अपनों का भरोसा – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “अरे बेटा तुम … बहू और बच्चों के साथ?” सुबह सुबह दरवाज़े की कुंडी बजती देख दरवाज़ा खोल सामने बेटे बहू को देखते हुए रामदयाल जी बोले 

“ हाँ अब हम यही रहेंगे।” एक टूक शब्दों में कह किशोर अपना सामान लेकर एक कमरे में चला गया 

बेटा बहू का उतरा चेहरा देख कर रामदयाल और उनकी पत्नी देवकी परेशान हो गए 

“ कुछ बात हो गई क्या उधर जो तुम दोनों का चेहरा उतरा हुआ है।” देवकी ने पूछा 

“ माँ … आप दोनों और छोटे ने झाँसे में रखा मुझे और मैं आज्ञाकारी बेटा और बड़ा भाई बनकर झाँसे में भी आ गया… क्या ही गलती थी मेरी कम कमा रहा था पत्नी और दो बच्चों के लिए मुश्किल से गुज़ारा कर रहा था पर आप सबने मुझे क्या कहा… शहर में ज़मीन ले कर उधर घर बनवा देते हैं दोनों भाई मिलजुल कर रहना और जो ज़रूरत होगी वो हम गाँव से भी थोड़ा बहुत भेज दिया करेंगे….और तो और घर बनवाने का ज़िम्मा भी छोटे को सौंप दिया पैसा आप लगाते रहे और वो अपने हिसाब से घर बनवाता रहा… मुझे तो बताना भी ज़रूरी नहीं समझा कि घर के पैसे आप दे रहें थे….छोटा मुझसे ज़्यादा कमाता है तो उसपर आप लोगों को पूरा विश्वास भी हो रहा था और मुझपे नहीं…. हम आपके कहने पर वहाँ चले तो गए पर बदले में तानों की बौछार मिलती रही … मेरे बच्चों को भूखा रखती थी छोटे की बहू और अपने बच्चों को भरपेट खिलाती उपर से सुनाती रहती कि खा बेटा तेरे पापा की कमाई का है मुफ़्त का नहीं जो सब चट कर जाए… बस बहुत हो गया…शहर जाकर अच्छी ज़िन्दगी के खूबसूरत झाँसे में आकर हम वहाँ नौकर बन कर रह गए…. अब कम कमाएँगे पर यहाँ इज़्ज़त से रहेंगे ।” किशोर ने कहा 

“ पर बेटा घर तो तुम दोनों के लिए ही बनवाया था ना यहाँ कहाँ तुम खेती बाड़ी कर पाओगे… शहर में रह कर कहीं नौकरी करके बच्चों का पालन पोषण कर सकते थे….यहाँ क्या ही रखा है ?” रामदयाल बोले

“ बस पापा बहुत हो गया… शहर जाकर रहने के झाँसे में अब ना आऊँगा… यहाँ रहकर जो मिलेगा उसमें गुज़ारा कर लेंगे पर किसी के नौकर बन कर नहीं रहेंगे… और जैसे छोटे के लिए ज़मीन और घर का इंतज़ाम किया मेरे लिए भी कर देते तो अच्छा होता मैं भी अपने हिसाब से घर बनवा लेता तो किसी के ताने सुनना तो नहीं पड़ता ।”दुःखी स्वर में किशोर ने कहा 

“ हमसे गलती हो गई जो छोटे की बातों में आ गए उसने हमसे कहा …कहाँ आप और भैया परेशान होंगे… दीजिए सब मैं करवा देता हूँ और वो पैसे भी लेता रहा और बोलता रहा भैया से पूछ पूछ कर बनवा रहा हूँ घर …..वो तो बाद में पता चला उसने तुमसे कभी कोई राय मशवरा किया ही नहीं…तुम शांत स्वभाव के …वो उग्र तो हम भी क्या ही बोलते उससे ।” मद्धम स्वर में रामदयाल जी बोले 

“ जो होना थी हो गया जी … हम भी कहाँ ही सोचे थे छोटा हमें भी झाँसे में रख कर सब कर रहा है….अब तो इसके लिए भी सोचना होगा… जब तक हम है इनकी ज़िम्मेदारी भी हमारी ही है ।” देवकी जी ने कहा 

“ माँ हमें कुछ नहीं चाहिए बस आप लोगों का भरोसा और आशीर्वाद ही बहुत है ….भगवान ने चाहा तो हम दोनों कहीं काम कर अपना गुजर बसर कर लेंगे और आप दोनों का ध्यान भी रखेंगे।” बहुत देर से चुप बहू ने कहा 

“ हाँ बहू अब तो बस यही भरोसा है….हम भी कभी कभी अपनों के ही झाँसे में आकर गलती कर बैठते हैं इसके लिए हमें माफ कर देना ।” देवकी जी ने कहा जो छोटे बेटे की बातें सुनकर आहत हो चुकी थी

“ आप बड़े हैं माफ़ी माँग कर शर्मिंदा ना करें बस जब ज़रूरत हो आप हमारी मदद कर दे… इससे ज़्यादा और कुछ नहीं चाहिए ।” किशोर माता-पिता के दुःखी चेहरे देख कर उदास हो बोला

रामदयाल और देवकी ने बेटे बहू को गले से लगा करनी की माफ़ी माँग आगे भविष्य में उनका साथ देवे का आश्वासन दे दिया ।

मेरी इस रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#मुहावरा 

#झाँसेमेंआना(धोखेमेंआना)

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