“ माँ मुझे जरा भी समझ नहीं आता ये रूहानी और मम्मी जी जब तब कुछ खुसुर फुसुर करती रहती है साथ ही कहेंगी धीरे बोलो दीवारों के भी कान होते हैं… बताओ भला इस घर में हम चार लोग ही तो है तो कौन उनकी बात सुन लेगा… मैं?… क्या मैं उनकी या इस घर का कुछ नहीं लगती… आपको पता है ये लोग तो रोहन के सामने भी बात नहीं करती है समझ नहीं आता ये दोनों ऐसा क्यों करती है?” रचना अपनी माँ से फ़ोन करके कह रही थी
“ बेटा कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि बहू दूसरे घर की है वो कभी उनकी नहीं हो सकती इसलिए वो अपने बच्चों के साथ तो अपनापन रख सकती है पर बहू के साथ नहीं… और अपने बेटे के साथ वो इसलिए बातें नहीं करती होगी कि उन्हें डर लगता होगा कि वो कहीं तुम्हें कुछ ना बता दें ,तुम इन सब बातों पर ज़्यादा ध्यान मत दो वक्त आने पर तुम्हारी सास को भी समझ आ जाएगा कि वो सही कर रही और गलत।” सुलोचना जी बेटी को समझाते हुए बोली
रचना माँ की बात सुन अब इस ओर ध्यान देना बंद कर दी।
समय के साथ साथ रचना की सास रमा जी में कोई बदलाव तो नहीं आया पर अब बेटी की शादी के लिए चिंतित हो कर बेटे से कहने लगी।
“बेटा रूहानी के लिए लड़का पता कर उसके भी हाथ पीले करवाने होंगे थोड़े पैसे तेरे पापा जमा करवा गए थे और बाकी की व्यवस्था तुम्हें ही करनी होगी ।”
रोहन ये सुन कर कमरे में आकर रचना से इस बारे में बात करने लगा ।
“ कहाँ से लाएँगे हम इतने पैसे…ब्याह में कम खर्च तो होगा नहीं ।” चिंतित स्वर में रोहन ने कहा
“ धीरे बोलिए रोहन दीवारों के भी कान होते हैं माँ और रूहानी ने सुन लिया तो सोचिए क्या होगा ।” रचना ने धीरे से कहा
उधर ही बाहर से गुजरती रूहानी ने जब ये सुना तो जाकर माँ के कान भरने लगी।
सुबह नाश्ते के वक्त रमा जी ने रोहन से कहा,” अब तू हम दोनों से बातें छिपाने लगा है और बीबी अपनी हो गई है ऐसा क्या कह रही थी तुम्हें ….जो कह रही थी दीवारों के भी कान होते हैं … इस घर में हम चार लोग ही तो है फिर सब अपने ही है तो किससे गोपनीय बात रखना भला?”
“ मम्मी जी आप सही कह रही है हम चार लोगों में क्या गोपनीय रखना …फिर आप हम दोनों के लिए ये क्यों कहती रहती हैं दीवारों के भी कान होते हैं… अगर आपको कोई दिक़्क़त है या कोई ख़ुशी की बात है अगर हमें पता चल जाएगा तो क्या होगा… ख़ैर ये आपकी सोच है मैं कल रोहन से बस इसलिए कह रही थी क्योंकि अभी हमारी आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं है…जो शादी के लिए बहुत खर्च कर सके पर हम कोशिश करेंगे और हम ये बता कर आपको परेशान नहीं करना चाहते थे इसलिए ही मैं रोहन से ये बात बोली… आप लोगों को बुरा लगा हो तो माफ़ कीजिएगा ।” रचना ने कहा
रमा जी ये सुन कर रोहन से बोली ,” बेटा शायद मैं ही समझ नहीं पाई कि बेटी के साथ साथ बहू पर भी उतना ही भरोसा करना चाहिए क्योंकि कल को बेटी तो ब्याह कर दूजे घर चल जाएगी पर घर की बहू तो घर में ही रहेंगी उससे कुछ भी छिपा कर रखने का क्या फ़ायदा … जो भी परिस्थिति होगी सामना तो हमें मिलकर करना होगा… अब से इस घर में जो भी बात होगी सबके साथ होगी ।”
रोहन और रचना ये सुन कर मुस्कुरा भर दिए क्योंकि वो भी यही चाहते थे जो भी बात हो वो सबके साथ हो सबके सामने हो अपनों को दीवार बना कर नहीं ।
मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
#मुहावरा
#दीवारोंकेकानहोना