….. प्रफुल्ल जी अभी नए ही हैं इस ऑफिस में और कितनी कुशलता से सारा कार्य बखूबी समझ भी गए और ये प्रोजेक्ट जो एक महीने में पूर्ण होने वाला था उनकी अनवरत लगन और क्षमता से महज पंद्रह दिनों में पूर्ण कर लिया गया है हमें गर्व है उनकी काबिलियत पर …आज का ये सम्मान भोज उनकी इसी लगन के सम्मान में और पूरी टीम की इस सफलता के लिए आयोजित किया गया है….। सुमेर ने नवागत प्रफुल्ल का सम्मान स्वागत करते हुए कहा।
वास्तव में प्रफुल्ल ने आते ही सुमेर जो टीम हेड था उसकी समस्याएं बहुत कम कर दीं थीं समर्पित भाव से कार्य करता था।सुमेर भी प्रफुल्ल के आने से निश्चिंत था टीम हेड के नाते हमेशा अपनी टीम का और हर व्यक्ति का हौसला बढ़ाते रहना उसकी आदत में शामिल था विशेषकर नए व्यक्ति का
सही व्यक्ति की सही बात की सही समय पर की गई सही तारीफ निश्चित ही बेहतर सकारात्मक परिणाम तय करती है सुमेर यही मानता था।
शुरुआत में तो बहुत ही बढ़िया रहा …आए दिन प्रफुल्ल के कार्यों की तारीफे करना सुमेर की आदत सी हो गई थी
एक दिन ऑफिस टाइम में सुमेर को जोर जोर से हंसने बोलने की आवाजे सुनाई दीं तो वो उन आवाजों का पी छा करते हुए ऑफिस कैंटीन में पहुंच गया..”अपने बॉस को तो कुछ कार्य करना आता ही नहीं है सब कुछ तो हम लोग ही करते हैं पूरा प्रॉफिट खुद ले लेते हैं ये सब तारीफ और सम्मान हमें बहलाने के लिए हैं….अरे अगर मैं यहां नहीं आता तो इस ऑफिस का और ऐसे निकम्मे बॉस का क्या होता पता नहीं….मुझे तो अभी भी सैकड़ों ऑफर मिल रहे हैं जॉब के …..प्रफुल्ल की धाराप्रवाह बात अचानक सुमेर को सामने देख रुक सी गई …फिर तत्काल गिरगिट की तरह रंग बदलते हुए उसने कहा …. हां यही तो मैं कह रहा था हमारे बॉस हम सबका इतना ख्याल और सम्मान करते हैं मैं तो धन्य हो गया यहां आकर और ऐसे बॉस को पाकर… सर आइए प्लीज बैठिए काफी लेंगे आप!!
इस कहानी को भी पढ़ें:
रोते रोते बस अपनी किस्मत को कोसे जा रही थी – स्वाती जितेश राठी : Moral Stories in Hindi
सुमेर उसका रंग बदलना देख हक्का बक्का रह गया परंतु कुछ भी नहीं सुनने का अभिनय करते हुए उसने बैठकर काफी पी ली।…..व्यक्ति को पहचानने में भूल तो हो गई थी
वापिस अपने कक्ष में आते ही उसने सुरेश जो उसी टीम में प्रफुल्ल का सहयोगी था बुला कर प्रफुल्ल और प्रोजेक्ट की धीमी गति का संज्ञान लिया और तत्काल पूरा प्रोजेक्ट वर्क सुरेश को सौंप दिया क्योंकि दो दिनों बाद ही उसे सबमिट करना था।
प्रफुल्ल को जैसे ही इस फेर बदल का पता चला वो दौड़ता हुआ आया और सुमेर की चापलुसी करने लगा .वो सुरेश कुछ नही कर पायेगा उसे कुछ नहीं आता..एक मौका दे दीजिए सर..!लेकिन सुमेर तो समय रहते उसके गिरगिट व्यक्तित्व के संक्रमण से अपने ऑफिस को प्रदूषित होने से बचाने को दृढ़ संकल्पित हो गया था….प्रफुल्ल तुम्हारे पास तो सैकड़ों ऑफर आ रहे हैं जॉब के मुझ जैसे निकम्मे बॉस के साथ काम करके क्या करोगे…!
प्रफुल्ल समझ गया था कि उसकी असलियत जाहिर हो चुकी है।
दूसरे ही दिन सुरेश ने प्रोजेक्ट पूर्ण करके सुमेर को सौंप दिया तो सुमेर बहुत खुश हो गया आदतन बोल उठा “…वाह सुरेश तुमने तो मेरी पूरी चिंता कम कर दी तुम्हारे कार्य की जितनी तारीफ की जाए कम है…!
सर प्लीज बस करिए ….इन्हीं तारीफों ने प्रफुल्ल को बिगाड़ दिया अब इनका रंग मुझ पर भी ना चढ़ने लग जाए…सुरेश ने टोकते हुए बहुत विनम्र मुस्कान से कहा तो सुमेर जोर से हंस पड़ा” ….मेरे भाई जिसकी जैसी फितरत होती है वो वैसा ही करता है इसमें तारीफों की क्या गलती ….अगर गिरगिट की फितरत है रंग बदलने की… तो मेरी आदत है तारीफ करने की…दोनो अपना अपना काम करते रहेंगे।
#गिरगिट की तरह रंग बदलना
लतिका श्रीवास्तव