजह से कोई दिक्कत तो नहीं हुई?”
विशेष मुस्कुराया—
“आप ही मेरी वजह हैं सलोनी। बाकी सब बातें मायने नहीं रखतीं।”
यह वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए वह पिछले कई वर्षों से तरस रही थी।
सगाई का दिन आया।
घर रंग-बिरंगी लाइटों से सजा था।
सलोनी गुलाबी पोशाक में आँचल सँभालती डरी-डरी सी बैठी थी।
उर्मिला देवी ने बेटी के सिर पर हाथ रखा—
“आज हमारी बिटिया का सचमुच शुभ दिन है।”
जब विशेष ने सलोनी को अंगूठी पहनाई, तो कमरे में तालियाँ गूँज उठीं।
उर्मिला देवी की आँखों से खुशी के आँसू बह निकले।
कमल जी ने हाथ जोड़कर भगवान को धन्यवाद दिया—
“देर से दिया, पर सही दिया।”
सगाई के बाद लड़के वालों ने साफ कहा—
“कमल जी, कोई कुछ भी कहे, हम अब पीछे नहीं हटेंगे। यह रिश्ता हमारे लिए सिर्फ दो लोगों का नहीं, दो परिवारों का मिलन है।”
सलोनी के मन से वर्षों की निराशा धुल गई।
उसे लगा—
दुनिया में बुराई जितनी बड़ी दिखती है, अच्छाई उससे कहीं बड़ी होती है…
बस वह समय पर सामने आती है।
शादी बहुत ही सरल और सुंदर वातावरण में हुई।
विशेष का परिवार हर कदम पर सलोनी के साथ रहा।
यहाँ तक कि उसकी कटु बातें फैलाने वाले रिश्तेदार भी शादी में आए…
पर इस बार उनकी बुरी निगाहों का कोई असर नहीं हुआ।
क्योंकि इस बार
विश्वास बड़ा था, झूठ छोटा।
सच्चाई मजबूत थी, और रिश्ता उससे भी अधिक।
दो महीने बाद सलोनी ने मां को फोन किया—
“मां, मेरा घर बहुत अच्छा है। सब लोग मेरी कद्र करते हैं। आपने जो संस्कार दिए, वही मेरे काम आ रहे हैं।”
उर्मिला देवी ने राहत की सांस ली—
“शुक्र है भगवान का… मेरी बिटिया को उसकी खुशियाँ मिल गईं।”
कमल जी बरामदे में बैठे मुस्कुरा रहे थे।
उन्होंने कहा—
“आज भी दुनिया में भले लोग हैं उर्मिला… वरना रिश्ते तो रचते ही नहीं, टूटते चले जाएं।”
उर्मिला देवी ने सिर हिलाते हुए कहा—
“और हमें भी सीख मिली कि अपनों की पहचान सिर्फ खून से नहीं, कर्म से होती है। जो सामने न होते हुए भी साथ हों—वही असली अपने होते हैं।”
रिश्तों की राख में से
सलोनी को आखिरकार
एक उजाला मिल गया था।