अपनी ही आत्मा की हत्या – रंजना बरियार

आँटी वो महिला कौन हैं, जो बिल्कुल श्वेत, काले बॉडर की सिल्क की साड़ी पहन कर उस किनारे बैठी हैं?” मैंने अजनबी सी महिला को देखकर अर्पिता की मम्मी से पूछा। आँटी ने कहा ” वही है मंजुआ…अर्पिता के बेटे की शादी में उसका होना तो ज़रूरी है

क्योंकि अंकल जाते जाते अर्पिता को कह गए थे कि घर के किसी भी सुख दुख में उसका भी सम्मान अपनी माँ जैसा ही देना है.. इसलिए वो आई है!” आँटी के जवाब से मैं हिल सी गई.. कैसे कोई आजीवन दोहरी ज़िंदगी जी सकता है?..

और मृत्यु के बाद भी अपने बच्चों को भी दोहरी ज़िंदगी ढोने को बाध्य कर सकता है?
अर्पिता मेरे बचपन की सहेली है

। बचपन में अक्सर हमलोग जब खेल रहे होते तो वो “पापा आए हैं “ कहती हुई दौड़ कर भागती..मेरी समझ में नहीं आता कि पापा तो शाम में ऑफिस से आते हैं, इसके पापा किसी भी समय रिक्शे से कैसे आते हैं? कहाँ जाते हैं?एक बार मैंने पूछ ही लिया..

उसने बताया कि “मेरे पापा मेरे घर में नहीं रहते.. उनका स्कूल चलता है, वहाँ मंजुआ के साथ रहते हैं, यहाँ दो तीन दिनों पे आते हैं, दो तीन घंटे रह कर चले जाते हैं “ मैंने पूछा, मंजुआ कौन है? उसने कहा ” कोई लड़की है , माँ उसे इसी नाम से बोलती है!”



ऐसे ही समय बीतते रहे.. आँटी अपने तीनों बच्चों को पालती रहीं, एकाकी, उदास जीवन जीती रहीं.. अंकल के आने पर उनका चेहरा खिल जाता…एक बार अंकल आये, एम्बुलेंस बुलाकर आँटी को अस्पताल में भर्ती करवाया, दो तीन दिनों में वापस आ गईं..

अर्पिता समझ नहीं पाई, माँ को क्या हुआ था?फिर दो तीन वर्षों बाद आँटी फिर अस्पताल गयीं.. इस बार अर्पिता की एक प्यारी सी नन्ही सी बहन ले कर आयीं…अर्पिता तब पन्द्रह की हो गई थी! एक वर्ष बाद उसके पिता ने उसकी भी शादी कर दी थी!एक वर्ष बाद वो भी माँ बन गयी.. उसी बेटे की शादी है

आँटी पूरी ज़िंदगी अपने पति के दोहरे व्यक्तित्व को जीती रहीं..या झेलती रहीं..पर स्वयं पति के लिए  एकहरी ही बनी रहीं…! पर क्या वास्तव में उनका अन्तर्मन भी पति के दोहरेपन को स्वीकार लिया था?…नहीं… ऐसा नहीं हो सकता.. उनके अन्तर्मन की राहें पृथक थीं..

पर आर्थिक निर्भरता,दक़ियानूसी परम्पराओं की बेड़ियाँ,सामाजिक मर्यादाओं,बच्चों के भविष्य एवं अन्यान्य कारणों से बंधी हुई बेचारी आँटी पति के द्वारा निर्मित रास्ते पर चल कर अपनी ही आत्मा की हत्या करने को मजबूर थीं! जीती गईं वो भी पति के अनुरूप दोहरी ज़िंदगी!!

स्वरचित, मौलिक
रंजना बरियार

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