अपनी हीन भावना – बालेश्वर गुप्ता : Short moral story in hindi

  सामान्य परिवार का सनी और धनाढ्य परिवार का विक्रम,दोनो सहपाठी, एक ही कक्षा में,दोनो ही मित्र।

      सनी अपनी हैसियत के मुताबिक़ सायकल से विद्यालय पहुँचता तो विक्रम का ड्राईवर उसे प्रतिदिन कार से विद्यालय छोड़ने आता।दोनो की मित्रता विद्यालय तक ही सीमित थी।सनी अपनी हैसियत और सीमा समझता था सो वह विक्रम से उतना ही वास्ता रखता जितना वो निभा सकता था।

      परीक्षाओं के दिन थे,पहली शिफ्ट की परीक्षा प्रातः7 बजे से प्रारंभ होने वाली थी।विक्रम 6.45  बजे प्रातः अपनी कार से परीक्षा वास्ते चल दिया, मार्ग में देखा कि सनी अपनी सायकल को पैदल ही खींचकर विद्यालय की ओर चला जा रहा है, उसने कार रुकवाई और सनी से कार में बैठने को बोला।

परीक्षा का मामला था,ना बैठने का मतलब था,समय से न पहुंच पाने के कारण परीक्षा का छूट जाना।सनी कार में बैठ गया और सायकल कार की डिक्की में रखवा दी।विक्रम ने कहा सनी ये तो अच्छा हुआ मैं तुम्हारे ही पीछे यहां पहुंच गया नही तो तुम्हारी सायकल आज तुम्हारा पेपर ही छुड़वा देती।

सनी को लगा कि विक्रम उसका सायकल के बहाने उपहास उड़ा रहा है।अनमस्यक से सनी ने कोई उत्तर नही दिया।

     एक दिन विक्रम ने सनी से कहा कि आओ सनी आज कैंटीन में कॉफी पीने चलते हैं, सनी के पास कैंटीन में कॉफी पीने लायक पैसे नही थे सो उसने अनिच्छा जाहिर कर दी।

विक्रम ने फिर भी सनी का हाथ पकड़ कर जिद की अरे चल ना पेमेंट मैं ही कर दूंगा,तू बस कंपनी तो दे। सनी विक्रम का हाथ छिटककर चला गया।

ये विक्रम अपने को समझता क्या है,उसे अपनी दौलत का घमंड है,क्यो वो हमारा मजाक उड़ाता है।क्या मैं उससे कुछ मांग रहा हूँ।गरीब है तो भी आत्मसम्मान तो रखते हैं।सोचता सोचता सनी अपने घर की ओर चल दिया।

जितना वो विक्रम के बारे में सोच रहा था उतने ही तेजी से उसके पावँ सायकल के पैडल पर पड़ रहे थे। सायकल की गति और सनी के मस्तिष्क की गति में सामंजस्य स्थापित न होने के कारण असंतुलन की स्थिती में सायकल फिसल गयी और सनी सड़क के किनारे पड़े पत्थरो के ढ़ेर पर गिर घायलवस्था में ही अचेत हो गया।

        सनी को जब होश आया तब वह हॉस्पिटल में था।होश में आते ही सनी को झटका लगा कि हॉस्पिटल का खर्च उसके पिता कैसे वहन करेंगे।उसे अपने घायल होने पर ही क्रोध आ रहा था। इस विक्रम के कारण ही सब हुआ है, अपनी रहीसी दिखाता रहता है।हे भगवान अब क्या होगा?सनी ने अपना माथा पकड़ लिया।

      तभी उसके कक्षा के कई मित्र उसके पास आ गये।उन्ही से पता चला कि विक्रम ने ही उसे हॉस्पिटल में एडमिट कराया है,हॉस्पिटल का खर्च उसके पिता ने किया है, पूरी रात वो ही उसके पास बैठा रहा था।अभी ही फ्रेश होने घर गया है।

      अवाक सा सनी विक्रम के दूसरे रूप का दर्शन कर रहा था।सनी समझ ही नही पा रहा था कि   घमंडी व्यक्ति क्या इतना संवेदनशील भी हो सकता है।उसका मस्तिष्क फिर उलझ गया।

   उसे अपनी पुस्तक में पढ़ी फ्रांस के राजा लुई की रानी की कहानी याद आ गयी जो अपनी दासी से कह रही थी कि इन आंदोलनकारियों को यदि रोटी नही मिल रही तो ये केक क्यों नही खाते?यानि रानी को यह अहसास ही नही था कि जिन्हें रोटी नसीब नही वो केक कहाँ से खा पायेंगे? लुई कैसा भी शासक रहा पर रानी संवेदनशील थी,तभी तो जनता को रोटी नही तो केक खाने की बात बोल रही थी।

        विक्रम में उसे आज अपने प्रति अनुराग ही अनुराग दिखाई दे रहा था।उसे पता ही नही था कि उसके लिये कही सामान्य बात  सनी को उसका गरूर लगती है।

       इतने में ही सनी ने देखा कि विक्रम उसके पिता को लिये आ रहा है।सनी को होश में देखते ही विक्रम उसके पास दौड़ता हुआ आ गया।सनी ने विक्रम का हाथ अपने हाथ में ले जोर से दबा कर अपने सीने से लगा लिया।

         बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक,अप्रकाशित।

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