Moral stories in hindi:
” क्या बात है विनय आप इतने परेशान से क्यो हो और ऐसे बिन बताये कहाँ चले गये थे आप अचानक ?” बाहर से वापिस लौटे पति से संध्या ने पूछा।
” सब खत्म हो गया संध्या , कुछ नही बचा !” विनय पत्नी को सामने देख अपने आँसू नही रोक पाया और फूट फूट कर रो दिया !
” ये क्या विनय ऐसा क्या हुआ जो आप यूँ बच्चो की तरह रो रहे है मुझे बताइये प्लीज !” हैरान परेशान संध्या पति को चुप कराते हुए बोली।
” जो ऑर्डर हमें विदेश से मिला था वो लगभग पूरा हो चुका था अगले हफ्ते उसे भेजने वाले थे हम पर …!” रोते रोते विनय् इतना बोल चुप हो गया।
” ये सब तो आप कल ही बता रहे थे पर क्या विनय ?” संध्या ने पूछा।
” पर जिस कमरे मे सारा सामान रखा था वहाँ शॉर्ट सर्किट से रात आग लग गई और सारा माल जल गया जो बचा है वो भी भेजने लायक नही रहा !” विनय ये बोल बेसुध सा हो गया।
” पर ऐसे कैसे आग लग गई विनय !” संध्या भी लगभग रोते हुए बोली ।
” नही पता संध्या मुझे तो पड़ोसी का फोन आया कि आपकी फैक्ट्री मे आग लग गई । माल का ख्याल कर मैं बिना कुछ बोले चला गया पर वहाँ जाकर देखा सब खत्म हो गया था अब कैसे बैंक का लोन चुकाऊंगा कैसे सब होगा बिल्कुल बर्बाद हो गये हम तो सडक पर आ जाएंगे अब !” विनय बोला।।
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विनय की बात सुनकर संध्या भी चिंतित हो गई असल मे विनय का एक्सपोर्ट का काम है उसकी फैक्ट्री का कपड़ा बाहर के देशो मे जाता है हालाँकि काम बहुत ज्यादा नही था पर गुजर बसर अच्छे से हो जाती थी। छोटा ही सही अपना घर भी था । पर अभी तीन महीने पहले उसे एक बड़ा ऑर्डर मिला जिसे पूरा करने के लिए उसे रुपये की जरूरत थी तो उसने घर गिरवी रख दिया था हालाँकि संध्या ने तब मना भी किया था पर विनय ने उसकी बात नही मानी क्योकि वो अपने परिवार को और बेहतर जिंदगी देना चाहता था पर ईश्वर को शायद कुछ ओर ही मंजूर था और उसका सारा माल जल गया गलती विनय से ये भी हुई कि उसने इन्शुरेंस नही करवाया था। कल तक जो विनय ऑर्डर पूरा होने की खुशी मे झूम रहा था अब दुख के दलदल मे चला गया। दुखी तो संध्या भी थी पर ये वक्त शोक मनाने का नही था बल्कि फैक्ट्री को सही करवा कर दुबारा काम शुरु करने का था। इसलिए उसने विनय को समझाया।
” पर संध्या कैसे होगा सब बात कुछ हजार की नही है ये घर हमें बेचना ही पड़ेगा काश मैं तुम्हारी बात मान लेता और ज्यादा की चाह ना करता तो आज कम से कम ये घर तो हाथ से ना जाता !” विनय बोला।
” हम फिलहाल किराये का घर देख लेंगे पर अभी तो फैक्ट्री को सही करवाना होगा क्योकि रोजगार रहेगा तभी कोई आस रहेगी !” संध्या ने कहा।
” पर उसके भी पैसे कहाँ बचे है इस ऑर्डर को पूरा करने मे सारी जमा पूंजी चली गई थी ऊपर से अभी ग्राहक को भी जवाब देना बाकी है उसका ऑर्डर जो नही भेजा जा सकता अब !” विनय भरी आँखों से बोला।
” विनय दुख सुख जीवन का हिस्सा है । दुख आया है तो सुख भी आएगा आप चिंता मत कीजिये मेरे साथ आइये …ये मेरे गहने और थोड़ी जमा पूंजी है आप इससे फैक्ट्री दुबारा शुरु कीजिये हुए उस ग्राहक से बात कीजिये अपनी परिस्थिति बताइये और उनसे माफ़ी मांग लीजिये !” संध्या उसे कमरे मे ले जाकर अलमारी मे से गहने और रुपए देती बोली।
” नही संध्या मैं तुम्हारे गहने कैसे बेच सकता हूँ । गलती मेरी है उसे मुझे ही सुधारना होगा मेरे कारण तुम क्यो अपने गहने गँवाओगी !” विनय उदास स्वर मे बोला।
” आपने जो किया अच्छे का सोच कर किया और पति पत्नी मे मेरा तुम्हारा नही होता सब साझा होता है दुख भी और सुख भी समझे अब ज्यादा मत सोचो और काम शुरु करवाओ !” संध्या मुस्कुराते हुए बोली । विनय ने लाख मना किया पर संध्या ने उसे कसम दे गहने पकड़ा दिये।
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कुछ दिनों मे फैक्ट्री का काम शुरु हो गया । विनय ने घर बेच कर सारा कर्ज चुका दिया और एक किराये का घर देख लिया अपने लिए। साथ ही उसने उस ग्राहक से भी माफ़ी मांग ली । धीरे धीरे जिंदगी पटरी पर आने लगी। दो साल की कड़ी मेहनत के बाद विनय ने एक छोटा सा घर खरीद लिया । दुख के बादल छंटने लगे और सुख की धूप आंगन मे खिलने लगी अब विनय को जल्द से जल्द संध्या के गहने बनवाने थे क्योकि उसी के कारण विनय की जिंदगी मे दुख के बाद सुख आया था।
दोस्तों जिंदगी मे सुख दुख लगे रहते है पर अगर अपनों का साथ हो तो हर दुख के बाद सुख आता ही है। यहाँ संध्या ने गहने देकर एक जीवनसंगिनी का फर्ज निभाया वही विनय भी अपनी मेहनत से संध्या की उम्मीदों पर खरा उतरा। ऐसा ही तो होता है एक खूबसूरत रिश्ता।
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल ( स्वरचित )